Shiksha mein khelo ka mahatva 300 words
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शिक्षा का अभिप्राय केवल पुस्तकों का ज्ञान अर्जित करना ही नहीं, अपितु शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के मानसिक विकास के साथ-साथ उसके शारीरिक विकास की ओर भी ध्यान देना है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए खेल-कूद का महत्व किसी से कम नहीं। यदि शिक्षा से बुद्धि का विकास होता है तो खेलों से शरीर का । ईश्वर ने मनुष्य को शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक-तीन शक्तियाँ प्रदान की हैं। जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए इन तीनों का संतुलित रूप से विकास होना आवश्यक है।
शिक्षा तथा खेल एक-दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरा अपंग है। शिक्षा यदि परिश्रम लगन, संयम, धैर्य तथा भाईचारे का उपदेश देती है तो खेल के मैदान में विद्यार्थी इन गुणों को वास्तविक रूप में अपनाता है। जैसे कहा भी गया है- ‘स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है।’ –
यदि व्यक्ति का शरीर ही स्वस्थ नहीं है तो संसार के सभी सुख तथा भोग-विलास बेकार हैं। एक स्वस्थ शरीर ही सभी सुखों का भोग कर सकता है। रोगी व्यक्ति सदा उदास तथा अशांत रहता है। उसे कोई भी कार्य करने में आनंद प्राप्त नहीं होता है। स्वस्थ व्यक्ति सभी कार्य प्रसन्नचित होकर करता है। इस प्रकार स्वस्थ शरीर एक नियामत है। |
खेलना बच्चों के स्वभाव में होता है। आज की शिक्षा-प्रणाली में इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि बच्चों की पुस्तकों की अपेक्षा खेलों के माध्यम से शिक्षा ग्रहण करवाई जाएँ। आज शिक्षा-विदों ने खेलों को शिक्षा का विषय बना दिया है, ताकि विद्यार्थी खेल-खेल में ही जीवन के सभी मूल्यों को सीख जाएं और अपने जीवन में अपनाएँ।
अच्छे स्वस्थ की प्राप्ति के लिए अनेक प्रकार के खेलों का सहारा लिया जा सकता है। दौड़ना, खुदना, कबड्डी, टेनिस, हॉकी, फुटबॉल, क्रिकेट, जिमनास्टिक, योगाभ्यास आदि से उत्तम व्यायाम होता है। इनमें से कुछ आउटडोर होते हैं और कुछ इंडोर । आउटडोर खेल खुले मैदान में खेले जाते हैं। इंडोर खेलों को घर के अंदर भी खेला जा सकता है। इनमें कैरम, शतरंज, टेबलटेनिस आदि हैं। न केवल अपने देश में, बल्कि विदेशों में भी खेलों का आयोजन होता रहता है। खेलों से न केवल खिलाड़ियों का अपितु देखने वालों का भी भरपूर मनोरंजन होता है। आज रेडियो तथा टी०बी० आदि माध्यमों के विकास से हम आँखों देखा हाल अथवा सीधा प्रसारण देख सकते हैं तथा उभरते खिलाड़ी प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं।
आज के युग में खेल न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि इनका सामाजिक तथा राष्ट्रीय महत्व भी है। इनमें स्वास्थ्य प्राप्ति के साथ-साथ मनोरंजन भी होता है। इनसे छात्रों में अनुशासन की भावना आती है। खल के मैदान में छात्रों को नियमों में बंधकर खेलना पड़ता है, जिससे आपसी सहयोग और मेल-जोल की भावना का भी विकास होता है। खेल-कूद मनुष्य में साहस और उत्साह की भावना पैदा करते हैं। विजय तथा पराजय दोनों स्थितियों को खिलाड़ी प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता है। खेल-कूद से शरीर में स्फूर्ति आती है, बुद्धि का विकास होता है तथा रक्त संचार बढ़ता है। खेलों में भाग लेने से आपसी मन-मुटाव समाप्त हो जाता है तथा खेल भावना का विकास होना है। जीविका-अर्जन में भी खेलों का बहुत महत्व है।
