Shakti se jayda samajdari acchi hoti hai iske bare me apana vichar 50 se 60 Shabd me do
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gygiogguh jedi was able and was made to his
सफल एवं सार्थक जीवन के लिये व्यक्ति और समाज दोनों अपना विशेष अर्थ रखते हैं। व्यक्ति समाज से जुड़कर जीता है, इसलिए समाज की आंखों से वह अपने आप को देखता है। साथ ही उसमें यह विवेकबोध भी जागृत रहता है ‘मैं जो हूं, जैसा भी हूं’ इसका मैं स्वयं जिम्मेदार हूं। उसके अच्छे बुरे चरित्र का बिम्ब समाज के दर्पण में तो प्रतिबिम्बित होता ही है, उसका स्वयं का जीवन भी इसकी प्रस्तुति करता है। यह सही है कि हम सबकी एक सामाजिक जिंदगी भी है। हमें उसे भी जीना होता है। हम एक-दूसरे से मिलते हैं, आपस की कहते-सुनते हैं। हो सकता है कि आप बहुत समझदार हों। लोग आपकी सलाह को तवज्जो देते हों। पर यह जरूरी नहीं कि आप अपने आस-पास घट रही हर घटना पर सलाह देने में लगे रहें। हम सबकी एक अपनी अलग दुनिया भी होती है, जिसके लिए समय निकालना भी जरूरी होता है। क्योंकि आध्यात्मिकता जिंदगी जीने का तरीका है खुद के साथ-साथ दूसरों से उचित व्यवहार करने का, इसके जरिए हम खुद में झांक सकते हैं, हालात का बेहतर विश्लेषण कर सकते हैं और फिर हर परेशानी एवं समस्या का हल खुद के भीतर ही होता है। हालांकि अदृश्य शक्ति पर विश्वास से मुंह नहीं मोड़ सकते लेकिन शक्ति खुद के भीतर ही मौजूद है और आत्मा से ही निकलती है। भीतरी शक्ति को बाहर निकाल कर नाममुकिन को भी मुमकिन किया जा सकता है।
सफल एवं सार्थक जीवन के लिये व्यक्ति और समाज दोनों अपना विशेष अर्थ रखते हैं। व्यक्ति समाज से जुड़कर जीता है, इसलिए समाज की आंखों से वह अपने आप को देखता है। साथ ही उसमें यह विवेकबोध भी जागृत रहता है ‘मैं जो हूं, जैसा भी हूं’ इसका मैं स्वयं जिम्मेदार हूं। उसके अच्छे बुरे चरित्र का बिम्ब समाज के दर्पण में तो प्रतिबिम्बित होता ही है, उसका स्वयं का जीवन भी इसकी प्रस्तुति करता है। यह सही है कि हम सबकी एक सामाजिक जिंदगी भी है। हमें उसे भी जीना होता है। हम एक-दूसरे से मिलते हैं, आपस की कहते-सुनते हैं। हो सकता है कि आप बहुत समझदार हों। लोग आपकी सलाह को तवज्जो देते हों। पर यह जरूरी नहीं कि आप अपने आस-पास घट रही हर घटना पर सलाह देने में लगे रहें। हम सबकी एक अपनी अलग दुनिया भी होती है, जिसके लिए समय निकालना भी जरूरी होता है। क्योंकि आध्यात्मिकता जिंदगी जीने का तरीका है खुद के साथ-साथ दूसरों से उचित व्यवहार करने का, इसके जरिए हम खुद में झांक सकते हैं, हालात का बेहतर विश्लेषण कर सकते हैं और फिर हर परेशानी एवं समस्या का हल खुद के भीतर ही होता है। हालांकि अदृश्य शक्ति पर विश्वास से मुंह नहीं मोड़ सकते लेकिन शक्ति खुद के भीतर ही मौजूद है और आत्मा से ही निकलती है। भीतरी शक्ति को बाहर निकाल कर नाममुकिन को भी मुमकिन किया जा सकता है।ये हम पर ही है कि हम चाहें तो बिखर जाएं या पहले से बेहतर बन जाएं। हाथ में आए मौके को लपक लें या फिर उसे दूसरों के हाथों में जाने दें। आप बुरी किस्मत कहकर खुद को दिलासा भी दे देते हैं। लेकिन, सच यही है कि यह भाग्य पर नहीं, स्वयं पर निर्भर करता है। आप वही बन जाते हैं, जो आप चुनते हैं। लेखक स्टीफन कोवे कहते हैं, ‘मैं अपने हालात से नहीं, फैसलों से बना हूं।’ अक्सर हम सब सोचते हैं कि यदि अवसर मिलता तो एक बढ़िया काम करते। कलाकार अपनी श्रेष्ठ कृति के सृजन के लिए अबाधित एकांत खोजता है। कवि निर्जन वन में अपने शब्द पिरोता है। योगी शांत परिवेश में स्वयं को टटोलता है। छात्र परीक्षा की तैयारी के लिए रातों को जागता है, क्योंकि उस समय शांति होती है और उसे कोई परेशान या बाधित नहीं करता। दफ्तर और कुटुम्ब की गहन समस्याओं पर विचार करने के लिए एवं व्यापार व्यवसाय की लाभ-हानि के द्वंद्व से उपरत होने के लिए हम थोड़ी देर अकेले में जा बैठते हैं। योगी और ध्यानी कहते हैं कि आंखें बंद करो और चुपचाप बैठ जाओ, मन में किसी तरह के विचार को न आने दो-समस्याओं से जूझने का यह एक तरीका है। पर गीता का ज्ञान वहां दिया गया जहां दोनों ओर युद्ध के लिए आकुल/व्यग्र सेनाएं खड़ी थीं। श्रीकृष्ण को ईश्वर का रूप मान लें तो सुनने वाले अर्जुन तो सामान्यजन ही थे। आज भी खिलाड़ी दर्शकों के शोर के बीच अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर दिखाते हैं। अर्जुन ने भरी सभा में मछली की आंख को भेदा था। असल में सृजन और एकाग्रता के लिए, जगत के नहीं, मन के कोलाहल सेता है। हम सब कुछ बड़ा करना चाहते हैं। कुछ बड़ा हासिल करने के सपने देखते हैं। कुछ ऐसा, जिससे हमारी अलग पहचान बन सके। यह चाहते सब हैं, पर कामयाब बहुत कम ही हो पाते हैं। कारण कि हम खुद को पूरी तरह अपने काम में डुबो नहीं पाते। लीडरशिप कोच रॉबिन शर्मा कहते हैं, ‘कुछ बड़ा करने के लिए जरूरी है कि हम ध्यान भटकाने वाली चीजों से दूर रहें।
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