शता शेतीचे व्याणीकरण >
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हमेशा सत्य और प्रिय बोले
वाणी मूर्खो की समझ में नहीं आती और अधिक बोलना विद्वानों को उद्विगन करता है । सत्य बोलें , प्रिय बोलें , किन्तु अप्रिय सत्य न बोलें । किसी साथ व्यर्थ वैर और शुष्क विवाद न करें । जो अपने मुख और जिह्वा पर संयम रखता है , वह अपनी आत्मा को सन्तापों से बचाता है ।
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हमेशा सत्य और प्रिय बोले
वाणी मूर्खो की समझ में नहीं आती और अधिक बोलना विद्वानों को उद्विगन करता है । सत्य बोलें , प्रिय बोलें , किन्तु अप्रिय सत्य न बोलें । किसी साथ व्यर्थ वैर और शुष्क विवाद न करें । जो अपने मुख और जिह्वा पर संयम रखता है , वह अपनी आत्मा को सन्तापों से बचाता है ।
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