शक्ति और प्राधिकार की अवधारणा के बीच भेद बताइए
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शक्ति-संतुलन का सिद्धान्त (balance of power theory) यह मानता है कि कोई राष्ट्र तब अधिक सुरक्षित होता है जब सैनिक क्षमता इस प्रकार बंटी हुई हो कि कोई अकेला राज्य इतना शक्तिशाली न हो कि वह अकेले अन्य राज्यों को दबा दे।
शक्ति संतुलन की अवधारणा लगभग 15 वीं शताब्दी से अंतर्राष्ट्रीय स्तर में प्रचलित है। शायद इसीलिए कुछ लेखक इसे अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का बुनियादी सिद्धान्त तो कुछ इसे सार्वजनिक सिद्धान्त या राजनीति के मौलिक सिद्धान्त की संज्ञा देते हैं। साधारण शब्दों में शक्ति संतुलन का अर्थ है जब एक राज्य/राज्यों का समूह दूसरे राज्य/राज्यों के समूह के सापेक्ष अपनी शक्ति इतनी बढ़ा ले कि वह उसके समकक्ष हो जाए। परन्तु इस धारणा की परिभाषा को लेकर विद्यमान एकमत नहीं हैं। शायद इसीलिए इनिंस एल क्लॉड का कहना है कि यह ऐसी अवधारणा है जिसकी परिभाषा की समस्या नहीं है बल्कि समस्या यह है कि इसकी बहुत सारी परिभाषाएं हैं। इन परिभाषाओं से पहले यह बताना भी आवश्यक है कि यह दो प्रकार की होती हैं -सरल एवं जटिल। सरल या साधारण शक्ति संतुलन जब होता है जब यह तुलना दो राष्टोंं या दो राष्टोंं के बीच में सीधे तौर पर हो। लेकिन यदि यह संतुलन दो समुदायों के परस्पर तथा इनमें सम्मिलित समुदायों में आन्तरिक रूप में भी हो तब यह जटिल संतुलन कहलाता है।
इसके संदर्भ में विद्वानों ने विभिन्न परिभाषाएं दी हैं जो इस प्रकार हैं-
मारगेन्थाऊ संपादित करें
प्रत्येक राष्ट्र यथास्थिति को बनाये रखने अथवा परिवर्तित करने के लिए दूसरे राष्टोंं की अपेक्षा अधिक शक्ति प्राप्त करने की आकांक्षा रखता है। इसके परिणामस्वरूप जिस ढांचे की आवश्यकता होती है वह शक्ति संतुलन कहलाता है।
जार्ज स्थवार्जन बर्गट संपादित करें
शक्ति संतुलन वह साम्यावस्था या अंतर्राष्ट्रीय संबंध में कुछ मात्रा में स्थिरता या स्थायित्व है, जो राज्यों के बीच मैत्रा-संधियों या अन्य दूसरे साधनों की मदद से प्राप्त किए जा सकते हैं।
क्विंसी राइट संपादित करें
शक्ति संतुलन वह व्यवस्था है जिसके अंतर्गत प्रत्येक राज्य में यह विश्वास बनाये रखने का सतत प्रयत्न किया जाता है कि यदि राज्य आक्रमण का प्रयत्न करते हैं तो उन्हें अजेय दूसरे राष्ट्रों के समूह का प्रतिरोध करना होगा।
सिडनी फे संपादित करें
शक्ति संतुलन से अभिप्राय राष्टोंं के परिवारों के सदस्यों के बीच शक्ति की न्यायपूर्ण साम्यवस्था से है जो किसी राष्ट्र को इतना शक्तिशाली होने से रोकता है ताकि वह दूसरे राष्ट्र पर अपनी इच्छा लाद न सके।
इस प्रकार शक्ति संतुलन को विद्वानों ने विभिन्न दष्ष्टियों से देखा है। कोई इसे शक्ति के वितरण के रूप में देखते हैं तो कोई इसे समूहों के बीच साम्यावस्था के रूप में, कोई इसे स्थायित्व के रूप में, तो कोई इसे युद्ध व अस्थिरता के रूप में। कहने का अर्थ यह है कि इन परिभाषाओं में सर्वसम्मति का अभाव है। शायद यह इसलिए हैं कि शक्ति संतुलन के अनेक अर्थ/प्रयोग हैं जिस वजह से यह भ्रांति बनी हुई है। मुख्य तौर पर शक्ति संतुलन को चार सन्दर्भों में प्रयोग किया जाता है-
(क) एक अवस्था के रूप में;
(ख) एक नीति के रूप में;
(ग) एक व्यवस्था के रूप में;
(घ) एक प्रतीक के रूप में।