Hindi, asked by musa9129436532, 1 year ago

short essay on jal prabhamdhan


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Answered by ItzAshleshaMane
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Answer:

वायु के बाद मानव समाज के लिये जल की महत्ता प्रकृति प्रदत्त वरदानों में एक है। इसी जल ने पृथ्वी पर जीवन और हरियाली विकसित होने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि जल ही जीवन है। शास्त्रों में कहा गया है कि-

जल चक्र

क्षिति, जल, पावक, गगन समीरा,

पंचतत्व यह अधम सरीरा

अर्थात मानव तन के निर्माण में पानी का योगदान है और लगभग हर मनुष्य के भीतर 70 प्रतिशत पानी ही होता है।

हमारी धरती हरियाली का पर्याय रही है। इसी हरियाली से इसमें निवास करने वाले जीव-जन्तु अपना आहार और इसकी वादियों में रहकर अपना विहार और विनोद करते आ रहे हैं। जल जीवन का पर्याय रहा है। प्रायः सभी सभ्यताओं का आधार जल स्रोत ही रहा है। प्राणवायु के बाद सर्वाधिक महत्त्व जीवन में जल को ही दिया गया है। जल द्रव रूप में होने के कारण हमारे शरीर में भी इसकी बड़ा मात्रा पाई जाती है। शरीर में जल की कमी से अनेक विसंगतियाँ या बीमारियों का शरीर भुक्तभोगी बन जाता है। इस तरह जल जीवन का अमर वरदान कहना उचित ही है। क्या मानव क्या पशु-पक्षी या फिर क्षुद्र कीट सभी अपनी शारीरिक संरचना के अनुसार जल ग्रहण कर जीवन को सरस बनाते हैं। पेड़ पौधों में हरीतिमा को बनाए रखने में जल का अप्रतिम सहयोग रहा है। प्रकृति में हरीतिमा धारण करने वाले पौधे उत्सर्जन क्रिया द्वारा ऑक्सीजन बाहर निकालते हैं और प्राणी या दूसरे जीवधारी श्वसन क्रिया के फलस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकालते हैं। इस प्रकार प्रकृति का यह चक्र लगातार चलता रहता है। यह क्रिया सह अस्तित्व की एक बड़ी मिसाल बनकर हमारे सामने आती है।

समस्त सागरों, झीलों, नदियों, भू-मण्डल पर स्थित विभिन्न प्रकार के जल, जल मण्डल बनाते हैं। अनुमानतः भूमण्डल के 72 प्रतिशत भाग पर जल एवं 28 प्रतिशत भाग पर स्थल पाया जाता है। हमारी पृथ्वी प्रायः तीन ओर से जल से घिरी है। अतः अन्तरिक्ष से देखने पर इसका रंग नीला दिखाई देता है। यह नीला भाग सागर और महासागरों के रूप में अवस्थित जल है। समुद्री जल में प्राकृतिक रूप से नमक की मात्रा पाई जाती है। इसलिये यह जल सीधे रूप में मानव के उपयोग में नहीं आता है परन्तु प्रकृति बड़ी दयालु है वह भूमण्डल की हवाओं का रुख समुद्रों की ओर मोड़कर हवाओं को समुद्र की लम्बी यात्रा कराती है और फिर ये पवन या हवाए भूमण्डल पर आती हैं तो अपने साथ वाष्पित जल की बड़ी मात्रा लाती हैं जो दूर-दराज तक जाती हैं, इन हवाओं को मानसूनी हवाएँ या मानसून पवन कहा जाता है, जो पर्वत शृंखलाओं से टकराकर भूमि को जल प्लावित करती हैं और धरती की कोख को हरा-भरा बनाती हैं। इस प्रकार समुद्र भी दानवीरों की श्रेणी में गिने जाने चाहिए। वे वर्षा के माध्यम से इतना जल देते हैं कि यदि हम वर्षा जल को पूरी तरह से सहेज पाएँ तो जीवन में पानी के संकट की कभी नौबत ही न आये। मुख्यतः जल के निम्न स्रोत हैं-

1. भू-पृष्ठीय जल- झीलों, नदियों, झरनों, तालाबों इत्यादि के रूप में पाया जाता है।

2. भूजल-वर्षा के बाद एकत्र भूजल।

3. सागरीय जल- 96.8 प्रतिशत सागर का जल।

4. मृदाजल- मृदा में जल प्रायः वर्षा के द्वारा पहुँचता है।

5. वर्षा- वर्षा का जल।

6. वायु मण्डलीय वर्षा- कुछ जल, जलवाष्प के रूप में वायु मण्डल में पाया जाता है। यही वायु को नम बनाए रखता है।

धीरे-धीरे पूरे विश्व में जल संकट बढ़ता जा रहा है क्योंकि लगभग 3 प्रतिशत जल ही पीने के योग्य है। अन्धाधुन्ध दोहन से भूजल भण्डार खाली हो रहे हैं। ग्लेशियरों के सिकुड़ने से नदियाँ भी सूखती जा रही हैं। ताजा रिपोर्ट यह कहती है कि सभी नदियों का लगभग 72 प्रतिशत पानी प्रदूषित हो चुका है। 15 राज्यों के भूजल में तो ज्यादा फ्लोराइड होने से पाँच लाख लोग इससे जुड़ी बीमारियों से ग्रसित हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ का कहना है कि अगर जल संकट के निदान के गम्भीर प्रयास नहीं हुए तो आने वाले वर्षों में स्वच्छ पेयजल के अभाव में विविध कारणों से विश्व में लगभग 20-80 लाख लोग अपनी जान से हाथ धो चुके होंगे। विश्व की जनसंख्या जैसे-जैसे बढ़ती जा रही है और मौसम में बेतरतीब बदलाव आ रहा है, स्वच्छ पानी के स्रोत सिकुड़ते जा रहे हैं। अगर इस प्राकृतिक आपदा पर नियंत्रण नहीं हुआ तो 21वीं सदी के मध्य तक 62 देशों के करीब 8 अरब लोगों को भीषण जल संकट झेलना पड़ेगा।

हमारे देश की प्रतिवर्ष वर्षा से लगभग 450 मिलियन क्यूबिक मीटर जल की प्राप्ति होती है। इसका 76 प्रतिशत भाग हमें मानसून के महीनों से प्राप्त होता है। जल की देश में उपलब्धता और उसकी स्वच्छता के अनुसार समुचित जल-प्रबन्धन न होने के कारण ही वर्षा का जल नदी नालों से होता हुआ समुद्र में चला जाता है। जिससे लगभग नौ महीने देश के लिये पानी की कमी के (वर्षा के बाद के) होते हैं। वर्तमान में प्रतिव्यक्ति भारत में जल उपलब्धता 2200 घनमीटर है, लेकिन हालात यही रहे तो अगले 20 साल में यह औसत घटकर 1800 घनमीटर तक ही रह जाएगा। अन्तरराष्ट्रीय जल प्रबन्धन संस्थान का कहना है कि किसी भी देश में यह औसत 2100 घनमीटर से कम हो जाने पर वहाँ का हर नागरिक जल तनाव में रहेगा।

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