India Languages, asked by anjanagauba1, 6 months ago

शयित्वा प्रबुद्धस्तदा तेन स्वर्णगवाक्षात्कथितं हहो
बाले! त्वमागता, तिष्ठ, अहं त्वत्कृते
सोपानमवतारयामि, तत्कथय स्वर्णमयं
रजतमयमुत ताम्रमयं वा? कन्या प्रावोचत्
अहं निर्धनमातुर्दुहिताऽस्मि। ताम्रसोपानेनैव
आगमिष्यामि। परं स्वर्णसोपानेन सा स्वर्ण-
भवनमाससाद।​

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Answered by Anonymous
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Answer:

  • प्रस्तुत पाठ श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित “विश्वकथाशतकम्” नामक कथासंग्रह से लिया गया है, जिसमें विभिन्न देशों की सौ लोक कथाओं का संग्रह है। यह वर्मा देश की एक श्रेष्ठ कथा है, जिसमें लोभ और उसके दुष्परिणाम के साथ—साथ त्याग और उसके सुपरिणाम का वर्णन, एक सुनहले पंखों वाले कौवे के माध्यम से किया गया है।
  • पुरा कसिंमश्चिद् ग्रामे एका निर्धना वृद्धा स्त्री न्यवसत्।
Answered by vaibhav111273
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Answer:

प्रस्तुत पाठ श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित “विश्वकथाशतकम्” नामक कथासंग्रह से लिया गया है, जिसमें विभिन्न देशों की सौ लोक कथाओं का संग्रह है। यह वर्मा देश की एक श्रेष्ठ कथा है, जिसमें लोभ और उसके दुष्परिणाम के साथ—साथ त्याग और उसके सुपरिणाम का वर्णन, एक सुनहले पंखों वाले कौवे के माध्यम से किया गया है।

पुरा कसिंमश्चिद् ग्रामे एका निर्धना वृद्धा स्त्री न्यवसत्

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