short essay on ashiksha samasya aur samadhan i promise to give thumbs up please
Answers
Answered by
40
आज़ाद भारत में वर्तमान में अगर सबसे ज्यादा प्रयोग किसी क्षेत्र में हो रहें हैं तो वह है- शिक्षा क्षेत्र |लेकिन अगर उद्देश्य पर गहराई से चिंतन करें तो पायेंगें कि प्रयास सकारात्मक नहीं हैं ,यह इसे अतल में ले जाने वाले हैं |कारण की तह में जाने की जरूरत नहीं हैं ,क्योंकि पश्चिम का अन्धानुकरण स्पष्ट परिलक्षित है |
हर देश की अपनी संस्कृति ,सामाजिक संरचना ,आवश्यकता और भौगोलिक विशेषता होती है | उस पर हम किसी अन्य व्यवस्था को थोपने का प्रयास करेंगे तो परिणाम विपरीत ही प्राप्त होंगे ,क्योंकि जहाँ अनुकूलता नहीं होती वहाँ प्रतिकूलता विद्यमान रहती है |
शिक्षा के क्षेत्र में यही तो हमारी सरकारें कर रही हैं |वे अपनी गौरवमयी प्राचीन शिक्षा प्रणाली को हेय मानकर पश्चिम की प्रणालियों का अन्धानुकरण कर रही हैं ,जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा का ह्रास दिन प्रतिदिन हो रहा है |वर्त्तमान में लर्निंग (सीखना)पद्दति पर पूरा जोर दिया जा रहा है |सारा ध्यान इस बात पर केन्द्रित है कि बालक सीखे |
अब हम लौटकर हमारी प्राचीन शिक्षण पद्दति को देखे तो पायेंगे कि वहाँ ध्यान केन्द्रित था कि बालक समझे |सीखना और समझना, उपरी स्तर पर इनमें कोई खास भेद दृष्टिगोचर नहीं होता है ,लेकिन इन शब्दों की गहराई में धरा गगन का अंतर है |
मसलन हम पालतू पशु जैसे घोडा ,ऊँट इत्यादि को सतत प्रयासों और बार बार के दोहरान से नाचना तो सिखा देते हैं,पशु ने नाचना तो सीख लिया लेकिन,नृत्य क्या है ?क्यों किया जाता है ?इसका महत्त्व क्या है ?वह इसके गुण दोषों की विवेचना नहीं कर सकता,अर्थात पशु ने नृत्य करना तो सीख लिया लेकिन उसके महत्त्व से वह अपरिचित रहता है |उसे इन बातों की समझ नहीं होती है,यही सीखने और समझने में मूलभूत अंतर है|
जब तक बालक में सीखने के साथ समझ उत्पन्न नहीं होगी उसका सर्वांगीण विकास नहीं होगा उसकी शिक्षा अधूरी रहेगी|यह हमारी शिक्षा व्यवस्था कि खामी है जिसका खामियाजा देश भुगत रहा है |
हमारी प्राचीन शिक्षा पद्दति गुरू केन्द्रित थी,वहाँ गुरू का दर्जा ईश्वर से ऊपर था|इस गुरुकुल पद्दति में अध्ययन कर संसार में अपना नाम अमर करने वालों और जगत का उपकार करने वालों के सिर्फ नामों भर से एक विशाल पुस्तक की रचना हो सकती है |इतिहास गवाह है कि उन्हीं लोगों ने भारत को विश्व गुरू का दर्जा दिलवाया था |वर्तमान शिक्षण व्यवस्था बाल केन्द्रित है,गुरू गौण है |सूर्य जो रोशनी और ऊर्जा का प्रदाता है,हम उसके महत्त्व को अनदेखा कर सिर्फ सौर उर्जा का महत्त्व प्रतिपादित करें तो हमारा यह कृत्य सारहीन होगा या सराहनीय|निर्णय करने के लिए आप स्वतन्त्र हैं|
वर्तमान में जो राजकीय विद्यालय हैं उन्हें शिक्षा मंदिर से भोजनालय में तब्दील कर दिया गया है |जहाँ बालक को ज्ञानार्जन के लिए आना चाहिए था वहाँ वह खाना खाने को आता है |बालक को पोषाहार मिले इससे उत्तम कोई बात नहीं हो सकती ,लेकिन इसका दायित्व या तो सरकार को स्वयं या किसी सामाजिक संरचना को सौपना बेहतर निर्णय साबित होता जिससे ना तो शिक्षण व्यवस्था प्रभावित होती ना छात्रों का अहित होता |
