शपाल अथवा रामवृक्ष बेनीपुरी का जीवन-परिचय देत हुए उनका साहित्यक
गत जी की पुत्रवधू के जीवन की विशेषताएँ सार रूप में लिखिए।
खण्ड-घ
कृतिका' (भाग-2) के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
क) “साना-साना हाथ जोड़ि' पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
ख) 'माता का अँचल' पाठ में बूढ़े दूल्हे पर की गई टिप्पणी के माध्यम से लेखक ने क्या संदेश दिया है ?
ग) “सड़क सुरक्षा' शीर्षक पाठ से मिलने वाली शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
घ) जॉर्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के दिन अखबार चुप क्यों थे? 2850
ङ) 'मरदुए' शब्द ‘माता का अँचल' कहानी में किसने किसके लिए प्रयोग किया है?
(i) लेखक ने पिता के लिए
(ii) लेखक की माता ने उसके पिता के लिए
(iii) लेखक की माता ने लेखक के लिए (iv) इनमें से किसी से नहीं
च) कटाओ लायुंग से कितनी ऊँचाई पर स्थित है?
(1) 500 फीट (ii) 400 फीट
(iii) 300 फीट
(iv) 200 फीट
Answers
Answer:
रामवृक्ष बेनीपुरी (२३ दिसंबर, १८९९ - ७ सितंबर, १९६८) भारत के एक महान विचारक, चिन्तक, मनन करने वाले क्रान्तिकारी साहित्यकार, पत्रकार, संपादक थे। वे हिन्दी साहित्य के शुक्लोत्तर युग के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। आपने गद्य-लेखक, शैलीकार, पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी, समाज-सेवी और हिंदी प्रेमी के रूप में अपनी प्रतिभा की अमिट छाप छोड़ी है। राष्ट्र-निर्माण, समाज-संगठन और मानवता के जयगान को लक्षय मानकर बेनीपुरी जी ने ललित निबंध, रेखाचित्र, संस्मरण, रिपोर्ताज, नाटक, उपन्यास, कहानी, बाल साहित्य आदि विविध गद्य-विधाओं में जो महान रचनाएँ प्रस्तुत की हैं, वे आज की युवा पीढ़ी के लिए भी प्रेरणास्रोत हैं।इनका जन्म २३ दिसंबर, १८९९ को उनके पैतृक गाँव मुजफ्फरपुर जिले (बिहार) के बेनीपुर गाँव के एक भूमिहर ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उसी के आधार पर उन्होंने अपना उपनाम 'बेनीपुरी' रखा था। बचपन में ही माता-पिता के देहावसान हो जाने के कारण आपका पालन पोषण ननिहाल में हुआ। उनकी प्राथमिक शिक्षा भी ननिहाल में हुई। उनकी भाषा-वाणी प्रभावशाली थी। उनका व्यक्तित्त्व आकर्षक एवं शौर्य की आभा से दीप्त था। वे एक सफल संपादक के रूप में भी याद किये जाते हैं। वे राजनीतिक पुरूष न थे, पक्के देशभक्त थे। इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आठ वर्ष जेल में बिताये थे। ये हिन्दी साहित्य के पत्रकार भी रहे और इन्होंने कई समाचारपत्र जैसे युवक (१९२९) आदि भी निकाले। इसके अलावा ये कई राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता संग्राम संबंधी कार्यों में संलग्न रहे।
मैट्रिक की परीक्षा पास करने से पहले 1920 ई. में वे महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय सेनानी के रूप में आपको 1930 ई. से 1942 ई. तक का समय जेल में ही व्यतीत करना पड़ा। इसी बीच आप पत्रकारिता एवं साहित्य-सर्जना में भी जुड़े रहे। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन को खड़ा करने में आपने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वाधीनता-प्राप्ति के पश्चात् आपने साहित्य-साधना के साथ-साथ देश और समाज के नवनिर्माण कार्य में अपने को जोड़े रखा।
७ सितंबर, १९६८ को वे इस संसार से विदा हो गये।
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