Hindi, asked by vybhardwaj18, 1 year ago

short essay on propkar in hindi language

Answers

Answered by Lusfa
4
महापुण्य उपकार है, महापाप अपकार’

परोपकार-पर उपकार का अर्थ है- ‘दूसरों के हित के लिये।’ परोपकार मानव का सबसे बड़ा धर्म है। स्वार्थ के दायरे से निकलकर व्यक्ति जब दूसरों की भलाई के विषय में सोचता है, दूसरों के लिये कार्य करता है। इसी को परोपकार कहते हैं

परोपकार दैवी गुण है। इंसान स्वभाव से परोपकारी है। किन्तु स्वार्थ और संकीर्ण सोच ने आज सम्पूर्ण मानव जाति को अपने में ही केन्द्रित कर दिया है। मानव अपने और अपनों के चक्कर में उलझ कर आत्मकेन्द्रित हो गया है। उसकी उन्नति रूक गयी है। अगर व्यक्ति अपने साथ साथ दूसरों के विषय में भी सोचे तो दुनिया की सभी बुराइयाँ, लालच, ईर्ष्या, स्वार्थ और वैर लुप्त हो जायें।

महर्षि दधीचि ने राजा इन्द्र के कहने पर देवताओं की रक्षा के लिये अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनकी हड्डियों से वज्र बना जिससे राक्षसों का नाश हुआ। राजा शिवि के बलिदान को कौन नहीं जानता जिन्होंने एक कबूतर की प्राण रक्षा के लिये अपने शरीर को काट काट कर दे दिया।

परोपकारी मनुष्य स्वभाव से ही उत्तम प्रवृति का होता है। उसे दूसरों को सुख देकर आनंद महसूस होता है। भटके को राह दिखाना, समय पर ठीक सलाह देना, यह भी परोपकार के काम हैं। सामर्थ्य होने पर व्यक्ति दूसरों की शिक्षा, भोजन, वस्त्र, आवास, धन का दान कर उनका भला कर सकता है।

परोपकार करने से यश बढ़ता है। दुआयें मिलती हैं। सम्मान प्राप्त होता है। तुलसीदास जी ने कहा है-

‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधभाई।’

जिसका अर्थ है- दूसरों के भला करना सबसे महान धर्म है और दूसरों की दुख देना महा पाप है। अतः हमें हमेशा परोपकार करते रहना चाहिए। यही एक मनुष्य का परम कर्तव्य है।

परोपकार शब्द का अर्थ है दूसरों का उपकार यानि औरों के हित में किया गया कार्य. हमारी ज़िंदगी में परोपकार का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है. यहाँ तक कि प्रकृति भी हमें परोपकार करने के हजारों उदाहरण देती है जैसा कि इस दोहे में भी बताया गया है कि :-
“वृक्ष कभू नहीं फल भखे, नदी न संचय नीर,
परमारथ के कारने, साधुन धरा शरीर”
वृक्ष अपने फल स्वयं कभी नहीं खाते, नदियां अपना जल स्वयं कभी नहीं इकठ्ठा करती, इसी प्रकार सज्जन पुरुष परमार्थ के कामों यानि परोपकार के लिए ही जन्म लेते हैं.

हमें भी प्रकृति से प्रेरणा लेकर ऐसे कार्य करने चाहिए जिनसे किसी और का भला हो. अपने लिए तो सभी जीते हैं किन्तु वह जीवन जो औरों की सहायता में बीते, सार्थक जीवन है.

उदाहरण के लिए किसान हमारे लिए अन्न उपजाते हैं, सैनिक प्राणों की बाजी लगा कर देश की रक्षा करते हैं. परोपकार किये बिना जीना निरर्थक है. स्वामी विवेकानद, स्वामी दयानन्द, गांधी जी, रविन्द्र नाथ टैगोर जैसे महान पुरुषों का जीवन परोपकार की एक जीती जागती मिसाल है. ये महापुरुष आज भी वंदनीय हैं.

____________________________
hope it help you
follow me for more great answer
and also mark me brainillist okk
Answered by geetavivek2003
1
परोपकार शब्द का अर्थ है दूसरों का उपकार यानि औरों के हित में किया गया कार्य. हमारी ज़िंदगी में परोपकार का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है. यहाँ तक कि प्रकृति भी हमें परोपकार करने के हजारों उदाहरण देती है जैसा कि इस दोहे में भी बताया गया है कि :-
“वृक्ष कभू नहीं फल भखे, नदी न संचय नीर,
परमारथ के कारने, साधुन धरा शरीर”
वृक्ष अपने फल स्वयं कभी नहीं खाते, नदियां अपना जल स्वयं कभी नहीं इकठ्ठा करती, इसी प्रकार सज्जन पुरुष परमार्थ के कामों यानि परोपकार के लिए ही जन्म लेते हैं.हमें भी प्रकृति से प्रेरणा लेकर ऐसे कार्य करने चाहिए जिनसे किसी और का भला हो. अपने लिए तो सभी जीते हैं किन्तु वह जीवन जो औरों की सहायता में बीते, सार्थक जीवन है.उदाहरण के लिए किसान हमारे लिए अन्न उपजाते हैं, सैनिक प्राणों की बाजी लगा कर देश की रक्षा करते हैं. परोपकार किये बिना जीना निरर्थक है. स्वामी विवेकानद, स्वामी दयानन्द, गांधी जी, रविन्द्र नाथ टैगोर जैसे महान पुरुषों का जीवन परोपकार की एक जीती जागती मिसाल है. ये महापुरुष आज भी वंदनीय हैं.तुलसीदास जी ने कहा है कि :-
“परहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई”

Similar questions