CBSE BOARD X, asked by Priyanshi2913, 1 year ago

shemushi class 10 hindi anuwad translation of chapter 1​

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Answered by dk6060805
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Hindi Translation of Chapter 1 Class X Sanskrit

Explanation:

वाड्•मयं तपः

                       वाणी से  युक्त तपस्या अथवा साधना

अनुवाद:

आचार्य - प्रिय छात्रों हम सब के द्वारा ऋग्वेद के मंत्र पढ़े गए | क्या आप जानते हैं ऋग्वेद  विश्व के साहित्य में सर्वाधिक प्राचीन लिखित रचना है | इसकी उपदेश सभी कालों में और सभी स्थानों में उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है |

सभी छात्र- हां तभी कहा गया है तुम सब मिल कर चलो तुम सब मिलकर बोलो |

आचार्य -क्या आप सब वाणी के महत्व को जानते हैं ?

सुमेधा- मैं बताऊं एकमात्र वाणी पुरुष को सुशोभित करती है जो संस्कार के साथ धारण की जाती है|

आचार्य -अति उत्तम विद्यावान लोगों की वाणी में विद्या देवी सरस्वती विराजमान होती है, यही शिक्षा देता है यह पाठ "वाड़्मयं तपः" अर्थात वाणी संयुक्त साधना|

संस्कृत भावबोधनम•••••

1• शारदा •••••••••••••क्रियात्

अन्वयः शारद-अम्भोज-वदना सर्वदा शारदा अस्माकम् वदन-अम्बुजे सर्वदा सन्निधिं सत् निधिं क्रियात् |

शब्दार्था :

शरद् अम्भोज-वदना= शरद ऋतु के कमल के समान मुख वाली अर्थात गौरवर्ण मुख वाली , शारदा = सरस्वती ,वदन-अम्बुजे= कमल रूपी मुख में ,सन्निधिम् =अच्छी निधि( कोश, खजाना को ) ,सर्वदा= हमेशा, सन्नधिम्= निकटता से ,क्रियात् =करें

अनुवादः  

शरदकालीन कमल के सदृश मुखमंडल वाली , सब कुछ देने वाली ,विद्या -देवी शारदा, हम सबके कमल के सदृश मुख में, सदैव निकटता से अपनी उत्तम संपत्ति को स्थापित करें |

संस्कृत - भावबोधनम्- विद्या •••••••प्रददातु |

2▪ अपूर्वः •••••••••••सञ्चयात् |

अन्वययः -

भारति! तव अयं कोशः कः अपि अपूर्वः

विद्यते | व्ययतः वृद्धिम्  आयाति,सञ्चयात् च क्षयम् आयाति |

शब्दार्था :

भारति= हे  सरस्वती | अपूर्वः =अद्वितीय|  विद्यते =विद्यमान है | व्ययतः= खर्च करने से | आयाति = प्राप्त करता है|  सञ्चयात्=  इकट्ठा करने से | क्षयम् = विनाश , कमी को

अनुवाद:  

हे सरस्वती देवी! तुम्हारा यह ज्ञान रुपी भंडार कुछ अनोखा ज्ञान जान पड़ता है| खर्च करने से वृद्धि को प्राप्त करता है तथा एकत्र करने से छीन हो जाता है|

संस्कृत भावबोधनम्-

हे सरस्वती!••••••••• जायते |

3▪ नास्ति ••••••••सुखम्

अन्वयः-  विद्यासमं चक्षु: न अस्ति ,सत्यसमं  तप  न अस्ति | रागसमं दुखं न अस्ति, त्यागसमं सुखं न अस्ति |

शब्दार्थाः -

समम् = समान|  तपः = साधना,  कष्ट सहना रागः

=  आसक्ति, मोह|  त्यागः= दान, अनासक्ति|

अनुवादः  

विद्या के समान नेत्र नहीं है |सत्य के समान तपस्या नहीं है| मोह के समान दुख नहीं है |और त्याग के समान सुख नहीं है |

संस्कृत भावबोधनम

भौतिकनेत्रेण••••••••  सुखम्

4 •    न तथा शीतलसलिलं•••••••• वाणी |

अन्वयः -यथा मधुरभाषिणी वाणी पुरूषं प्रह्लादयति तथा शीतल-सलिलं न,चन्दनरसः न,शीतला छाया च न (प्रहलादयति)|

शब्दार्थाः-

तथा = वैसा ,उतना | शीतल -सलिलम् =ठंडा जल | मधुरभाषिणी= मीठा बोलने वाली |चंदन रसः=चंदन का लेप लेप | प्रहलादयति=  प्रसन्न करता है | यथा = जैसी जितनी