कहने को कुछ भी कहें लेकिन वास्तव में वर्तमान शासन व्यवस्था वर्ग भेद की नीति का अनुसरण कर रही है|जिससे अमीर और अमीर तथा गरीब और गरीब होता जा रहा है और पूरा ध्यान इस और केन्द्रित है कि गरीब के बालक उनके बालकों के समकक्ष न होने पाए,इस तथ्य से ध्यान हटाने के लिए दोष दूसरों के सिर थोपे जा रहे हैं |
अगर सरकार की नीयत साफ़ है और वह वाकई देश के सभी बालकों का सर्वांगीण विकास चाहती है तो सिर्फ संसद में एक बिल पास कर दे जिसमें प्रावधान हो की चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से लेकर सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी तक,वार्ड पंच से लेकर प्रधान मंत्री तक अर्थात सभी श्रेणी के राजकीय कर्मचारी,अधिकारी तथा राजनेताओं के बच्चों को राजकीय विद्यालयों में अध्ययन अनिवार्य होगा अन्यथा उनकी सेवा समाप्त कर दी जाएगी,उन्हें पदच्युत कर दिया जाएगा |
सिर्फ और सिर्फ इस दिशा में उठाया गया यह एक कदम पर्याप्त होगा शिक्षण व्यवस्था के परिमार्जन के लिए |परिणाम आपके सामने होगा कि आज हम जिस शिक्षा की दशा का रोना रो रहे हैं कल उसी के गीत गाते नज़र आयेंगे |—————–जय हिन्द !
हर देश की अपनी संस्कृति ,सामाजिक संरचना ,आवश्यकता और भौगोलिक विशेषता होती है | उस पर हम किसी अन्य व्यवस्था को थोपने का प्रयास करेंगे तो परिणाम विपरीत ही प्राप्त होंगे ,क्योंकि जहाँ अनुकूलता नहीं होती वहाँ प्रतिकूलता विद्यमान रहती है |
शिक्षा के क्षेत्र में यही तो हमारी सरकारें कर रही हैं |वे अपनी गौरवमयी प्राचीन शिक्षा प्रणाली को हेय मानकर पश्चिम की प्रणालियों का अन्धानुकरण कर रही हैं ,जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा का ह्रास दिन प्रतिदिन हो रहा है |वर्त्तमान में लर्निंग (सीखना)पद्दति पर पूरा जोर दिया जा रहा है |सारा ध्यान इस बात पर केन्द्रित है कि बालक सीखे |
अब हम लौटकर हमारी प्राचीन शिक्षण पद्दति को देखे तो पायेंगे कि वहाँ ध्यान केन्द्रित था कि बालक समझे |सीखना और समझना, उपरी स्तर पर इनमें कोई खास भेद दृष्टिगोचर नहीं होता है ,लेकिन इन शब्दों की गहराई में धरा गगन का अंतर है |
मसलन हम पालतू पशु जैसे घोडा ,ऊँट इत्यादि को सतत प्रयासों और बार बार के दोहरान से नाचना तो सिखा देते हैं,पशु ने नाचना तो सीख लिया लेकिन,नृत्य क्या है ?क्यों किया जाता है ?इसका महत्त्व क्या है ?वह इसके गुण दोषों की विवेचना नहीं कर सकता,अर्थात पशु ने नृत्य करना तो सीख लिया लेकिन उसके महत्त्व से वह अपरिचित रहता है |उसे इन बातों की समझ नहीं होती है,यही सीखने और समझने में मूलभूत अंतर है|
जब तक बालक में सीखने के साथ समझ उत्पन्न नहीं होगी उसका सर्वांगीण विकास नहीं होगा उसकी शिक्षा अधूरी रहेगी|यह हमारी शिक्षा व्यवस्था कि खामी है जिसका खामियाजा देश भुगत रहा है |
हमारी प्राचीन शिक्षा पद्दति गुरू केन्द्रित थी,वहाँ गुरू का दर्जा ईश्वर से ऊपर था|इस गुरुकुल पद्दति में अध्ययन कर संसार में अपना नाम अमर करने वालों और जगत का उपकार करने वालों के सिर्फ नामों भर से एक विशाल पुस्तक की रचना हो सकती है |इतिहास गवाह है कि उन्हीं लोगों ने भारत को विश्व गुरू का दर्जा दिलवाया था |वर्तमान शिक्षण व्यवस्था बाल केन्द्रित है,गुरू गौण है |सूर्य जो रोशनी और ऊर्जा का प्रदाता है,हम उसके महत्त्व को अनदेखा कर सिर्फ सौर उर्जा का महत्त्व प्रतिपादित करें तो हमारा यह कृत्य सारहीन होगा या सराहनीय|निर्णय करने के लिए आप स्वतन्त्र हैं|
