Hindi, asked by amankoli3122, 1 year ago

short essay on hum sab ek hai with better points................

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Answered by deepaksainj
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लोग कहते हैं कि सफलता खुशी लाती है। लेकिन अक्सर जब आप सफल हो जाते हैं तो आपको उसमें खुशी नजर नहीं आती। तो आप सफलता बनाम खुशी को कैसे देखते हैं? मेरा मानना है कि अपनी पूरी क्षमता से कोई कार्य करना और उसके नतीजे से स्वयं को न बांधना, यही खुशी है। हम मनुष्य होने के नाते स्वयं को परिणाम से बांध लेते हैं। हम कहते हैं कि बहुत मेहनत से पढ़ाई की है, इसलिए प्रथम तो आना ही है। लेकिन अगर दूसरा स्थान आया तो मैं टूट जाऊंगा। क्यों? क्योंकि हमने स्वयं इसी तरह तैयार कर रखा है कि मुझे पहले स्थान पर रहना है। लेकिन हमें चाहिए कि हम अपने सर्वोत्तम प्रयास करें और बाकी परमात्मा पर छोड़ दें। हमें यह सोचना चाहिए कि शायद, हर चीज हमारे वश में नहीं है। हम केवल अपनी ओर से जो बेहतर कर सकते हैं, करें। खुशी लक्ष्य तक पहुंचने में है, लक्ष्य में नहीं। यदि लक्ष्य को पाने में हमने पूरी ईमानदारी से मेहनत की है तो वहां तक पहुंचने के सफर में हमने जो कोशिश की है, हमें उसी से बहुत खुशी मिलेगी। कई बार ऐसा लगता है कि हमें भगवान ने कुछ नहीं दिया। या जो दिया वह दिख नहीं रहा। या जो दिखता है, उसे हम समझ नहीं पाते कि वह हमारे लिए अच्छा कैसे है? यह जान लो कि जो नहीं मिला, वह तुम्हारे लिए अच्छा नहीं है। क्योंकि जो-जो हमारे लिए अच्छा है भगवान वह हमें जरूर देता है। हर बात जो हमारे साथ हो रही है, वही हमारे लिए सबसे बेहतर है। कई बार हमें उस समय समझ नहीं आता लेकिन कुछ साल बाद हम समझ जाते हैं कि जो हुआ, ठीक ही हुआ। लेकिन हम नतीजे पर इतना केंद्रित हो जाते हैं कि जो हमें मिला है उसका आनंद भी नहीं उठा पाते। एक चीज जो हर वक्त हमारे कंधे पर सवार है, वह है गुस्सा। जरा-सी अनबन हुई नहीं कि गुस्सा फट से सामने आ जाता है। उसका क्या इलाज है? गुस्सा इंसान को तभी आता है जबकि उसकी जिंदगी में वह सब होता है जिसकी उसे आशा नहीं होती। तब हमारी प्रतिक्रिया बहुत जल्दी होती है। गुस्से को वश में रखने का सबसे अच्छा उपाय यह है कि हमारी प्रतिक्रिया उतनी तेजी से न हो। हर मामले में बुद्धि तुरंत दौड़ाने से पहले थोड़ा सोचें। अगर हम थोड़ा-सा समय भी देंगे, एक-दो सेकंड का और जल्दी प्रतिक्रिया नहीं देंगे तो गुस्से को संभाल सकेंगे। और आप यह भी तो कहते हैं कि गुस्से को अंदर दबाकर नहीं रखना चाहिए? बिल्कुल , गुस्सा दबाकर नहीं रखना। गुस्से को वही इंसान दबाता है जो किसी चीज भूलना और क्षमा करना नहीं जानता। हमें भूलना और क्षमा करना सीखना है। भूलने से और क्षमा करने से हम दूसरों को तीन चीजें देते हैं - करुणा , आपसी समझ और दंड से माफी। क्षमा करने से हमें मन की शांति मिलती है और व्यर्थ की जलन से छुटकारा मिलता है। जैसा कि आपने कहा है , ध्यान हमें तैयार करता है। यह एक तरह से जमीन की तैयारी है। जब आप अपने अंतर में प्रवेश करते हैं तो यह अनुभव करते हैं कि हम सब एक हैं। तब यदि कोई तुम्हारी इच्छा के विपरीत कुछ करता है जो आप परेशान नहीं होते। कई बार जब आप बात करते हैं तब आपकी जीभ कट जाती है लेकिन आपको गुस्सा नहीं आता। आपकी जीभ कट गई , खून निकल रहा है , लेकिन जीभ खुद आपने काटी इसलिए आपको गुस्सा नहीं आता। इसी तरह जब आप ध्यान - अभ्यास करते हो आपको अनुभव होता है कि हम सब एक ही हैं। आप जान लेते हैं कि सारी मानवता हमारा खुद का ही फैलाव है। यह अनुभव पा लेने के बाद फिर हमें क्रोध नहीं आता। हम समझते हैं कि गलती हो गई , गलती तो इंसान से ही होती है और हमें माफ कर देना चा हिए

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