Hindi, asked by CrizMack7763, 18 days ago

Shekar ek chota ladka kahani lekan

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Answered by prajapatisaroj415
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शेखर एक छोटा लड़का- माँ के साथ झोपड़ी में रहना-बरसात के दिन- आंधी और तूफान आना-रेल की पटरी उखड जाना-मोखर की नजर में आना रेलगाड़ी आने का समय होना--लाल कमीज पकड़कर पटरी पर खड़ा रहना रेल रुकना-यात्रियों द्वारा भला-बुरा कहना-ड्राइवर का देखना-शेखर के कारण यात्रियों की जान बचना-राष्ट्रपति द्वारा स्वर्ण पदक-सीख।भाग्य ने साथ दिया और कुछ ही दिनों में उसके पास ऊंट-ऊंटनियों का एक समूह हो गया। अब उसने उनकी देखभाल के लिए एक नौकर भी रख लिया । इस प्रकार उसका ऊंटों का व्यापार खूब चलने लगा। सारे ऊंट दिन-भर तो तालाब या नदी किनारे चरा करते और शाम को घर लौट आते थे।

उन सबके पीछे वहीं ऊंट होता था, जिसके गले में बढ़ई ने घंटा बांध दिया था। अब वह ऊंट स्वयं पर कुछ ज्यादा ही गर्व महसूस करने लगा था। फिर एक दिन ऐसा हुआ कि शेष ऊंट तो शाम होते ही घर पहुंच गए, किंतु वह घंटाघारी ऊंट वापस न लौटा।

वह जंगल में कहीं भटक गया। उसके घंटे की आवाज सुनकर एक सिंह उस पर झपट पड़ा और अपने तीक्ष्ण नाखूनों से उसका पेट फाड़ डाला। यह कथा सुनाकर वानर बोला-‘तभी तो मैं कहता हूं कि जो व्यक्ति अपने हितैषियों की बात नहीं मानता, उसकी ऐसी ही दशा होती है।’ किसी गांव में उज्ज्वलक नाम का एक बढ़ई रहता था। वह बहुत निर्धन था। निर्धनता से तंग आकर एक दिन वह गांव छोड़कर दूसरे स्थान के लिए निकल पड़ा। रास्ते में घना जंगल पड़ता था।

वहां उसने देखा कि एक ऊंटनी प्रसव-पीड़ा से तड़प रही है। ऊंटनी ने जब बच्चा दिया तो वह ऊंटनी और उसके बच्चे को लेकर अपने घर लौट आया। अब समस्या पैदा हो गई कि वह ऊंटनी को चारा कहां से खिलाए ?

उसने ऊंटनी को खूटे से बांधा और उसके लिए चारे का प्रबंध करने के लिए जंगल की ओर निकल पड़ा। जंगल में पहुंचकर उसने वृक्षों की पत्ती-भरी शाखाएं कार्टी, और उन्हें ले जाकर ऊंटनी के सामने रख दिया।

ऊंटनी ने हरी-भरी कोपलें खाई। कुछ दिन तक ऐसा ही आहार मिलता रहा तो ऊंटनी बिल्कुल स्वस्थ हो गई। उसका बच्चा भी धीरे-धीरे बढ़ा होने लगा। तब बढ़ई ने उसके गले में एक घंटा बांध दिया, जिससे वह कहीं खो न जाए।

दूर से ही घंटे की आवाज सुनकर बढ़ई उसे घर लिवा लाता था। ऊंटनी के दूध से बढ़ई के बाल-बच्चे भी पलते थे। ऊंट का बच्चा, जो अब जवान हो चुका था, भार ढोने के काम में आने लगा था। बढ़ई निश्चिंत रहने लगा।

उसने सोचा कि अब उसे कुछ करने की आवश्यकता नहीं। निर्वाह ठीक ढंग से चल ही रहा है, अतः अब उसे कोई व्यापार कर लेना चाहिए। इस विषय में उसने अपनी पली से सलाह की तो उसने परामर्श दिया कि ऊंटों का व्यापार करना ही उचित रहेगा।

भाग्य ने साथ दिया और कुछ ही दिनों में उसके पास ऊंट-ऊंटनियों का एक समूह हो गया। अब उसने उनकी देखभाल के लिए एक नौकर भी रख लिया । इस प्रकार उसका ऊंटों का व्यापार खूब चलने लगा। सारे ऊंट दिन-भर तो तालाब या नदी किनारे चरा करते और शाम को घर लौट आते थे।