वर्तमान में जो राजकीय विद्यालय हैं उन्हें शिक्षा मंदिर से भोजनालय में तब्दील कर दिया गया है |जहाँ बालक को ज्ञानार्जन के लिए आना चाहिए था वहाँ वह खाना खाने को आता है |बालक को पोषाहार मिले इससे उत्तम कोई बात नहीं हो सकती ,लेकिन इसका दायित्व या तो सरकार को स्वयं या किसी सामाजिक संरचना को सौपना बेहतर निर्णय साबित होता जिससे ना तो शिक्षण व्यवस्था प्रभावित होती ना छात्रों का अहित होता |
कहने को कुछ भी कहें लेकिन वास्तव में वर्तमान शासन व्यवस्था वर्ग भेद की नीति का अनुसरण कर रही है|जिससे अमीर और अमीर तथा गरीब और गरीब होता जा रहा है और पूरा ध्यान इस और केन्द्रित है कि गरीब के बालक उनके बालकों के समकक्ष न होने पाए,इस तथ्य से ध्यान हटाने के लिए दोष दूसरों के सिर थोपे जा रहे हैं |
अगर सरकार की नीयत साफ़ है और वह वाकई देश के सभी बालकों का सर्वांगीण विकास चाहती है तो सिर्फ संसद में एक बिल पास कर दे जिसमें प्रावधान हो की चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से लेकर सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी तक,वार्ड पंच से लेकर प्रधान मंत्री तक अर्थात सभी श्रेणी के राजकीय कर्मचारी,अधिकारी तथा राजनेताओं के बच्चों को राजकीय विद्यालयों में अध्ययन अनिवार्य होगा अन्यथा उनकी सेवा समाप्त कर दी जाएगी,उन्हें पदच्युत कर दिया जाएगा |
सिर्फ और सिर्फ इस दिशा में उठाया गया यह एक कदम पर्याप्त होगा शिक्षण व्यवस्था के परिमार्जन के लिए |परिणाम आपके सामने होगा कि आज हम जिस शिक्षा की दशा का रोना रो रहे हैं कल उसी के गीत गाते नज़र आयेंगे |—————–जय हिन्द !
Answered by
29
पिछले लगभग दो सौ वर्षों से गरीबी तथा अशिक्षा भारत की प्रमुख समस्या रही है | यह दोनों मात्र समस्या ही नहीं बल्कि एक अभिशाप है | भारत की 70 फीसदी आबादी अभी भी भरपेट खाना नहीं खा पाती | भारत में आर्थिक विकास जितना बढ़ रहा है उतनी ही गरीबी भी बढ़ रही है | वास्तव में गरीबी और विषमता घटने की बजाय बढ़ गई है | सन २०११ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 37.2% लोग गरीब है | यह आंकड़ा 2004-05 में किये गए 27.5% के आकलन से करीब 10 फीसदी अधिक है | इसका मतलब है कि 11 वर्षो में अतिरिक्त 11 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे सरक गए हैं | साक्षरता का प्रतिशत जरूर बढ़ा है इन वर्षों में किंतु अशिक्षा अभी भी दूर नहीं हुई है |
आजादी के बाद के पिछले ६७ वर्षों में देश ने कई क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की है | देश के करोड़ों लोगों को इसका लाभ भी हुआ है | लोगों की संपन्नता में वृद्धि हुई है | जीवनस्तर में सुधार हुआ है | लेकिन समाज का एक वर्ग अब भी ऐसा है जो इस प्रगति का कोई लाभ नहीं उठा पाया है | वह वर्ग है गरीबों तथा अशिक्षितों का | उन की हालत पहले से ज्यादा खराब हो रही है | गरीबी के कारण वे स्वयं अपनी प्रगति के लिए कुछ नहीं कर पाते | सरकार यदि उनके लिए कुछ करे तो उन्हें पता भी नहीं चलता क्योंकि वे अशिक्षित हैं | सरकारी योजनाओं का लाभ उन तक पहुँचाता ही नहीं | स्थिति ऐसी है कि अशिक्षा के कारण उन्हें अपने मूलभूत अधिकारों तक का पता नहीं | इस स्थिति के कारण देश को अपरिमित हानि हो रही है |
