short answers of manviya karuna ki divya chamak
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मानवीय करुणा की दिव्य चमक एक संस्मरण है जो की सर्वेश्वर दयाल सक्सेना लिखा गया है।अपने को भारतीय कहने वाले फादर बुल्के जन्मे तो बेल्जियम के रैम्सचैपल शहर में जो गिरजों ,पादरियों ,धर्मगुरुओं भूमि कही जाती है परन्तु उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाया भारत को। फादर बुल्के एक सन्यासी थे परन्तु पारम्परिक अर्थ में नहीं। सर्वेश्वर का फादर बुल्के के साथ अंतरंग सम्बन्ध थे जिसकी झलक हमें इस इस संस्मरण में मिलती है। पाठ के प्रारम्भ लेखक को ईष्वर से शिकायत है कि फादर के रगों में दूसरों के लिए मिठास भरे अमृत था तो वह क्यों जहरबाद से मरे। वे प्राणी को गले लगते थे। वे इलाहाबाद लेखक से मिलने हमेशा आते थे।
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