शरद जोशी ने यह क्यों कहा कि अतिथि सदैव देवता नहीं होते
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हमारी भारतीय संस्कृति में अतिथि को सदैव भगवान का स्वरूप माना गया है, परंतु अगर अतिथि जाकर समय रुक जाए तो भोझ के सामान लगता है।
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