उन सबके पीछे वहीं ऊंट होता था, जिसके गले में बढ़ई ने घंटा बांध दिया था। अब वह ऊंट स्वयं पर कुछ ज्यादा ही गर्व महसूस करने लगा था। फिर एक दिन ऐसा हुआ कि शेष ऊंट तो शाम होते ही घर पहुंच गए, किंतु वह घंटाघारी ऊंट वापस न लौटा।

वह जंगल में कहीं भटक गया। उसके घंटे की आवाज सुनकर एक सिंह उस पर झपट पड़ा और अपने तीक्ष्ण नाखूनों से उसका पेट फाड़ डाला। यह कथा सुनाकर वानर बोला-‘तभी तो मैं कहता हूं कि जो व्यक्ति अपने हितैषियों की बात नहीं मानता, उसकी ऐसी ही दशा होती है।’

किसी जंगल में एक गीदड़ रहा करता था। उसका नाम था, महाचतुरक । शिकार की तलाश में वह वन के विशाल भू-भाग में इधर-उधर भटका करता था। एक दिन वन के एक भाग में उसने एक मरा हुआ हाथी देखा।

हाथी का मांस खाने की इच्छा से गीदड़ ने उसकी खाल में दांत गड़ाने की चेप्ा की, किन्तु खाल कठोर होने के कारण उसके दांत हाथी की खाल में न गड़ सके। इसी बीच कहीं से घूमता-घामता एक सिंह वहां आ पहुंचा।

सिंह को देखकर गीदड़ भयभीत हो गया। उसने सिंह को प्रणाम किया और बोला-‘स्वामी ! मैं तो आपका सेवक हूं। आपके लिए ही तो मैं इस हाथी की रक्षा कर रहा हूं। अब आप इसका यथेष्ट भोजन कीजिए।’

सिंह ने कहा-‘मैं किसी और के हाथों मरे जीव का भोजन नहीं करता। भूखा रहकर भी मैं अपने इस धर्म का पालन करता हूं।’ सिंह के जाने के बाद एक बाघ वहां आ पहुंचा। गीदड़ ने सोचा कि एक मुसीबत को हाथ जोड़कर जैसे-तैसे टाल दिया, अब इस दूसरी मुसीबत को कैसे टालूं ? इसके साथ भेद-नीति का ही प्रयोग करना चाहिए।

यही सोचकर वह गीदड़ बाघ के सामने गरदन ऊंची करके जा पहुंचा और उससे बोला-‘मामा ! तुम इस मौत के मुंह में कहां से आ गए? इस हाथी को सिंह ने मारा है। वह मुझे इसकी देखभाल करने को यहां छोड़कर अभी-अभी नदी की ओर गया है, स्नान करने।

मुझे वह विशेष रूप से यह निर्देश देकर गया है कि यदि कोई बाघ या चीता इसको सूंघे भी तो मैं चुपके से जाकर उसे बता दूं।’ यह सुनकर बाघ वहां से तुरंत भाग खड़ा हुआ। बाघ को गए हुए अधिक समय नहीं हुआ था कि वहां एक चीता आ धमका।

गीदड़ ने सोचा कि चीते के दांत बहुत पैने होते हैं, अतः कोई ऐसा उपाय करूं कि यह चीता हाथी की खाल को काट दे। यह सोचकर वह चीते से कहने लगा-‘महाशय ! आज बहुत दिनों बाद दिखाई दिए। भूखे भी दिखाई दे रहे हो। देखो, सिंह द्वारा मारा हुआ यह हाथी यहां मेरी सुरक्षा में है।

अतः जब तक सिंह नहीं आता, तुम इसका थोड़ा-बहुत मांस खा लो और यहां से भाग जाओ।’ इस प्रकार चीते ने मांस खाना स्वीकार कर लिया। जब वह अपने तेज नाखूनों और दांतों से हाथी की खाल को चीरकर अपना मुंह मांस में गड़ाने लगा तो गीदड़ बोल उठा—’अरे, वह सिंह आ पहुंचा।

जल्दी से यहां से निकल जाओ।” यह सुनकर चीता दुम दबाकर वहां से भाग खड़ा हुआ। चीते द्वारा बनाए छेद से वह गाड़ी से हाथी के पेट में घुस गया। अभी उसने हाथी के कोमल अंगों का मांस खाना आरंभ ही किया था कि एक अन्य गीदड़ वहां आ पहुंचा। उसको अपने जैसा ही बलवान समझकर गीदड़ ने उससे युद्ध किया और अवसर देखकर उसको मार डाला। तत्पश्चात बहुत दिनों तक वह स

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