शरद जोशी ने अपने व्यंग्य निबंध 'अफसर' में अफसर की कौन कौन सी विशेषताएँ
बतलायी है लिखिए।
Answers
Explanation:
एक थे अफसर। बड़े बंगले में रहने वाले। ऊंची कुर्सी पर विराजमान। नौकर-चाकर, ड्राइवर, आया, जिसको आवाज लगाएं, वही हाजिर। बड़े रौब थे उनके। कमाल का प्रभाव। जिसका चाहें तबादला कर दें। ऐसा पेंच लगाएं कि उनके विरोधी को खाने को रोटी न मिले। जिस पर मेहरबान, उसकी सारी उंगलियां घी में। ज्ञानी-ध्यानी उनके चरण चाटें। ड्राइंगरूम जैसे अखाड़ा अक्लमंदों काा। जिसका नाम लें, वो ही बोले, ''यस सर''! जिसे देखकर मुस्कराएं, सो ही निहाल। दिमाग के तेज। व्यवहार के मीठे। जिसकी खाट खड़ी करनी हो, उससे बड़े मधुर। नीति में चाणक्य, कर्म से नादिरशाह। चित भी मेरी, पट भी मेरी, अण्टा मेरे बाप का। अफसर-से-अफसर। बड़े अफसर। अफसर को साहित्य-कला से बड़ा प्रेम। कविता घर में पानी भरे। आलोचना रोज झाड़ू लगाये। चिंतन उनके कपड़े धोये। लेख बिछायें। किताबों पर बैठें। कहानी जूतों के पास पड़ी रहे। अफसरी भी करें और साहित्य भी करें। जब जो चाहें, करें। मन के राजा। बड़े-बड़े बुद्धिजीवी उनके बंगले की ओर टकटकी लगाकर देखें। हुजूर की कृपा बनी रहे। बड़े-बड़े किताबों के लिखैया, कविता रचैया, टिप्पणीकार, गुनीजनों से प्रश्न पूछ इण्टरव्यू लिखने वाले कला के समीक्षक, विदेशी को देशी और देशी को विदेशी करने में माहिर, अफसर के दरबार में हाजिरी भरें। जो आज नहीं आया, वो कल जरूर आये। जो सुबह नहीं आया, सो शाम को हाजिर। मालिक सलाम। हम बुद्धिजीवी। हमको टुकड़ा दो खाने को। हमें चाय-कॉफी, हमें दारू हमें विचार, हमें दृष्टि। हमें धारणा। हमें रास्ता बताओ, मालिक हम क्या लिखें? क्या करें ?
अफसर दिमाग का तेज। वो नित नयी बात सोचे। ज्ञान बघारे। बड़े-बड़े मार्क्सवादी उससे सलाह लें। क्यों साहब, अब देश में क्रांति लाने के लिए क्या करें। अफसर कहे, हमारी सुनो। सब सुनें। सुनकर गुनें। प्रशंसा करते वक्त लौटें। देखो कैसी बढ़िया बात कही साहब ने समाज पर, साहित्य पर; सबकी मति साफ करके धर दी। कविजन अफसर से खुश। अफसर कविजन से खुश। ऐसी ही धीरे-धीरे साहित्य का विकास जारी था।
Answer:
एक थे अफसर। बड़े बंगले में रहने वाले। ऊंची कुर्सी पर विराजमान। नौकर-चाकर, ड्राइवर, आया, जिसको आवाज लगाएं, वही हाजिर। बड़े रौब थे उनके। कमाल का प्रभाव। जिसका चाहें तबादला कर दें। ऐसा पेंच लगाएं कि उनके विरोधी को खाने को रोटी न मिले।
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शरद जोशी ने अपने व्यंग्य निबंध 'अफसर' में अफसर की कौन कौन सी विशेषताएँ
बतलायी है लिखिए।
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शरद जोशी ने अपने व्यंग्य निबंध 'अफसर' में अफसर की कौन कौन सी विशेषताएँ
बतलायी है लिखिए।
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एक थे अफसर। बड़े बंगले में रहने वाले। ऊंची कुर्सी पर विराजमान। नौकर-चाकर, ड्राइवर, आया, जिसको आवाज लगाएं, वही हाजिर। बड़े रौब थे उनके। कमाल का प्रभाव। जिसका चाहें तबादला कर दें। ऐसा पेंच लगाएं कि उनके विरोधी को खाने को रोटी न मिले। जिस पर मेहरबान, उसकी सारी उंगलियां घी में। ज्ञानी-ध्यानी उनके चरण चाटें। ड्राइंगरूम जैसे अखाड़ा अक्लमंदों काा। जिसका नाम लें, वो ही बोले, ''यस सर''! जिसे देखकर मुस्कराएं, सो ही निहाल। दिमाग के तेज। व्यवहार के मीठे। जिसकी खाट खड़ी करनी हो, उससे बड़े मधुर। नीति में चाणक्य, कर्म से नादिरशाह। चित भी मेरी, पट भी मेरी, अण्टा मेरे बाप का। अफसर-से-अफसर। बड़े अफसर। अफसर को साहित्य-कला से बड़ा प्रेम। कविता घर में पानी भरे। आलोचना रोज झाड़ू लगाये। चिंतन उनके कपड़े धोये। लेख बिछायें। किताबों पर बैठें। कहानी जूतों के पास पड़ी रहे। अफसरी भी करें और साहित्य भी करें। जब जो चाहें, करें। मन के राजा। बड़े-बड़े बुद्धिजीवी उनके बंगले की ओर टकटकी लगाकर देखें। हुजूर की कृपा बनी रहे। बड़े-बड़े किताबों के लिखैया, कविता रचैया, टिप्पणीकार, गुनीजनों से प्रश्न पूछ इण्टरव्यू लिखने वाले कला के समीक्षक, विदेशी को देशी और देशी को विदेशी करने में माहिर, अफसर के दरबार में हाजिरी भरें। जो आज नहीं आया, वो कल जरूर आये। जो सुबह नहीं आया, सो शाम को हाजिर। मालिक सलाम। हम बुद्धिजीवी। हमको टुकड़ा दो खाने को। हमें चाय-कॉफी, हमें दारू हमें विचार, हमें दृष्टि। हमें धारणा। हमें रास्ता बताओ, मालिक हम क्या लिखें? क्या करें ?
श्री शरद जोशी ने अफसर पर अपना व्यंग्य प्रस्तुत किया है, वे दफ्तर के मुख्य अधिकारी जिसे अफ़सर कहा जाता है, उसके गुणों का बखान करते हुए अपने-अपने व्यंग्य-बाण छोड़ते हैं। वे कहते हैं प्रशासनिक ढाँचे में ढलकर अफसर तैयार होता है । अफसर आता है, चला जाता है किन्तु अफसर मरता नहीं, जिस तरह शरीर के त्याग दिए।
अफसर दिमाग का तेज। वो नित नयी बात सोचे। ज्ञान बघारे। बड़े-बड़े मार्क्सवादी उससे सलाह लें। क्यों साहब, अब देश में क्रांति लाने के लिए क्या करें। अफसर कहे, हमारी सुनो। सब सुनें। सुनकर गुनें। प्रशंसा करते वक्त लौटें। देखो कैसी बढ़िया बात कही साहब ने समाज पर, साहित्य पर; सबकी मति साफ करके धर दी। कविजन अफसर से खुश। अफसर कविजन से खुश। ऐसी ही धीरे-धीरे साहित्य का विकास जारी था।
#SPJ3