देश के लोकतंत्र की सफलता बहुत बड़े पैमाने में इस बात पर निर्भर करती है कि देश के लोग शिक्षित हैं या नहीं | सही प्रतिनिधि चुनना, उसके कार्यों का मूल्यांकन, सरकार के कार्यों का मुल्यांकन यह सारे चीजें बहुत जरूरी है लोकतंत्र की सफलता के लिए | एक अशिक्षित व्यक्ति से इस बात की उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह अपनी इन जिम्मेदारियों को पूरा करे | उसमे यह योग्यता ही नहीं होती | इस तरह देश की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा लोकतंत्र में सहभागी हो ही नहीं पाता | इस स्थिति के कारण चुनाव में जो व्यक्ति चुना जाता है वह वास्तव में लोगों का सच्चा प्रतिनिधि होता ही नहीं है | लोकतंत्र का पतन यहीं से शुरू होता है | भारत में लोग व्यक्ति की योग्यता नहीं बल्कि उसकी जाती, धर्म व भाषा देखकर वोट देते हैं |
गरीब तथा अशिक्षित व्यक्ति अपनी अज्ञानता के कारण अपने लिए सही प्रतिनिधि नहीं चुन पाते | जो व्यक्ति चुन के आता है, वो उनका वास्तविक हितैषी नहीं होता | उसे पता होता है कि वह लोगों की अज्ञानता के कारण ही चुन कर आया है | इसलिए वह उन्हें उसी स्थिति में रखना चाहता है | इसके बाद शुरु होता है बड़ी-बड़ी योजनाओं का खेल | गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा मिटाने के नाम पर बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनाई जाती हैं | इन योजनाओं से गरीबी तथा अशिक्षा का सफाया तो नहीं होता किंतु सरकार की जेब से पैसा साफ़ होने लगता है | यह योजनाएँ भ्रष्टाचार को फलने फूलने में मदद करती है | देश खोखला होना यहीं से शुरू होता है | गरीबी मिटाने के नाम पर भारत में बहुत सारी योजनाएँ हैं | इन सारी योजनाओं पर कई लाख करोड़ खर्च हो चुके हैं | पर इससे गरीबी नहीं मिटी, सिर्फ भ्रष्टाचार बढ़ा |
इन हालातों के कारण देश के गरीबों तथा अशिक्षितों में असंतोष बढ़ता है | उन्हें लगता है कि यह देश और यह समाज उनके लिए कुछ नहीं कर रहा | समाज का एक बड़ा वर्ग आनंद भोग रहा है पर हमारे लिए कुछ नहीं है इसमें | उनका देश तथा समाज के प्रति मोहभंग होने लगता है | ऐसी स्थिति में वो अपराध की तरफ मुड़ने लगते हैं | थोड़े-थोड़े से पैसों के लिए अपराध होना सामान्य बात हो जाती है | संपन्न वर्ग पैसों का लालच देकर उन्हें गलत कामों के लिए इस्तेमाल भी करते हैं | समाज में अपराध बढ़ता जाता है व देश की शांति व्यवस्था भंग होने लगती है | देश में अराजकता फैलती है | भारत के हर राज्य में अपराध दर काफी ज्यादा है | जिन क्षेत्रों में जितनी ज्यादा गरीबी तथा अशिक्षा है, उन क्षेत्रों में उतना ज्यादा अपराध है | बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अपराध अधिक होने का यही कारण है | इसके विपरीत संपन्न राज्यों में अपेक्षाकृत शांति है |
देश को विकास के पथ पर आगे ले जाने के लिए हमने जो लोकतांत्रिक व्यवस्था बनाई थी, गरीबी तथा अशिक्षा के कारण वो व्यवस्था आज चरमरा गयी है | इसलिए आज यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि देश में होने वाले सारे अनर्थों की जड़ यही गरीबी व अशिक्षा है |
आजादी के बाद के पिछले ६७ वर्षों में देश ने कई क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की है | देश के करोड़ों लोगों को इसका लाभ भी हुआ है | लोगों की संपन्नता में वृद्धि हुई है | जीवनस्तर में सुधार हुआ है | लेकिन समाज का एक वर्ग अब भी ऐसा है जो इस प्रगति का कोई लाभ नहीं उठा पाया है | वह वर्ग है गरीबों तथा अशिक्षितों का | उन की हालत पहले से ज्यादा खराब हो रही है | गरीबी के कारण वे स्वयं अपनी प्रगति के लिए कुछ नहीं कर पाते | सरकार यदि उनके लिए कुछ करे तो उन्हें पता भी नहीं चलता क्योंकि वे अशिक्षित हैं | सरकारी योजनाओं का लाभ उन तक पहुँचाता ही नहीं | स्थिति ऐसी है कि अशिक्षा के कारण उन्हें अपने मूलभूत अधिकारों तक का पता नहीं | इस स्थिति के कारण देश को अपरिमित हानि हो रही है |
