शरीर पिक्चर लहू दे दो रे बारे जानकारी सानू खेड़ी प्रणाली तो प्राप्त हुई है
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जिले वासियों के लिए उर्स के दो दिन बड़ी नेमत भरे साबित हुए है। बाबा दुखन शाह (र.अ.) के मजार पर लगने वाले सालाना उर्स के मौके पर शुक्रवार को आयोजित महफिल-ए-कव्वाली का पूर्व विधायक सुखदेव भगत ने फीता काटकर उद्घाटन किया। मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में राज्यसभा सांसद प्रदीप कुमार बलमुचू, धीरज प्रसाद साहू समेत कई शामिल हुए। मुंबई के कव्वाल चांद कादरी चिश्ती व भारत, पाकिस्तान व अमेरिका में सम्मानित हाजी असलम साबरी के जलवों का कायल होने से लोग खुद को रोक नहीं सके। महफिल-ए-कव्वाली में आस्था, देशभक्ति, धर्म निरपेक्षता एवं भाईचारे का सुर लहराया। कव्वाल चांद कादरी चिश्ती ने 'मेरे भारत का ऐसा गुलिस्तां हो या अल्लाह या मौला, लहू अपना दे दूं चमन के लिए मेरी जान जाए वतन के लिए सरहद पर मुझको शहादत मिले, तिरंगा ओढ़ाना कफन के लिए' से कव्वाली की शुरूआत की। जबकि हाजी असलम साबरी ने 'जुबां पर मोहम्मद का नाम आ गया, मुझे मिल गई दो आलम की दौलत से कव्वाली का आगाज किया। इसके बाद नदियों में सबसे अफजल रूतबा है मरे नबी का, कुरान है मुक्कमल मेरे नबी का, चलता रहेगा यू हीं सिक्का मेरे नबी का, हर मर्म की दवा है मोहम्मद के शहर में, हम फकीरों से जो चाहे जिले वासियों के लिए उर्स के दो दिन बड़ी नेमत भरे साबित हुए है। बाबा दुखन शाह (र.अ.) के मजार पर लगने वाले सालाना उर्स के मौके पर शुक्रवार को आयोजित महफिल-ए-कव्वाली का पूर्व विधायक सुखदेव भगत ने फीता काटकर उद्घाटन किया। मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में राज्यसभा सांसद प्रदीप कुमार बलमुचू, धीरज प्रसाद साहू समेत कई शामिल हुए। मुंबई के कव्वाल चांद कादरी चिश्ती व भारत, पाकिस्तान व अमेरिका में सम्मानित हाजी असलम साबरी के जलवों का कायल होने से लोग खुद को रोक नहीं सके। महफिल-ए-कव्वाली में आस्था, देशभक्ति, धर्म निरपेक्षता एवं भाईचारे का सुर लहराया। कव्वाल चांद कादरी चिश्ती ने 'मेरे भारत का hopऐसा गुलिस्तां हो या अल्लाह या मौला, लहू अपना दे दूं चमन के लिए मेरी जान जाए वतन के लिए सरहद पर मुझको शहादत मिले, तिरंगा ओढ़ाना कफन के लिए' से कव्वाली की शुरूआत की। जबकि हाजी असलम साबरी ने 'जुबां पर मोहम्मद का नाम आ गया, मुझे मिल गई दो आलम की दौलत से कव्वाली का आगाज किया। इसके बाद नदियों में सबसे अफजल रूतबा है मरे नबी का, कुरान है मुक्कमल मेरे नबी का, चलता रहेगा यू हीं सिक्का मेरे नबी का, हर मर्म की दवा है मोहम्मद के शहर में, हम फकीरों से जो चाहे दुआ ले जाए, से समा बांध दिया। शनिवार शाम को भी शेरो-शायरी व कव्वाली के चाहने वाले दूर-दराज से पहुंचे थे। भीषण गर्मी व उमस के बाद भी न दरगाह पहुंचने वालों का रेला थमा न ही कव्वाली पर लोगों की दिलचस्पी कम हुई।
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