Sheshvavstha ki savednao ka ulekh kijie
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बालक के जन्म के पश्चात 5 वर्ष की अवस्था शैशवकाल होती है। बालक की इस अवस्था को “बालक का निर्माण काल” माना जाता है। इसी अवस्था में बालक में भावी जीवन का निर्माण किया जा सकता है।
फ्रायड ने इस सम्बंध में कहा है- “मानव को कुछ भी बनाना होता है, वह प्रारंभिक 5 वर्षों में ही बन जाता है।” इस अवस्था में बालक अपरिपक्व होता है और अपने परिवार के सदस्यों पर निर्भर रहता है उसका व्यवहार पूर्णतः प्रवृत्तियों पर आधारित होता है, जिसकी कि वह तुरंत संतुष्टि चाहता है। सुख की चाहत एकमात्र उसका प्रेरक है। यह एक ऐसी अवस्था है, जिसमें बालक का जितना अधिक
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