शमशेर की कविता गांव की सुबह का जीवन चित्रण है पुष्टि कीजिए
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Answer:
कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जाता है कि उषा कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र है?
ANSWER:
निम्नलिखित उपमानों को देखकर कहा जाता है कि उषा कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र है-
(क) राख से लीपा हुआ चौका
(ख) बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
(ग) स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने
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Question 2:
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
नयी कविता में कोष्ठक, विराम चिह्नों और पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाइए।
ANSWER:
'अभी गीला पड़ा है'- इस पंक्ति को पढ़कर पता चल रहा है कि राख से लीपे चौके की लिपाई अभी-अभी समाप्त हुई है। इस पंक्ति को यदि भोर से जोड़ा जाए, तो पता चलता है कि सूर्य के उदय होने से पहले आसमान से रात की कालिमा हटने लगी है। अतः राख के समान आसमान का रंग स्लेटी हो गया है। सुबह की ओस ने इसे गीला कर दिया है। अर्थात वातावरण में अब भी नमी विद्यमान हैं। कवि ने गाँव में सुबह सवेरे औरतों द्वारा चूल्हा लीपने का जो चित्र भोर के साथ किया है, वह इसके कारण सुंदर जान पड़ा है। कोष्ठक में लिखे शब्द वातावरण की शुद्धता, पवित्रता तथा ठंडेपन को दर्शाते हैं।
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Question 1:
✽ अपने परिवेश के उपमानों का प्रयोग करते हुए सूर्योदय और सूर्यास्त का शब्दचित्र खींचिए।
ANSWER:
सूर्योदय
सुबह का आकाश था गेरुआ,
मेरी माँ के माथे सा,
छाने लगी सिंदूरी आभा, जैसे माँ ने डिबिया से लगाने को बढ़ाया हाथ सा,
गेरूआ आकाश सिंदूरी हो गया, माँ का सिंदूर माथे पर गिर गया।
आकाश पर छा गया गोल लाल सूर्य ऐसे, माँ के माथे पर सज गई बिंदिया जैसे।
सूर्योस्त
चमकता दिन ढल रहा,
जैसे चेहरे से हँसी सिमट रही,
आकाश होने लगा स्लेटी,
जैसे मुख की आभा हो गई अंधेरी,
सूर्य हो गया अस्त रात घिर आई है,
मानो हँसी का सूर्य अस्त चिंता मुँह पर घिर आई है।
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Question 1:
❖ सूर्योदय का वर्णन लगभग सभी बड़े कवियों ने किया है। प्रसाद की कविता 'बीती विभावरी जाग री' और अज्ञेय की 'बावरा अहेरी' की पंक्तियाँ आगे बॉक्स में दी जा रही है। 'उषा' कविता के समानांतर इन कविताओं को पढ़ते हुए नीचे दिए गए बिंदुओं पर तीनों कविताओं का विश्लेषण कीजिए और यह भी बताइए कि कौन-सी कविता आपको ज़्यादा अच्छी लगी और क्यों?
❖ उपमान ❖ शब्दचयन ❖ परिवेश
बीती विभावरी जाग री!