देश के लोकतंत्र की सफलता बहुत बड़े पैमाने में इस बात पर निर्भर करती है कि देश के लोग शिक्षित हैं या नहीं | सही प्रतिनिधि चुनना, उसके कार्यों का मूल्यांकन, सरकार के कार्यों का मुल्यांकन यह सारे चीजें बहुत जरूरी है लोकतंत्र की सफलता के लिए | एक अशिक्षित व्यक्ति से इस बात की उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह अपनी इन जिम्मेदारियों को पूरा करे | उसमे यह योग्यता ही नहीं होती | इस तरह देश की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा लोकतंत्र में सहभागी हो ही नहीं पाता | इस स्थिति के कारण चुनाव में जो व्यक्ति चुना जाता है वह वास्तव में लोगों का सच्चा प्रतिनिधि होता ही नहीं है | लोकतंत्र का पतन यहीं से शुरू होता है | भारत में लोग व्यक्ति की योग्यता नहीं बल्कि उसकी जाती, धर्म व भाषा देखकर वोट देते हैं |
गरीब तथा अशिक्षित व्यक्ति अपनी अज्ञानता के कारण अपने लिए सही प्रतिनिधि नहीं चुन पाते | जो व्यक्ति चुन के आता है, वो उनका वास्तविक हितैषी नहीं होता | उसे पता होता है कि वह लोगों की अज्ञानता के कारण ही चुन कर आया है | इसलिए वह उन्हें उसी स्थिति में रखना चाहता है | इसके बाद शुरु होता है बड़ी-बड़ी योजनाओं का खेल | गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा मिटाने के नाम पर बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनाई जाती हैं | इन योजनाओं से गरीबी तथा अशिक्षा का सफाया तो नहीं होता किंतु सरकार की जेब से पैसा साफ़ होने लगता है | यह योजनाएँ भ्रष्टाचार को फलने फूलने में मदद करती है | देश खोखला होना यहीं से शुरू होता है | गरीबी मिटाने के नाम पर भारत में बहुत सारी योजनाएँ हैं | इन सारी योजनाओं पर कई लाख करोड़ खर्च हो चुके हैं | पर इससे गरीबी नहीं मिटी, सिर्फ भ्रष्टाचार बढ़ा |
इन हालातों के कारण देश के गरीबों तथा अशिक्षितों में असंतोष बढ़ता है | उन्हें लगता है कि यह देश और यह समाज उनके लिए कुछ नहीं कर रहा | समाज का एक बड़ा वर्ग आनंद भोग रहा है पर हमारे लिए कुछ नहीं है इसमें | उनका देश तथा समाज के प्रति मोहभंग होने लगता है | ऐसी स्थिति में वो अपराध की तरफ मुड़ने लगते हैं | थोड़े-थोड़े से पैसों के लिए अपराध होना सामान्य बात हो जाती है | संपन्न वर्ग पैसों का लालच देकर उन्हें गलत कामों के लिए इस्तेमाल भी करते हैं | समाज में अपराध बढ़ता जाता है व देश की शांति व्यवस्था भंग होने लगती है | देश में अराजकता फैलती है | भारत के हर राज्य में अपराध दर काफी ज्यादा है | जिन क्षेत्रों में जितनी ज्यादा गरीबी तथा अशिक्षा है, उन क्षेत्रों में उतना ज्यादा अपराध है | बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अपराध अधिक होने का यही कारण है | इसके विपरीत संपन्न राज्यों में अपेक्षाकृत शांति है |
देश को विकास के पथ पर आगे ले जाने के लिए हमने जो लोकतांत्रिक व्यवस्था बनाई थी, गरीबी तथा अशिक्षा के कारण वो व्यवस्था आज चरमरा गयी है | इसलिए आज यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि देश में होने वाले सारे अनर्थों की जड़ यही गरीबी व अशिक्षा है |
Similar questions