Shiksha me khelo Shiksha me khelo ka mahatva par nibandh
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जैसा कि अंग्रेजी में कहा जाता है, "सभी काम और कोई नाटक जैक को एक सुस्त लड़का बनाता है"। यह भूल गया है कि अकादमिक शिक्षा और खेल शिक्षा एक दूसरे के पूरक हैं। वे एक ही सिक्के के दोनों पक्षों के समान हैं। यदि अकादमिक पाठ्यक्रम के साथ खेल शिक्षा की जाती है, तो छात्र का समग्र व्यक्तित्व काफी हद तक बढ़ जाता है। नेतृत्व, साझाकरण, टीम भावना और सहिष्णुता के गुण खेल से सीखे जाते हैं।
खेल शिक्षा न केवल छात्रों को शारीरिक सहनशक्ति बनाए रखने के लिए सिखाती है, बल्कि आज्ञाकारिता, अनुशासन, जीतने का दृढ़ संकल्प, इच्छाशक्ति आदि की आदत भी है। तर्क, मानसिक विकास, व्यावसायिक विशेषज्ञता की शक्ति छात्रों की शैक्षणिक शिक्षा से आती है। इसलिए, शिक्षाविदों के साथ-साथ खेल शिक्षा छात्रों के समग्र विकास में परिणाम देती है।
आजकल शिक्षा की व्यवस्था छात्रों को उनके मानसिक विकास पर अधिक तनाव देती है और शारीरिक गतिविधियों को पूरी तरह से अस्वीकार करती है। इसका समग्र परिणाम यह है कि स्नातकों और पेशेवरों के विकासशील समूहों में कमजोर शरीर और गरीब शरीर हैं। पाठ्यक्रम में छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए खेल, खेल और शारीरिक स्वास्थ्य शिक्षा शामिल होनी चाहिए।
खेल शिक्षा न केवल छात्रों को शारीरिक सहनशक्ति बनाए रखने के लिए सिखाती है, बल्कि आज्ञाकारिता, अनुशासन, जीतने का दृढ़ संकल्प, इच्छाशक्ति आदि की आदत भी है। तर्क, मानसिक विकास, व्यावसायिक विशेषज्ञता की शक्ति छात्रों की शैक्षणिक शिक्षा से आती है। इसलिए, शिक्षाविदों के साथ-साथ खेल शिक्षा छात्रों के समग्र विकास में परिणाम देती है।
आजकल शिक्षा की व्यवस्था छात्रों को उनके मानसिक विकास पर अधिक तनाव देती है और शारीरिक गतिविधियों को पूरी तरह से अस्वीकार करती है। इसका समग्र परिणाम यह है कि स्नातकों और पेशेवरों के विकासशील समूहों में कमजोर शरीर और गरीब शरीर हैं। पाठ्यक्रम में छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए खेल, खेल और शारीरिक स्वास्थ्य शिक्षा शामिल होनी चाहिए।
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Answer:सदाचार शब्द ‘सत् + आचार’ से मिलकर बना है । सदाचार और शिष्टाचार में अन्तर है । सदाचार चरित्र की पवित्रता को और शिष्टाचार व्यवहारिक कुशलता को प्रकट करता है ।
मनुष्य की मनुष्यता उसके चरित्र में निहित होती है । चरित्रहीन व्यक्ति को हमारे समाज में पशु भी कहा गया है । सदाचार के गुणों का विकास करने के लिए माता, पिता और गुरुजनों को बचपन से ही ध्यान देना चाहिए । जैसे माली पौधों को स्वस्थ रखने के लिए पानी, खाद डालता है, उसके आस-पास की घास और गंदगी को साफ करता है, सूखे पत्तों और टहनियों को काट कर फेंकता है उसी प्रकार बालक में भी अच्छी आदतों का विकास कर उन्हें शिष्ट बालक बनाना चाहिए जिस से आगे चलकर राष्ट्र का भविष्य उज्ज्वल हो ।
दुष्ट व्यक्ति भी अपनी व्यवहार कुशलता से शिष्ट प्रतीत हो सकता है
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