अंबर पनघट में डुबो रही-
तारा-घट ऊषा नागरी।
खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई-
मधु मुकुल नवल रस गागरी
अधरों में राग अमंद पिए,
अलकों में मलयज बंद किए-
तू अब तक सोई है आली
आँखों में भरे विहाग री।
-जयशंकर प्रसाद
भोर का बावरा अहेरी
पहले बिछाता है आलोक की
लाल-लाल कनियाँ
पर जब खींचता है जाल को बाँध लेता है सभी को साथः
छोटी-छोटी चिड़ियाँ, मँझोले परेवे, बड़े-बड़े पंखी
डैनों वाले डील वाले डौल के बैडौल
उड़ने जहाज़,
कलस-तिसूल वाले मंदिर-शिकर से ले
तारघर की नाटी मोटी चिपटी गोल धुस्सों वाली उपयोग-सुंदरी
बेपनाह काया कोः
गोधूली की धूल को, मोटरों के धुएँ को भी
पार्क के किनारे पुष्पिताग्र कर्णिकार की आलोक-खची तन्वि रूप-रेखा को
और दूर कचरा चलानेवाली कल की उद्दंड चिमनियों को, जो
धुआँ यों उगलती हैं मानो उसी मात्र से अहेरी को हरा देंगी।
- सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन 'अज्ञेय'
ANSWER:
उपमान- हमने तीनों कविताओं का विश्लेषण किया है। जयशंकर प्रसाद की 'बीती विभावरी जाग री' कविता हमें बहुत अच्छी लगी है। इसके उपमान इस प्रकार हैं-
1. अंबर को पनघट के समान बताया गया है।
2. ऊषा को स्त्री के समान तथा तारों को घड़े के समान बताया गया है।
3. पत्तों से भरी डाली को आंचल के समान बताया है।
4. ओस से भरी लता को स्त्री की संज्ञा दी गई है
5. लता रूपी स्त्री फूलों रूपी गागर में पराग रूपी शहद भर लाई है।
जैसे उपमानों का प्रयोग कर प्रसाद जी ने कविता में जान डाल दी है। प्रकृति का जितना सुंदर मानवीकरण इस कविता में जान पड़ा है, वह बाकी दो कविता में जीवंत नहीं हो पाया है।
शब्दाचयन- प्रसाद जी ने जिस प्रकार के शब्दों का चयन किया है, उसने कविता के सौंदर्य में चार चांद लगा दिए हैं। उदाहरण के लिए- बीती विभावरी, तारा-घट ऊषा नागरी, खग-कुल कुल-कुल सा, किसलय का अंचल, मधु मुकुल नवल रस गागरी, अमंद, अलकों, मलयज शब्दों का प्रयोग कर प्रसाद जी ने कविता में गेयता का गुण ही नहीं जोड़ा बल्कि पाठक का मन भी इनके साथ जोड़ दिया है। ऐसे बेजोड़ शब्द रचना बहुत ही कम कविताओं में देखने को मिलती है। बाकी कविताओं में इस प्रकार का शब्दाचयन देखने को नहीं मिलता है।
परिवेश- तीनों कविता में सुबह के परिवेश का ही वर्णन है। परन्तु स्थिति अलग-अलग है। 'उषा' कविता के कवि ने गाँव का चित्र चित्रित किया है। 'बीती विभावरी जाग री' के कवि ने पनघट, नदी तथा लता का चित्र चित्रित किया है। 'बावरा अहेरी' के कवि ने पक्षीवृंदों, मंदिर तथा बाग का चित्र चित्रित किया है। अतः बेशक भोर का वर्णन हो लेकिन परिवेश भिन्न-भिन्न हैं।
कवि ने गाँव की सुबह को चित्रित करने के लिए एक सुंदर चित्र योजना बनाई है।
कविता के माध्यम से सुबह का चित्रण:
- भोर के समय, आकाश शंख की तरह साफ और नीला दिखता है।
- इसे राख से ढका एक चौके समान दीखता है, और सुबह की नमी के कारण कुछ गीला महसूस होता था।
- चाक के निशान से ऐसा लगता है कि सफेद सिल पर लाल रंग की पट्टी है।
प्रकृति की उपमा दी है:
- ये सभी पुरस्कार पर्यावरण से संबंधित हैं. जब सूरज नीले आसमान में दिखाई देता है तो ऐसा लगता है जैसे नीले पानी में झिलमिला रहा हो।
- सूरज उगते ही उषा की जादुई क्षमता समाप्त हो गई। ये दृश्य किसी न किसी रूप में आपस में जुड़े हुए हैं। वे आसानी से घूम सकते है।
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