Hindi, asked by Akashabhi2568, 1 year ago

short essay on holi festival in hindi

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Answered by ashwani381
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होली भारत में मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है | यह फाल्गुन मास की समाप्ति के बाद चैत्र मास के प्रथम दिन (प्रतिपदा को) मनाया जाता है | चैत्र मास हिन्दू कलेंडर का प्रथम मास होता है | इस तरह होली हिन्दुओं के लिए नववर्ष का त्योहार भी है | इस त्योहार में लोग एक-दूसरे को रंग, अबीर एंव गुलाल लगाते हैं | लोग अपने पुराने बैर-भाव को भूलकर सबसे गले मिलते हैं एवं एक-दूसरे को रंगते हैं तथा सबके साथ मिलकर नाचते-गाते हैं | इस तरह वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला यह त्योहार रंग-बिरंगा एंव मस्ती से भरपूर होता है |

होली के त्योहार के पीछे कई पौराणिक कथाएं विद्यमान हैं, जिनमें से प्रहलाद एंव होलिका की कथा सर्वाधिक मान्य एवं प्रचलित हैं | ‘विष्णु पुराण’ की एक कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप ने कठोर तपस्या कर भगवान से यह वरदान प्राप्त कर लिया था कि वह न तो पृथ्वी पर, न आकाश में, न दिन में, न रात में, न घर में, न बाहर, न अस्त्र से, न शस्त्र से, न मानव से और न ही पशु से मारा जाएगा | इस वरदान के प्रभाव से उसने पृथ्वी-लोक ही नहीं देव-लोक पर भी अपना अधिकार स्थापित कर लिया | वह भगवान विष्णु से घृणा करने लगा एवं सबको उनके बदले अपनी पूजा करने की आज्ञा दी |

हिरण्यकश्यप ने सारी दुनिया को विष्णु की पूजा-आराधना करने से मना किया था, किन्तु भाग्य की विडंबना देखिए कि उसका ही पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त निकला | जब उसे इसके बारे में पता चला तो पहले तो उसने अपने पुत्र को समझा-बुझा कर उसे अपनी ओर करने की कोशिश की, इसके बाद भी जब विष्णु के प्रति उसकी भक्ति में कमी न हुई तो उसने उसे मारने के कई प्रयत्न किए | हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को पर्वत से नीचे फेंक दिया, उसे पागल हाथी के सामने रख दिया, किन्तु उसके ये सभी प्रयास व्यर्थ साबित हुए | तब जाकर उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठ जाए | होलिका को ईश्वर ने वरदान स्वरुप एक ऐसा वस्त्र यकायक प्रदान किया था, जिसके होते हुए अग्नि का उस पर कोई असर नहीं पड़ सकता था | होलिका जब प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि के बीच बैठी तो भगवान विष्णु के प्रताप से होलिका का न जलने वाला वस्त्र यकायक उससे अलग हो गया एवं वह अग्नि में भस्म हो गई | विष्णु के ही प्रताप से प्रहलाद का अग्नि कुछ नहीं बिगाड़ सकी | प्रहलाद अभी भी भगवान शिव के ध्यान में मग्न था | तंग आकर हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को लोहे के एक खम्भे से बांध दिया और पूछा “कहां है तेरा भगवान बुला उसे, क्या वह तुझे बचाने के लिए आएगा ?” प्रहलाद ने उत्तर दिया कि “भगवान तो हर जगह हैं |” इस पर हिरण्यकश्यप ने प्रतिप्रश्न किया कि “क्या वह इस खम्भे में भी है ?” प्रहलाद ने उत्तर दिया, हाँ वे इस खम्बे में भी हैं |” इस पर क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने कहा- “तो ले मैं इस खम्भे को तोड़ देता हूं और साथ में तुझे भी समाप्त कर देता हूं | बुला सकता है तो बुला अपने भगवान को |”

संध्या का समय था | प्रहलाद अपने प्रभु का स्मरण करने लगा | हिरण्यकश्यप ने जैसे ही खम्भे पर अपनी गदा से वार किया, उसमें से भगवान विष्णु नरसिंह के रूप में प्रकट हुए | उन्होंने दरवाजे की देहलीज पर बैठकर हिरण्यकश्यप को अपनी जांघ पर लिटाकर अपने नाखूनों से उसका वध कर दिया | उसका वध न तो घर में, न ही बाहर हुआ | न ही धरती में, न आकाश में हुआ | न तो रात में, न ही दिन में बल्कि संध्या पहर में हुआ | उसे न तो मानव ने, न ही पशु ने बल्कि नरसिंह ने मारा | उसे न तो अस्त्र से न ही शस्त्र से बल्कि नाख़ून से मारा गया | इस तरह ईश्वर का वरदान भी बरकरार रहा एंव उसका वध भी हो गया |

हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से मुक्ति पाने के उपलक्ष्य में लोगों ने होली का त्योहार मनाया | तब से इस त्योहार की परंपरा चल पड़ी | होली की पूर्व संध्या पर होलिका दहन किया जाता है | इसमें आस-पास की सभी गंदगियों को जला दिया जाता है | इस तरह पूरे पर्यावरण को स्वच्छ करने के दृष्टिकोण से भी यह त्योहार महत्त्वपूर्ण है | जिस तरह होलिका अपनी बुरी इच्छाओं के साथ ही अग्नि में भस्म हो गई थी, ठीक उसी प्रकार, होलिका दहन के द्वारा केवल आस-पास की गंदगी ही नहीं मन के अंधकार, अह्म, बैर-भाव एंव ईर्ष्या जैसे अवगुणों को भी भस्म करने की कोशिश की जाती है | इसके बाद मन प्रेम भाव से भर जाता है | किसी के प्रति किसी प्रकार की कोई दुर्भावना नहीं रहती | अगले दिन सभी आपस में गले मिलकर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं एंव एक-दूसरे को इस त्योहार की बधाई देते हैं |

