शक्ति को एक ग्राहक करके संसार को क्या किया जा सकता है खाली शथान
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विनम्रता सदा साहसियों और शक्तिशालियों को ही शोभा देती है। कमजोर और कायर व्यक्ति का विनम्र होना उस का गुण नहीं होता बल्कि उसकी मजबूरी होती है। वह किसी का क्या बिगाड़ सकता है लेकिन कोई शक्तिशाली व्यक्ति अपनी शक्ति का दुरुपयोग न करके जब दीन-दुःखियों के प्रति विनम्रता का भाव प्रकट करता है तो सारे समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। तुलसीदास जी ने कहा भी है- ‘परम धर्म श्रुति विदित अहिंसा’ तथा ‘पर पीड़ा सम नहि अधमाई।’ साहस और धैर्य मन में उत्पन्न होने वाले वे भाव हैं जो शक्ति को पाकर विपरीत स्थितियों में मानव को विचलित होने से रोक लेते हैं। साहस और धैर्य तो ‘असमय के सखा’ हैं जिन्हें शक्ति की सहायता से बनाकर रखा ही जाना चाहिए पर उसके साथ विनम्रता का बना रहना आवश्यक है। विनम्र व्यक्ति ही किसी के साथ होने वाले अन्याय के विरोध में खड़ा हो सकने का साहस करता है। भगवान् विष्णु को जब भृगु ने ठोकर मारी थी और उन्होंने साहस और शक्ति रखने के बावजूद विनम्रता का प्रदर्शन किया था तभी उन्हें देवों में से सबसे बड़ा मान लिया गया था। समाल में सदा से ही माना गया है कि अशक्त और असहाय की याचनापूर्ण करुण दृष्टि से जिसका हृदय नहीं पसीजा, भूखे व्यक्ति को अपने खाली पेट पर हाथ फिराते देखकर जिसने अपने सामने रखा भोजन उसे नहीं दे दिया, अपने पड़ोसी के घर में लगी आग को देखकर उसे बुझाने के लिए वह उसमें कूद नहीं पड़ा-वह मनुष्य न होकर पशु है क्योंकि साहस और शक्ति होते हुए अन्याय का प्रतिकार न करना कायरता है। साहस और शक्ति के साथ विनम्रता मानव का सदा हित करती है। गुरु नानक देव जी ने कहा भी है-
जो प्राणी ममता तजे, लोभ, मोह, अहंकार
कह नानक आपन तरे, औरन लेत उबार।
साहस और शक्ति तो अनेक प्राणियों में होती है पर विनम्रता के अभाव में वे कभी भी समाज में प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त कर पाते। जब हमारे हृदय में विनम्रता का भाव हो तभी हम स्वयं को भुलाकर दूसरों के कष्टों को कम करने की बात सोचते हैं।
मनुष्य के जीवन में सुख-दुःख तो बार-बार आते-जाते रहते हैं। सुख तो जल्दी से बीत जाते हैं पर दुःख की घड़ियां सुरक्षा के मुख की तरह लगातार बढ़ती जाती ही प्रतीत होती हैं। उस समय दूसरों के साथ किया गया विनम्रता का व्यवहार और महानुभूति तपती रेत पर ठंडे पानी की बूंदों के समान प्रतीत होती है। जो अपने सुखों को त्याग कर दूसरों के दुःखों में सहभागी बन जाते हैं वही अपने साहस और शक्ति का अच्छा परिचय देते हैं। वाल हिटमैन ने इसीलिए कहा है-
पीड़ित से मैं यह नहीं पूछता:
“तुम्हारा दर्द कैसा है?”
मैं स्वयं पीड़ित बन जाता हूं
और दर्द महसूस करने लगता हूं।
सच्ची मनुष्यता इसी बात में छिपी हुई है कि मनुष्य साहस और शक्ति होने के साथ विनम्रता को हमेशा महत्त्व दें। भगवान् शिव इसलिए पूजनीय हैं कि उन्होंने साहस और शक्ति से संपन्न होते हुए विनम्रता का परिचय दिया था। विषपान कर देवताओं और दानवों की उन्होंने रक्षा की थी। भर्तृहरि ने राक्षस और मनुष्य का अंतर विनम्रता के आधार पर ही किया है। जो विनम्र है वही महापुरुष है और जो अपने साहस और शक्ति को स्वार्थ के लिए प्रयोग करता है वही राक्षस है। तभी तो मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है-
यही पशु प्रवृत्ति है कि आप ही आप चरे।
मनुष्य है वही जो मनुष्य के लिए मरे।।
वास्तव में ही साहस और शक्ति के साथ विनम्रता ही मानव को मानव बनाती है।