अनुवादः

जिस प्रकार से मधुर कही गई वाणी मनुष्य को आनंदित करती है ,उस प्रकार से ठंडा पानी, चंदन का शरबत, लेप या ठंडी छाया नहीं  आनंदित करती है |

संस्कृत भावबोधनम्

शीतलजलम्••••••••••• भवति |

5• शुश्रूषा ••••••••••धीगुणा : |

अन्वयः-  शुश्रूषा श्रवणं च एव  ग्रहणं तथा धारणम् ऊह अपोह अर्थविज्ञानं तत्वज्ञानं च धीगुणाः( सन्ति)

शब्दार्थाः

शुश्रूषा= सुनने की इच्छा|  श्रवणम् = सुनना, ग्रहणम्=  ग्रहण करना ,समझना | धारणम् =मन में धारण करना | ऊह-अपोहः= तर्क वितर्क ,पक्ष एवं विपक्ष में तर्क करना | अर्थ-विज्ञानम् = अर्थ का विशेष ज्ञान | तत्वज्ञानम्= सार अंश को जान लेना | धीगुणा:= बुद्धि के गुण

अनुवाद

सुनने की इच्छा होना, सुनना और ज्यों का त्यों ग्रहण करना तथा हृदय में उतार लेना( धारण करना ),उस तथ्य के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क करना, अर्थ का विशेष रूप से ज्ञान करना व अंततः  सारांश को जान लेना |  यह 8 गुण बुद्धि के गुण कहे गए हैं |

6. माधुर्यमक्षरव्यक्ति: •••••••••••गुणा: |

अन्वयः - माधुर्यम्,अक्षरव्यक्ति:,पदच्छेदः तु सुस्वर;

धैर्यं लयसमर्थं च एते षट् पाठकगुणा: (सन्ति)।

शब्दार्था: - माधुर्यम्= कोमलता से वर्णो का उच्चारण | अक्षरव्यक्ति:= वर्णों का स्पष्ट उच्चारण । पदच्छेदः = पदों को अलग अलग करना ।सुस्वर:= सुंदर स्वर । धैर्यं =विराम चिन्हों का प्रयोग करना। लयसमर्थम्= वर्णों का उचित स्थान । एते = ये । पाठक- गुणा:= पढ़ने वाले के गुण ।

अनुवाद :

मधुर वर्णों का उच्चारण, अक्षरों की स्पष्ट अभिव्यक्ति, पद का उचित स्थान पर विच्छेद, मधुर कंठस्वर, विराम चिन्हों का उचित प्रयोग ,यति- गति-लय से युक्त होना।ये  छः पाठक के गुण है।

7• आचार्यात्पादमादत्ते•••••••••••••सब्रहमचारिभि: ।

अन्वयः - शिष्यः आचार्यात् पादम् आदत्ते । (शिष्यः) स्वमेधया पादम् (आदत्ते),(शिष्यः) कालेन

पादम् आदत्ते,(शिष्यः) सब्रह्मचारिभि: पादम् आदत्ते ।

शब्दार्था: -

आचार्यात् =गुरु से। पादम् =चौथा हिस्सा। आदत्ते= ग्रहण करता है । स्वमेधया =अपनी बुद्धि से । कालेन = समय के साथ । सब्रह्मचारिभि: =साथ पढ़ने वाले साथियों से।

अनुवादः  

गुरु से शिष्य विद्या का मात्र एक चौथाई  हिस्सा  ग्रहण करता है । एक चौथाई हिस्सा वह अपनी बुद्धि कौशल से ग्रहण करता है ,और एक चतुर्थ  हिस्सा समय बीतने के साथ अनुभव तथा अभ्यास से ग्रहण करता है ,शेष चतुर्थांश अपने मित्रों, दोस्तों के साथ चर्चा परिचर्चा के द्वारा ग्रहण करता है।

8• अनुद्वेगकरं•••••••••••••••••••उच्यते।

अन्वयः- यत् वाक्यम् अनुद्वेगकरम् सत्यं प्रियहितं च (तस्य) स्वाध्याय-अभ्यसनं च एव वाड्•मयं तप:

उच्यते।

शब्दार्था:-

यत्= जो। प्रियहितं= हितकारी । अनुद्वेगकरम्= व्याकुलता उत्पन्न न करने वाला ,कष्ट न देने वाला।

वाक्यं = वाणी। स्वाध्याय- अभ्यसनम्= चिंतन-मनन तथा प्रयोग।

अनुवादः  

जो वचन कष्ट न पहुंचाता हो अर्थात शीतल दायक हो ,सत्य हो ,प्रिय हो तथा भलाई करने वाला हो उस वाक्य का स्वाध्याय अर्थात चिंतन मनन करना तथा अभ्यास करना ही वाणी की तपस्या है |

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