Hindi, asked by krishankumarprajapat, 1 year ago

शक्ति और क्षमा कविता में युधिष्ठिर को कौन समझा रहा है?

Answers

Answered by abiramiragu
5

Hiii baby

क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल

सबका लिया सहारा

पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे

कहो, कहाँ, कब हारा?

क्षमाशील हो रिपु-समक्ष

तुम हुये विनत जितना ही

दुष्ट कौरवों ने तुमको

कायर समझा उतना ही।

अत्याचार सहन करने का

कुफल यही होता है

पौरुष का आतंक मनुज

कोमल होकर खोता है।

क्षमा शोभती उस भुजंग को

जिसके पास गरल हो

उसको क्या जो दंतहीन

विषरहित, विनीत, सरल हो।

तीन दिवस तक पंथ मांगते

रघुपति सिन्धु किनारे,

बैठे पढ़ते रहे छन्द

अनुनय के प्यारे-प्यारे।

उत्तर में जब एक नाद भी

उठा नहीं सागर से

उठी अधीर धधक पौरुष की

आग राम के शर से।

सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि

करता आ गिरा शरण में

चरण पूज दासता ग्रहण की

बँधा मूढ़ बन्धन में।

सच पूछो, तो शर में ही

बसती है दीप्ति विनय की

सन्धि-वचन संपूज्य उसी का

जिसमें शक्ति विजय की।

सहनशीलता, क्षमा, दया को

तभी पूजता जग है

बल का दर्प चमकता उसके

पीछे जब जगमग है।


krishankumarprajapat: Ye koi answer nhi h mere question ka
krishankumarprajapat: शक्ति और क्षमा कविता में युधिष्ठिर को कौन समझा रहा है?
krishankumarprajapat: शक्ति और क्षमा कविता में युधिष्ठिर को कौन समझा रहा है? इस प्रश्न का उत्तर चाहिए मुझे ना कि कविता | कविता मेरे पास लिखी हुई है |
Answered by AdityaRajVerma123
4

कविता कोश कैलेण्डर 2019

शक्ति और क्षमा / रामधारी सिंह "दिनकर"

रामधारी सिंह 'दिनकर' »

क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल

सबका लिया सहारा

पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे

कहो, कहाँ, कब हारा?

क्षमाशील हो रिपु-समक्ष

तुम हुये विनत जितना ही

दुष्ट कौरवों ने तुमको

कायर समझा उतना ही।

अत्याचार सहन करने का

कुफल यही होता है

पौरुष का आतंक मनुज

कोमल होकर खोता है।

क्षमा शोभती उस भुजंग को

जिसके पास गरल हो

उसको क्या जो दंतहीन

विषरहित, विनीत, सरल हो।

तीन दिवस तक पंथ मांगते

रघुपति सिन्धु किनारे,

बैठे पढ़ते रहे छन्द

अनुनय के प्यारे-प्यारे।

उत्तर में जब एक नाद भी

उठा नहीं सागर से

उठी अधीर धधक पौरुष की

आग राम के शर से।

सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि

करता आ गिरा शरण में

चरण पूज दासता ग्रहण की

बँधा मूढ़ बन्धन में।

सच पूछो, तो शर में ही

बसती है दीप्ति विनय की

सन्धि-वचन संपूज्य उसी का

जिसमें शक्ति विजय की।

सहनशीलता, क्षमा, दया को

तभी पूजता जग है

बल का दर्प चमकता उसके

पीछे जब जगमग है।


krishankumarprajapat: Are Ye poem to mere pas hi h. Jo question kiya h uska answer do
AdityaRajVerma123: Ok
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