Hindi, asked by Techan7155, 10 months ago

Short Essay on 'Student Life and Discipline' in Hindi | 'Vidyarthi Jivan and Anushasan' par Nibandh (150 words)

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Answered by rakhister80
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विद्यार्थी जीवन

विद्यार्थी राष्ट्र की सबसे बड़ी संपत्ति होते हैं । विद्यार्थी - जीवन मनुष्य का स्वर्णिम काल होता है । जीवन के इस स्वर्णिम काल में वह अपनी शक्तियों का विकास करता है तथा परिवार , समाज और राष्ट्र के लिए अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों का ज्ञान प्राप्त करता है । ' विद्यार्थी ' शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- विद्या + अर्थी । जिसका शाब्दिक अर्थ है- विद्या - प्राप्ति का इच्छुक ।

मानव - जीवन को चार अवस्थाओं या आश्रमों में बाँटा गया है- ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , वानप्रस्थ एवं संन्यास । प्राचीन काल में प्रत्येक अवस्था या आश्रम की अवधि 25 वर्ष की होती थी । जन्म से लेकर पच्चीस वर्ष तक की आयु काल को विद्यार्थी - जीवन या ब्रह्मचर्य आश्रम कहा जाता था । इस काल में विद्यार्थी का मुख्य लक्ष्य विद्याअध्ययन करना होता था ।

विद्यार्थी - जीवन पूरे जीवन का पर्णिम काल है ; क्योंकि इसी काल में ज्ञान प्राप्त किया जाता है तथा भावी जीवन की नींव भी इसी काल में रखी जाती है । यही वह आश्रम है , जिसमें अच्छे संस्कार अपनाए जा सकते हैं तथा स्वस्थ शरीर , मन एवं मस्तिष्क की नींव रखी जा सकती है । जिस प्रकार किसी भवन की मज़बूती उसकी नींव पर होती है , उसी प्रकार जीवन की आधारशिला विद्यार्थी - जीवन है । यदि यह आधारशिला पक्की होगी, तो जीवन भी आनंदमय तथा सफल होगा, अन्यथा नहीं।

प्राचीन काल में इसी अवस्था में विद्यार्थी को गुरुओं के आश्रमों तथा गुरुकुलों में पढ़ने भेजा जाता था , जो नगरों की भीड़ - भाड़ से दूर स्थित होते थे । गुरु अपने शिष्यों को इस अवधि में तपा - तपाकर कंचन सा बना देते थे । परंतु आजकल की शिक्षा - पद्धति बदल गई है और आज के विद्यालय अनुशासनहीन , लक्ष्यहीन तथा संस्कारहीन छात्र तैयार करते हैं ।

आचार्य चाणक्य ने आदर्श विद्यार्थी के गुण बताते हुए कहा है-

काकचेष्टा वको ध्यानम् , श्वान निद्रा तथैव च ।

अल्पाहारी , गृहत्यागी , विद्यार्थिनः पंचलक्षणम् ।।

अर्थात कौए के समान चेष्टाशील , बगुले के समान ध्यानरत , कुत्ते के समान कम सोने वाला और सावधान , कम खाने वाला तथा घर को त्यागकर विद्या ग्रहण करने वाला- ये ही आदर्श विद्यार्थी के पाँच लक्षण हैं । आदर्श विद्यार्थी अपने गुरु के प्रति श्रद्धा रखता है , पढ़ने - लिखने से अनुराग रखता है तथा परिश्रमी , अध्यवसायी , स्वावलंबी और कर्मठ होता है । विद्यार्थी में विनयशीलता , संयम , आज्ञाकारिता एवं सादगी के गुणों का होना भी परमावश्यक है।

विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थी को अत्यंत सावधानी से विद्याध्ययन करना चाहिए तथा समय का सदुपयोग करते हुए अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति भी करनी चाहिए । उसे कुसंगति से कोसों दूर रहना चाहिए , क्योंकि कुसंग का ज्वर अत्यंत भयानक होता है । यदि इस काल में कोई दुर्गुण आ जाए , तो वह जीवन भर साथ नहीं छोड़ता तथा विद्यार्थी की नौका को डुबो देता है । विद्यार्थी को चाहिए कि भाषा , धर्म , जाति तथा संप्रदाय आदि की संकीर्णता से ऊपर उठकर सच्चा नागरिक बनने का प्रयास करे । उसे संकुचित विचारों , अंधविश्वासों एवं कुरीतियों का भी त्याग कर देना चाहिए।

आजकल के अधिकांश राजनैतिक दल विद्यार्थियों को गलत दिशा की ओर प्रेरित करते हैं , अत : विद्यार्थी को उनसे दूर रहकर केवल विद्याध्ययन में ही अपना समय बिताना चाहिए । आज का विद्यार्थी फैशन का दीवाना , पश्चिमी सभ्यता की नकल करने वाला , अनुशासनहीन तथा भारतीय संस्कृति से दूर है । विद्यार्थी वर्ग को चाहिए कि वह नैतिक मूल्यों को अपनाए तथा भारतीय संस्कृति के मूल आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करे । उसका प्रयास यह भी होना चाहिए कि वह कुरीतियों , अंधविश्वासों तथा रूढ़ियों के खिलाफ संघर्ष करे और बड़ा होकर भारत को उन्नति के चरमोत्कर्ष पर ले जाने का संकल्प ले।

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