आज खेलों में ऊँचा स्थान प्राप्त खिलाड़ी संपन्न व्यक्तियों में गिने जाते हैं। किसी भी खेल में मान्यता प्राप्त खिलाड़ी को ऊँचे पद पर आसीन कर दिया जाता है तथा उसे सभी सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं। खेल राष्ट्रीय एकता की भावना को भी विकसित करते हैं। राष्ट्रीय अथवा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलने वाले खिलाड़ी अपना तथा अपने देश का नाम रोशन करते हैं।
भारत जैसे विकासशील देश के लिए आवश्यकता है कि प्रत्येक युवक-युवती खेलों में भाग ले तथा श्रेष्ठता प्राप्त करने का प्रयास करे। आज का युग प्रतियोगिता का युग है और इसी दौड़ में किताबी कीड़ा बनना पर्याप्त नहीं, बल्कि स्वस्थ, सफल तथा उन्नत व्यक्ति बनने के लिए आवश्यक है-मानसिक, शारीरिक तथा आत्मिक विकास।
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शिक्षा तथा खेल एक-दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरा अपंग है। शिक्षा यदि परिश्रम लगन, संयम, धैर्य तथा भाईचारे का उपदेश देती है तो खेल के मैदान में विद्यार्थी इन गुणों को वास्तविक रूप में अपनाता है। जैसे कहा भी गया है- ‘स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है।’ –
यदि व्यक्ति का शरीर ही स्वस्थ नहीं है तो संसार के सभी सुख तथा भोग-विलास बेकार हैं। एक स्वस्थ शरीर ही सभी सुखों का भोग कर सकता है। रोगी व्यक्ति सदा उदास तथा अशांत रहता है। उसे कोई भी कार्य करने में आनंद प्राप्त नहीं होता है। स्वस्थ व्यक्ति सभी कार्य प्रसन्नचित होकर करता है। इस प्रकार स्वस्थ शरीर एक नियामत है। |
खेलना बच्चों के स्वभाव में होता है। आज की शिक्षा-प्रणाली में इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि बच्चों की पुस्तकों की अपेक्षा खेलों के माध्यम से शिक्षा ग्रहण करवाई जाएँ। आज शिक्षा-विदों ने खेलों को शिक्षा का विषय बना दिया है, ताकि विद्यार्थी खेल-खेल में ही जीवन के सभी मूल्यों को सीख जाएं और अपने जीवन में अपनाएँ।
अच्छे स्वस्थ की प्राप्ति के लिए अनेक प्रकार के खेलों का सहारा लिया जा सकता है। दौड़ना, खुदना, कबड्डी, टेनिस, हॉकी, फुटबॉल, क्रिकेट, जिमनास्टिक, योगाभ्यास आदि से उत्तम व्यायाम होता है। इनमें से कुछ आउटडोर होते हैं और कुछ इंडोर । आउटडोर खेल खुले मैदान में खेले जाते हैं। इंडोर खेलों को घर के अंदर भी खेला जा सकता है। इनमें कैरम, शतरंज, टेबलटेनिस आदि हैं। न केवल अपने देश में, बल्कि विदेशों में भी खेलों का आयोजन होता रहता है। खेलों से न केवल खिलाड़ियों का अपितु देखने वालों का भी भरपूर मनोरंजन होता है। आज रेडियो तथा टी०बी० आदि माध्यमों के विकास से हम आँखों देखा हाल अथवा सीधा प्रसारण देख सकते हैं तथा उभरते खिलाड़ी प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं।
आज के युग में खेल न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि इनका सामाजिक तथा राष्ट्रीय महत्व भी है। इनमें स्वास्थ्य प्राप्ति के साथ-साथ मनोरंजन भी होता है। इनसे छात्रों में अनुशासन की भावना आती है। खल के मैदान में छात्रों को नियमों में बंधकर खेलना पड़ता है, जिससे आपसी सहयोग और मेल-जोल की भावना का भी विकास होता है। खेल-कूद मनुष्य में साहस और उत्साह की भावना पैदा करते हैं। विजय तथा पराजय दोनों स्थितियों को खिलाड़ी प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता है। खेल-कूद से शरीर में स्फूर्ति आती है, बुद्धि का विकास होता है तथा रक्त संचार बढ़ता है। खेलों में भाग लेने से आपसी मन-मुटाव समाप्त हो जाता है तथा खेल भावना का विकास होना है। जीविका-अर्जन में भी खेलों का बहुत महत्व है।
