शक्ति और क्षमा कविता का अर्थ
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Explanation:
क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ सुयोधन तुमसे
कहो कहाँ कब हारा?
Forgiveness, mercy, tact, sacrifice
you followed them all
but when did Suyodhan ever give up?
क्षमाशील हो ॠपु-सक्षम
तुम हुये विनीत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही
The more forgiving you got,
the more the Kauravas assumed that you were a coward
अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है
This is the result of tolerating injustices
the fear of machismo is lost when man becomes gentle
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल है
उसका क्या जो दंतहीन
विषरहित विनीत सरल है
Forgiveness is becoming of the snake who has venom
but no one fears the toothless, non – poisonous kind
तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिंधु किनारे
बैठे पढते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे प्यारे
For three days Ram kept requesting the ocean for passage
he sat there requesting with the sweetest words
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नही सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से
When the ocean refused to acknowledge Ram’s pleas
a raging fire of resolve consumed Ram
सिंधु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता गृहण की
बंधा मूढ़ बन्धन में
The ocean assumed a human form & supplicated to Ram
Touched his feet, became subservient, a slave
सच पूछो तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
संधिवचन सम्पूज्य उसीका
जिसमे शक्ति विजय की
Truth be told it’s in the quiver that lies the gleam of modesty
only his peace offers are respected who is capable of victory
सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है
The world worships tolerance, forgiveness & compassion
only when they are backed by the glow of strength.
Though giving examples from the Ramayan & Mahabharat, this poem is relevant even today. Everyone who preaches peace should understand one basic rule of the world: peace offers from the weak are meaningless (V.D. Sawarkar). If you want to have peace, you need to be strong. The world respects strength & anyone who doesn’t have it will be trod upon & ground mercilessly.
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कविता :- शक्ति और क्षमा
कवि :- रामधारी सिंह दिनकर
नोट:- प्रस्तुत कविता में कवि ने महाभारत को
संदर्भ लिया है ।
क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ, कब हारा?
अर्थ :-
यहां पांडव कहते हैं कि , क्षमा, दया, तप,
त्याग, मनोबल इन सबका सहायता लेने के उपरांत
व्याघ्र सुयोधन ( अर्थात दुर्योधन ) बताओ , मैं तुमसे
कहां और कब हार गया ?
क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
अर्थ :-
जितना तुम क्षमाशील हुए , उतना ही यह दुष्ट
कौरवों ने तुमको कायर अर्थात डरपोक
समझा।
अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।
अर्थ:-
कवि कहता है कि , अत्याचार अर्थात् ज़ुल्म
झेलने का यही परिणाम होता है । पौरुष का
तत्व इंसान कोमल हृदय होकर ही उस मर्दांगी
को खो देता है।
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो।
अर्थ:-
कहता है कि क्षमा उस सर्प को शोभा देता है
जिसमें विश होता है , उसको नहीं जो
दंतहीन ( बिना दात वाला ) , विषरहित (
जिसमें विश न हो ) , विनीत अथवा सरल
स्वभाव का होता है । अर्थात कवि यह संदेश देना
चाहते है कि , जो पहले से ही दुर्बल हो उसे छमा
शोभा नहीं देता है।
तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे।
अर्थ:-
तीन दिनों तक प्रभु राम ,पथ मांगने हेतु , सिंधु
नदी के किनारे बैठकर , मीठे स्वर में छंद
पढ़ते रहे। अर्थात विनम्रता के साथ , प्रभु राम
समुन्द्र को पथ हेतु निवेदन करते रहें ।
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से।
अर्थ:-
जब राम जी के निवेदन के उत्तर में नदी ने कोई
भी जवाब नहीं दिया, तब राम जी के अंदर
पौरुष तत्व की अग्नि धधकने लगी ।
सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता ग्रहण की
बँधा मूढ़ बन्धन में।
अर्थ:-
तब समुन्द्र ने राम जी के पैरों को पूजा और
राम के बंधन में आ गए । अर्थात् उनके शरण
में आ गए ।
सच पूछो, तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की।
अर्थ:-
सच कहें तो , ऐसी शरीर में ही विनय कि
दीप्ति बसती है । साथ ही उसी का सन्धि-
वचन संपूज्य ( सम्मान का संधि ) होता है
जिसके पास सफल होने का शक्ति ,
आत्मविश्वास होता है ।
सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।
अर्थ:-
सहनशीलता, क्षमा, दया को संसार तब ही
पूजता है जब उसको अपने बल पर घमंड
होता है ।