होली का त्योहार राधा एंव कृष्ण के पवित्र प्रेम से भी जुड़ा है | वसंत ऋतु में होली खेलना श्री कृष्ण लीला का एक अंग माना गया है | इसलिए श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा एंव वृंदावन में होली अत्यधिक धूम-धाम से मनाई जाती है | सभी राधा एंव कृष्ण के प्रेम के रंग में डूबे रहते हैं | बरसाने एंव नन्दगाँव की लठमार होली विश्व प्रसिद्ध है |


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Answered by DivineEyes
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भक्त प्रह्लाद के पिता हरिण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानते थे। वह विष्णु के विरोधी थे जबकि प्रह्लाद विष्णु भक्त थे। उन्होंने प्रह्लाद को विष्णु भक्ति करने से रोका जब वह नहीं माने तो उन्होंने प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया।

भक्त प्रह्लाद के पिता हरिण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानते थे। वह विष्णु के विरोधी थे जबकि प्रह्लाद विष्णु भक्त थे। उन्होंने प्रह्लाद को विष्णु भक्ति करने से रोका जब वह नहीं माने तो उन्होंने प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया।प्रह्लाद के पिता ने आखर अपनी बहन होलिका से मदद मांगी। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका अपने भाई की सहायता करने के लिए तैयार हो गई। होलिका प्रह्लाद को लेकर चिता में जा बैठी परन्तु विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जल कर भस्म हो गई।

भक्त प्रह्लाद के पिता हरिण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानते थे। वह विष्णु के विरोधी थे जबकि प्रह्लाद विष्णु भक्त थे। उन्होंने प्रह्लाद को विष्णु भक्ति करने से रोका जब वह नहीं माने तो उन्होंने प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया।प्रह्लाद के पिता ने आखर अपनी बहन होलिका से मदद मांगी। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका अपने भाई की सहायता करने के लिए तैयार हो गई। होलिका प्रह्लाद को लेकर चिता में जा बैठी परन्तु विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जल कर भस्म हो गई। 

भक्त प्रह्लाद के पिता हरिण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानते थे। वह विष्णु के विरोधी थे जबकि प्रह्लाद विष्णु भक्त थे। उन्होंने प्रह्लाद को विष्णु भक्ति करने से रोका जब वह नहीं माने तो उन्होंने प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया।प्रह्लाद के पिता ने आखर अपनी बहन होलिका से मदद मांगी। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका अपने भाई की सहायता करने के लिए तैयार हो गई। होलिका प्रह्लाद को लेकर चिता में जा बैठी परन्तु विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जल कर भस्म हो गई। यह कथा इस बात का संकेत करती है की बुराई पर अच्छाई की जीत अवश्य होती है। आज भी पूर्णिमा को होली जलाते हैं, और अगले दिन सब लोग एक दूसरे पर गुलाल, अबीर और तरह-तरह के रंग डालते हैं। यह त्योहार रंगों का त्योहार है

भक्त प्रह्लाद के पिता हरिण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानते थे। वह विष्णु के विरोधी थे जबकि प्रह्लाद विष्णु भक्त थे। उन्होंने प्रह्लाद को विष्णु भक्ति करने से रोका जब वह नहीं माने तो उन्होंने प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया।प्रह्लाद के पिता ने आखर अपनी बहन होलिका से मदद मांगी। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका अपने भाई की सहायता करने के लिए तैयार हो गई। होलिका प्रह्लाद को लेकर चिता में जा बैठी परन्तु विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जल कर भस्म हो गई। यह कथा इस बात का संकेत करती है की बुराई पर अच्छाई की जीत अवश्य होती है। आज भी पूर्णिमा को होली जलाते हैं, और अगले दिन सब लोग एक दूसरे पर गुलाल, अबीर और तरह-तरह के रंग डालते हैं। यह त्योहार रंगों का त्योहार हैइस दिन लोग प्रात:काल उठकर रंगों को लेकर अपने नाते-रिश्तेदारों व मित्रों के घर जाते हैं और उनके साथ जमकर होली खेलते हैं। बच्चों के लिए तो यह त्योहार विशेष महत्व रखता है। वह एक दिन पहले से ही बाजार से अपने लिए तरह-तरह की पिचकारियां व गुब्बारे लाते हैं। बच्चे गुब्बारों व पिचकारी से अपने मित्रों के साथ होली का आनंद उठाते हैं।आजकल अच्छी क्वॉलिटी के रंगों का प्रयोग नहीं होता और त्वचा को नुकसान पहुंचाने वाले रंग खेले जाते हैं। यह सरासर गलत है। इस मनभावन त्योहार पर रासायनिक लेप व नशे आदि से दूर रहना चाहिए। बच्चों को भी सावधानी रखनी चाहिए। बच्चों को बड़ों की निगरानी में ही होली खेलना चाहिए। दूर से गुब्बारे फेंकने से आंखों में घाव भी हो सकता है। रंगों को भी आंखों और अन्य अंदरूनी अंगों में जाने से रोकना चाहिए। यह मस्ती भरा पर्व मिलजुल कर मनाना चाहिए। 

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