आज खेलों में ऊँचा स्थान प्राप्त खिलाड़ी संपन्न व्यक्तियों में गिने जाते हैं। किसी भी खेल में मान्यता प्राप्त खिलाड़ी को ऊँचे पद पर आसीन कर दिया जाता है तथा उसे सभी सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं। खेल राष्ट्रीय एकता की भावना को भी विकसित करते हैं। राष्ट्रीय अथवा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलने वाले खिलाड़ी अपना तथा अपने देश का नाम रोशन करते हैं।
भारत जैसे विकासशील देश के लिए आवश्यकता है कि प्रत्येक युवक-युवती खेलों में भाग ले तथा श्रेष्ठता प्राप्त करने का प्रयास करे। आज का युग प्रतियोगिता का युग है और इसी दौड़ में किताबी कीड़ा बनना पर्याप्त नहीं, बल्कि स्वस्थ, सफल तथा उन्नत व्यक्ति बनने के लिए आवश्यक है-मानसिक, शारीरिक तथा आत्मिक विकास।
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(NO GOOGLE PASTE)
शिक्षा में खेलों का महत्व।
एक कहावत प्रचलित थी पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब खेलोगे कूदोगे मजाके खराब, लेकिन यह कहावत सार्थक नहीं है। मानव जीवन, मानसिक, शारीरिक और आत्मिक शक्तियों के विकास से ही संपूर्ण बनाता है। माना जाता है कि संसार के संपूर्ण ऐश्वर्य के पीछे मानव मस्तिष्क के विकास का इतिहास उठा हुआ है, लेकिन यह कभी नहीं भूला होना चाहिए कि केवल मस्तिष्क का विकास एकांगी है। मस्तिष्क के साथ-साथ शारीरिक शक्ति का भी होना अनिवार्य है।अतः मस्तिष्क के विकास के लिए जहां शिक्षा की आवश्यकता है, वहां शारीरिक शक्ति को प्राप्त करने के लिए खेलकूद की भी आवश्यकता है।
खेल दो प्रकार के होते हैं एक वे जो घर में बैठकर खेले जा सकते हैं। ये व्यायाम कम और मनोरंजन ज्यादा होता है। जैसे कैराम, बोर्ड, लूडो, शतरंज, तार आदि अन्य प्रकार के खेल मैदान में खेले जाते हैं। जैसे क्रिकेट सॉकर, वॉलीबॉल, बास्केटबॉल कबड्डी आदि इन खेलों में व्यायाम के साथ साथ मनोरंजन भी होता है।
छात्र जीवन में खेलों का बड़ा महत्व है। खेल केवल मनोरंजन का ही साधन नहीं है। खेलों से खिलाड़ी अधिक छात्र का शारीरिक स्वास्थ्य मजबूत होता है और इसमें शक्तिहीनता और चुस्ती का संचार होता है। इसलिए प्राचीन काल से ही खेलों का महत्व दिया जाता है। छात्र आश्रमों में अध्ययन के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के खेलों में भी प्राप्त होते हैं। इस खेल के युद्ध की दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं। खेलों से केवल शरीर ही नहीं अपितु इससे मस्तिष्क और मन का भी पर्याप्त विकास होता है क्योंकि स्वस्थ और पुष्ट शरीर में ही सुंदर मस्तिष्क का वास होता है। रात दिन किताबें पर ही दृष्टि गड़ाए रखने वाले छात्र जीवन में कभी सफल नहीं हो सकते। शारीरिक शक्ति की कमी में से सब गुण व्यर्थ से। होते हैं।
खेलों से विद्यार्थी में स्थिरता, सहयोग की भावना और क्षमा शीलता, आज्ञा पालन और अनुशासन आदि कई गुणों का समावेश भी होता है। बहुत से छात्र तो खेलों के बल पर ही ऊंचे ऊंचे पदों को प्राप्त कर लेते हैं। खेल ही हमारे मन में आत्मविश्वास की भावना भरते हैं। अतः शिक्षा के साथ-साथ क्रीडा में भी दृढ़ होना उज्जवल भविष्य का प्रतीक है।
अतः जीवन में शिक्षा के साथ-साथ खेलों के प्रति भी रुचि होनी चाहिए। जिस प्रकार मस्तिष्क और हृदय का समय अभिनव आर्य है, उसी प्रकार शिक्षा और क्रीड़ा का भी प्रत्येक विद्यालय में ऐसे खेलों का प्रबंधन होना चाहिए, जिसमें प्रत्येक छात्र भाग में अपना शारीरिक और मानसिक विकास कर सके।
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