Political Science, asked by vidhidave8225, 1 year ago

शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके गुण-दोष पर प्रकाश डालिए।

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Answered by danieutege7507
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Answer:

???

Explanation:

Answered by shishir303
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शक्ति पृथक्करण सिद्धांत का अर्थ एवं इसके गुण दोषों का विवेचन...

शक्ति पृथक्करण सिद्धांत का अर्थ — शक्ति पृथक्करण सिद्धांत सरकार के तीन अंगों की शक्तियों के बंटवारे पर आधारित है। इस सिद्धांत के अनुसार सरकार की शक्तियां तीन अंगों में विभाजित की जाती है। एक अंग है.. व्यवस्थापिका, दूसरा अंग है.. कार्यपालिका, और तीसरा अंग है.. न्यायपालिका।

व्यवस्थापिका विधि और कानूनों का निर्माण करती है, कार्यपालिका विधि-कानूनों को लागू करने का कार्य करती है और सारी व्यवस्था का संचालन करती है। न्यायपालिका और विधि कानूनों के अनुसार न्याय आदि करती है और विवाद की स्थिति में कानून-संगत निर्णय लेती है। सरकार के यह तीनों अंग अपने अपने कार्य क्षेत्र में सीमित रह कर कार्य करते हैं तथा हर अंग-दूसरे अंग से स्वतंत्र रहता है। यही सिद्धांत शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत कहलाता है।

शक्ति पृथक्करण सिद्धांत के गुण —

  • इस सिद्धांत का सबसे बड़ा लाभ यह है कि शक्ति का विभाजन तीन स्वतंत्र विभागों में हो जाता है, और किसी एक अंग के हाथ में सत्ता का विकेद्रीकरण नहीं रहता।
  • इस सिद्धांत के अंतर्गत स्वेचछाचारी एवं निरंकुश शासन प्रणाली पर अंकुश लगता है।
  • शक्ति पृथक्करण सिद्धांत नागरिकों की व्यक्तिगत सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
  • शक्ति पृथक्करण सिद्धांत में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका की स्थापना होती है और अन्य तीनों अंगों व्यवस्थापिका एवं कार्यपालक कार्यपालिका पर अंकुश लगाता है, जिससे सब अपने दायरे में सीमित रह कर कार्य करते हैं।

शक्ति पृथक्करण सिद्धांत के दोष —

  • कभी-कभी ऐसा होता है कि लोकतंत्र के विकास के लिए न्याय कार्यपालिका को कभी ऐसे कार्य करने पड़ते हैं जो कानून संगत नहीं होते लेकिन लोगों के हित में होते हैं। ऐसे में न्यायपालिका व्यवस्थापिका और कार्यपालिका के लोक कल्याणकारी कार्यों में बाधा उत्पन्न करके लोगों के हितों से खिलवाड़ करती है।
  • सरकार के तीनों अंगों में कभी-कभी आंतरिक संघर्ष हो जाता है और सब अंग हर दूसरे अंग पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश करता है।
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