शक्ति की करो मौलिक कल्पना, करो पूजन। छोड़ दो समर जब तक न सिद्धि हो, रघुनन्दन! तब तक लक्ष्मण हैं महावाहिनी के नायक, मध्य भाग में, अंगद दक्षिण-श्वेत सहायक, मैं, भल्ल-सैन्य; हैं वाम पार्श्व में हनूमान, नल, नील और छोटे कपिगण-उनके प्रधान; सुग्रीव, विभीषण, अन्य यूथपति यथासमय आयेंगे रक्षा हेतु जहाँ भी होगा भय।" इसका सारांश लिखो
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शक्ति की करो मौलिक कल्पना, करो पूजन। छोड़ दो समर जब तक न सिद्धि हो, रघुनन्दन! तब तक लक्ष्मण हैं महावाहिनी के नायक, मध्य भाग में, अंगद दक्षिण-श्वेत सहायक, मैं, भल्ल-सैन्य; हैं वाम पार्श्व में हनूमान, नल, नील और छोटे कपिगण-उनके प्रधान; सुग्रीव, विभीषण, अन्य यूथपति यथासमय आयेंगे रक्षा हेतु जहाँ भी होगा भय।" इसका सारांश लिखो
Answer:
कुछ क्षण तक रहकर मौन सहज निज कोमल स्वर,
बोले रघुमणि-"मित्रवर, विजय होगी न समर,
यह नहीं रहा नर-वानर का राक्षस से रण,
उतरीं पा महाशक्ति रावण से आमन्त्रण,
अन्याय जिधर, हैं उधर शक्ति।" कहते छल छल
हो गये नयन, कुछ बूँद पुनः ढलके दृगजल,
रुक गया कण्ठ, चमका लक्ष्मण तेजः प्रचण्ड
धँस गया धरा में कपि गह युगपद, मसक दण्ड
स्थिर जाम्बवान, समझते हुए ज्यों सकल भाव,
व्याकुल सुग्रीव, हुआ उर में ज्यों विषम घाव,
निश्चित सा करते हुए विभीषण कार्यक्रम
मौन में रहा यों स्पन्दित वातावरण विषम।
निज सहज रूप में संयत हो जानकी-प्राण
बोले-"आया न समझ में यह दैवी विधान।
रावण, अधर्मरत भी, अपना, मैं हुआ अपर,
यह रहा, शक्ति का खेल समर, शंकर, शंकर!
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