Social Sciences, asked by Rajnishpurohit, 9 months ago

Shishu Mrityu Dar aur Mrityu Dharmendra spasht Karen​

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Answered by sumit2998
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Answer:

जन्म दर एक कैलेंडर वर्ष में प्रति सहस्र जनसंख्या में घटित होने वाली लेखबद्ध जीवितजात संख्या है। किसी देश की स्वास्थ्य दशा की वास्तविक जानकारी प्राप्त करने के लिये तथा उसकी क्रमोन्नति अथवा अवनति का पता लगाने के लिए नाना प्रकार के जन्ममरण के आँकड़ों में देश की जनसंख्या, जन्मसंख्या, मृत्युसंख्या आदि हैं। विवाह, शिक्षा, व्यवसाय, आय व्यय आदि अनेक अनेक अर्थशास्त्रीय और समाजशास्त्रीय आँकड़े भी उपयोगी होते हैं।[1]

जन्म-मरण का लेखा

देश के विभिन्न नगरों तथा ग्रामों में सर्वत्र प्रत्येक व्यक्ति के जन्म-मरण का नगरपालिका, ग्राम पंचायत तथा अन्य निकायों द्वारा लेखा रखा जाता है। परिवार के मुख्य सदस्य द्वारा जन्ममरण की सूचना देना अनिवार्य है। इस प्रकार के प्राप्त आँकड़ों के तुलनात्मक अध्ययन द्वारा जनता की स्वास्थ्य दशा की जानकारी प्राप्त की जाती है। दो या अधिक स्थानों की जनसंख्या की न्यूनाधिकता के आधार पर परस्पर तुलना की जा सकती। जिस स्थान की जनसंख्या अधिक होगी वहाँ अधिक बालक जन्म लेंगे। इस कारण जनसंख्या की अपेक्षा जन्म दर द्वारा तुलना करना अधिक समीचीन होता है, जो जन्मसंख्या और जन्मसंख्या के परस्पर अनुपात के आधार पर निर्धारित की जाती है।

जनगणना

मुख्य लेख : जनगणना

किसी नगर या विशेष ग्राम की जन्मसंख्या का पता जनगणना द्वारा लगाया जाता है, जो प्रति दस वर्ष के अंतर पर व्यवस्थित रीति से की जाती है। उस स्थान में प्रति वर्ष पहिली जनवरी से इकतीस दिसंबर तक पूरे वर्ष भर में जीवित अवस्था में जन्म लेनेवाले सभी बालक-बालिकाओं की संख्या नगरपालिका तथा ग्राम पंचायत से प्राप्त की जाती है। जिस बालक ने जन्मते ही एक बार भी साँस लिया हो वह जीवितजात माना जाता है, भले ही वह कुछ ही देर बाद मर जाए। उपर्युक्त जनसंख्या तथा जन्मसंख्या के आँकड़ों से साधारण गणित द्वारा जन्म दर का परिकलन किया जाता है।

जनगणना प्रति दस वर्ष में एक बार की जाती है। जन्ममरण तथा आवागमन के कारण जन्मसंख्या निरंतर घटती-बढ़ती रहती है। इस कारण सन्‌ 1961 ई. की जनगणना के आँकड़ों का 1963 ई. में उपयोग करना ठीक नहीं हो सकता। इसी प्रकार किसी वर्ष की पहली जनवरी की जनसंख्या उसी वर्ष के 365 दिन पश्चात्‌ इकतीस दिसंबर को नही व्यवहृत हो सकती। इस कठिनाई को दूर करने के लिए प्रति वर्ष तीस जून की मध्यवर्गीय जनसंख्या का परिकलन किया जाता है और जन्ममरण संबंधी अनुपातों में इसी मध्यवर्षीय अनुमानित जनसंख्या का उपयोग किया जाता है। गत दो दशकों की जनगणनाओं में प्राप्त जनसंख्या की घटाबढ़ी के आधार पर मध्यवर्षीय जनसंख्या का परिकलन किया जाता है। परिकलन करते समय यह परिकल्पना की जाती है कि गत दशक में जनसंख्या में जो फेरफार हुआ हैं, चालू दशक में भी यथावत्‌ विद्यमान रहा है।[1] ==जन्म दर निकालने का सूत्र मध्यवर्षीय जनसंख्या के आधार पर जन्म दर निकालने का सूत्र इस प्रकार है :

किसी स्थान की वर्ष विशेष की जन्मदर=(उस वर्ष में जीवित जात बालकों की संख्या*1000)/30 जून की मध्यवर्षीय जनसंख्या

पूरे वर्ष भर की जनसंख्या के स्थान में यदि एक सप्ताह अथवा मास (चार सप्ताह अथवा 28 दिन का मास और 52 सप्ताह का वर्ष) में लेखबद्ध जन्मसंख्या के आधार पर जो जन्म दर गणित द्वारा निकाली जाती है, उसे निम्नलिखित सूत्र से पूरे वर्ष की जन्म दर का रूप दिया जाता है।

सप्ताहगत जन्म दर=(सप्ताह में घटित जीविततजात बालकों की संख्या 1000*365)/(30 जून की मध्यवर्षीय जनसंख्या*7)

मासगत जन्म दर=(चार सप्ताह में घटित जीविततजात बालकों की संख्या 1000*365)/(30 जून की मध्यवर्षीय जनसंख्या*28)

किसी स्थान विशेष की लेखबद्ध जन्मसंख्या सर्वथा शुद्ध नहीं होती। बड़े बड़े नगरों में चिकित्सालयों की सुविधा होने के कारण दूर और पास के अन्य स्थानों की अनेक माताओं की प्रसव क्रिया चिकित्सालयों में होती है। वास्तविक जन्म दर तो उसी स्थान के निवासियों से संबंधित होनी चाहिए। अन्य स्थानों के निवासियों में होने वाले प्रसवों की गुणना उनके मूल निवासस्थान में ही की जानी चाहिए, किंतु भारत में इस प्रकार का निवासस्थानिक संशोधन कठिन जान कर नहीं किया जाता। निवासस्थान संबंधी संशोधन न करने के कारण इस देश में असंशोधित जन्म दर का ही चलन है।

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