Hindi, asked by sandhyagkpshah, 1 year ago

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paramparagat tyohar ke prati logo ki udasinta

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Answered by rishilaugh
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परम्परागत त्योहारों के प्रति लोगों की उदासीनता | prarampargat  tyhoharo ke prati logo ki udasinta |

त्यौहार वो माध्यम है जो जीवन की नियमितता व एकरसता को हटाकर कुछ सुखद परिवर्तन लाते है| ये प्रसन्नता, सकारात्मकता और स्फूर्ति का संचार करते है| ये परिवार, समाज और देश को एक सूत्र में बांधे रखने का जरिया है| हमारे परम्परागत त्यौहार हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति से जोड़े रखते है| जैसे दीपावली पर आलसी से आलसी व्यक्ति भी अपने घर आंगन की सफाई करके उसे सजाता है| सभी से वैर भाव भुलाकर प्रसन्नता से मिलता है, मिठाई का आदान-प्रदान करता है| परन्तु ये एक दुखद परिवर्तन वर्तमान के भौतिक परिवेश में दृष्टिगोचर हो रहा है कि लोग अपने परम्परागत त्योहारों के प्रति उदासीन होते जा रहे है|

  हम सर्वप्रमुख रूप से पहले ये चर्चा करेंगे कि वो कोनसे कारण है जो हमें अपने परम्परागत त्यौहारों से विमुख कर रहे है| आज के भौतिकवादी युग में बाजारवाद हावी है| नि:संदेह युवा पीढ़ी का मुख्य ध्येय ज्यादा से ज्यादाअर्थ का अर्जन करना है| इस अंधी दौड़ में उसे न अपने शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान है न ही मानसिक और भावनात्मक संतुलन का| संयुक्त परिवार तो सर्वत्र टूटने के कगार पर है| आधुनिक व्यक्ति इतना व्यस्त रहता है कि उसके पास अपने परिवार से बातें करने का भी वक्त नहीं है| परम्परागत त्यौहार इस व्यस्तता की भेंट चढ़ जाते है| इंटरनेट व टेलीविजन के द्वारा पश्चिमी संस्कृति ने हमारे भीतर इतनी जड़े जमा ली है कि हम क्रिसमस, वैलेंटाइन डे, मदर दे, फादर डे, टेडी डे, प्रोपोज डे इत्यादि  मनाने लगे है| बाजार में बिकने वाले केक और चोकलेट्स लाकर हम त्यौहार मनाने की इतिश्री कर लेते है| वो प्राचीन गर्मजोशी तो गायब हो चली है| जब परिवारों में एकता ही नहीं रही तो एकसाथ त्यौहार कौन मनाये| वहीं घरों में बुजुर्गो का मान- सम्मान नहीं रहा तो उनकी प्रचलित परम्पराएँ हमें दकियानूसी लगती है| आजकल त्यौहारों पर दान देने का प्रचलन भी खत्म सा हो गया है| जबकि हमारी संस्कृति में ये निर्धारित है कि गृहस्थ को पञ्च यग्य के माध्यम से दान करना चाहिए| परम्परागत त्यौहार हमें प्रकृति से जोड़ते है| द्वार पर पेड़ के पत्तों की बंदनवार बांधना, आंगन को गोबर व मिट्टी से लीपकर रंगोली बनाना, मिट्टी के दीये जलाना| उपवास रखना ताकि शरीर की शुद्धि हो जाये| मन में उठते विकल्पों का दमन शमन हो जाये| परम्परागत वस्त्र पहनना, मिठाई बनाना तो युवा पीढ़ी को समय की बर्बादी लगती है| दीये की जगह चायना निर्मित बल्बों ने ले ली है, मिठाई की जगह शराब ने, और बुजुर्गो के सम्मान की जगह इंटरनेट मोबाइल ने ले लली है| पर दुर्भाग्य है कि त्यौहारों का वास्तविक सत्व छिन गया है और भावनाओं का वो सागर सूख गया है| असली आनंद का रसस्त्रोत सूख गया है| अब केवल ओपचारिकता शेष रह गई है|

परम्परागत त्यौहारों के प्रति लोगों की उदासीनता के विषय में ऊपर जो तर्क दिए गए है वे कटु अवश्य है मगर सत्य ही  है| भौतिकता ने वर्तमान पीढ़ी को व्यस्त और खोखला बना दिया है| अध्यात्म व धार्मिकता की भावना समूल लुप्त होने के कगार पर है इसीलिए हम आयातित त्यौहारों को तो गर्मजोशी से मनाते है और अपनी संस्कृति की अनदेखी करते है| आज आवश्यकता है कि  वापस अपनी जड़ो की ओर लौटे और अपनी उत्कृष्ट संस्कृति का सम्मान करें| इसके लिए अपने त्यौहारों को गर्मजोशी से मनाना एक बहुत अच्छा माध्यम है| ये हमें भीतर तक आनंद प्रदान करेगा|
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