Shivanand Goswami par Sanskrit nibandh
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भारत के विपुल गौरवशाली और वैविध्यपूर्ण सांस्कृतिक-इतिहास के निर्माण में जिन महापुरुषों का योगदान चिरस्मरणीय रहा है - उनमें आंध्रप्रदेश की लम्बी विद्वत-परम्परा की एक सुदृढ़ कड़ी के रूप में सत्रहवी शताब्दी के तैलंग ब्राह्मण, दार्शनिक-कवि तंत्र-चूड़ामणि शिवानन्द गोस्वामी (सं. १७१०-१७९७) का सांस्कृतिक और साहित्यिक योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है|[5] उत्तर भारतीय आन्ध्र-तैलंग-भट्ट-वंशवृक्ष[6] के विवरणानुसार "तैलंग ब्राह्मणों के आत्रेय गोत्र में कृष्ण-यजुर्वेद के तैत्तरीय आपस्तम्ब में मूलपुरुष श्रीव्येंकटेश अणणम्मा थे"- जिनकी छठी पीढ़ी में जगन्निवासजी (प्रथम) के परिवार में शिवानन्द गोस्वामी के रूप में एक ऐसे विलक्षण विद्वान[7] ने जन्म लिया जिनके तप, साधना, ज्ञान, शाक्त-भक्ति, तंत्र-सिद्धि और अध्यवसाय से प्रभावित हो कर काशी, चंदेरी, जयपुर, बीकानेर, ओरछा आदि राज्यों के तत्कालीन नरेशों ने इन्हें न केवल राज-सम्मानस्वरूप बड़ी-बड़ी जागीरें ही भेंट कीं [1] बल्कि अपने कुलगुरु और प्रथमपूज्य के रूप में आजीवन अपने साथ रख कर अपने-अपने राज्यों के सम्मान में श्रीवृद्धि भी की। ऐतिहासिक स्रोतों के अनुरूप शिवानन्द गोस्वामी तक का वंशवृक्ष[8] कुछ इस प्रकार उपलब्ध होता है-
श्रीव्येंकटेश अन्न्म्मा→ → → → → → श्रीसमर पुंगव दीक्षित→ → → → → श्रीतिरुमल्ल्ल दीक्षित→ → → → श्रीश्रीनिकेतन (प्रथम)→ → → श्रीश्रीनिवास→ → श्रीजगन्निवास (प्रथम)→ श्रीशिवानन्द गोस्वामी (जो बाद में 'शिरोमणि भट्ट' के नाम से भी विख्यात हुए).