short paragraph on akal in Hindi
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दुर्भिक्ष या अकाल प्राय : अभाव की स्थिति को कहा जाता है | सामन्य रूप से मनुष्यों के लिए खाने – पीने की वस्तुओ का अभाव तथा पशुओ के लिए चारे –पानी के अभाव को अकाल या दुर्भिक्ष कहा जाता है | दुर्भिक्ष के मूल रूप से दो कारण हुआ करते है – एक बनावटी तथा दूसरा प्राकृतिक | बनावटी अकाल प्राय : सरकार उत्पादकों व व्यापारियों द्वारा पैदा कर दिए जाते है, इसके अतिरिक्त जब अन्न , जल व चारे आदि का अभाव प्राकृतिक कारणों से होता है तो वह प्राकृतिक अकाल कहलाता है |
ब्रिटिश सरकार ने अपने शासन काल में एक बार बंगाल में बनावटी अकाल पैदा कर दिया था | उसने भारतीयों को सबक सिखाने के लिए भारतीय अनाज उत्पादकों और व्यापारियों को अपने साथ मिलाकर खाद्द पदार्थो का कृत्रिम अभाव पैदा कर दिया था जिसका परिणाम था कि बंगाल में हजारो लोग भूख से तडप-तडप कर मर गए थे | उस समय मुटठी भर अनाज के लिए माताओ ने अपनी सन्तान को तथा युवतियों ने अपने तन को सरेआम बेच दिया था | उस समय चारे – पानी के अभाव में न जाने कितने पशु बेमौत मरे गए थे | बनावटी अकाल पैदा करने के लिए मुनाफाखोर व्यापारी अपने माल को गोदाम में छिपाकर कृत्रिम अभाव पैदा कर देते है | उनका उद्देश्य काले बाजार में माल को बेचकर अधिक मुनाफा कमाना होता है | यह बात दूसरी है की इस प्रकार के अकाल के इतने भयंकर परिणाम न निकलते हो परन्तु सामान्य मनुष्य को तंगी का सामना तो करना ही पड़ता है |
दूसरा और सबसे महत्त्वपूर्ण कारण है प्राकृतिक रूप से अकाल या दुर्भिक्ष का पड़ना ; जैसे वर्षा का इतना अधिक समय – असमय होते रहना की बोया हुआ बिज अधिक पानी के कारण सड-गल जाए या पक्का अनाज बदरंग होकर खाने लायक न रह जाए | इसी प्रकार सुखा पड़ने अर्थात वर्षा के बहुत कम होने या न होने से खेती नही हो पाती है तो भी मनुष्य व पशुओं के लिए अन्न व चारे तथा पानी की समस्या का उत्पत्र हो जाना भी दुर्भिक्ष कहलाता है | ऐसी स्थिति में मनुष्य की प्यास बुझाने वाले स्त्रोत कुएँ आदि सूख जाते है | पशुओ की प्यास बुझाने वाले जोहड़-तालाब आदि सुख जाते है | चारो और हा –हाकार मच जाता है | वर्षा का अभाव घास –पत्तो तक को सुखाकर धरती को नंगी और बंजर जैसी बना दिया करता है | धरती धूल बनकर उड़ने लगती है | यहाँ-वहाँ मरे पशुओ व मनुष्यों की लाशो को मासाहारी पशु नोचने लगते है | अशक्त हुए लोग अपने किसी सगे – सम्बन्धी का अन्तिम संस्कार कर पाने में समर्थ नही रह पाते है | परिणामत : उनकी लाशे घरो में पड़ी सड़ने लगती है | इसके कारण हमारा पर्यावरण भी दूषित होने लगता है | ऐसी स्थिति में यदि सरकारी सहायता भी न मिले तो सोचो क्या हाल हो |
ब्रिटिश सरकार ने अपने शासन काल में एक बार बंगाल में बनावटी अकाल पैदा कर दिया था | उसने भारतीयों को सबक सिखाने के लिए भारतीय अनाज उत्पादकों और व्यापारियों को अपने साथ मिलाकर खाद्द पदार्थो का कृत्रिम अभाव पैदा कर दिया था जिसका परिणाम था कि बंगाल में हजारो लोग भूख से तडप-तडप कर मर गए थे | उस समय मुटठी भर अनाज के लिए माताओ ने अपनी सन्तान को तथा युवतियों ने अपने तन को सरेआम बेच दिया था | उस समय चारे – पानी के अभाव में न जाने कितने पशु बेमौत मरे गए थे | बनावटी अकाल पैदा करने के लिए मुनाफाखोर व्यापारी अपने माल को गोदाम में छिपाकर कृत्रिम अभाव पैदा कर देते है | उनका उद्देश्य काले बाजार में माल को बेचकर अधिक मुनाफा कमाना होता है | यह बात दूसरी है की इस प्रकार के अकाल के इतने भयंकर परिणाम न निकलते हो परन्तु सामान्य मनुष्य को तंगी का सामना तो करना ही पड़ता है |
दूसरा और सबसे महत्त्वपूर्ण कारण है प्राकृतिक रूप से अकाल या दुर्भिक्ष का पड़ना ; जैसे वर्षा का इतना अधिक समय – असमय होते रहना की बोया हुआ बिज अधिक पानी के कारण सड-गल जाए या पक्का अनाज बदरंग होकर खाने लायक न रह जाए | इसी प्रकार सुखा पड़ने अर्थात वर्षा के बहुत कम होने या न होने से खेती नही हो पाती है तो भी मनुष्य व पशुओं के लिए अन्न व चारे तथा पानी की समस्या का उत्पत्र हो जाना भी दुर्भिक्ष कहलाता है | ऐसी स्थिति में मनुष्य की प्यास बुझाने वाले स्त्रोत कुएँ आदि सूख जाते है | पशुओ की प्यास बुझाने वाले जोहड़-तालाब आदि सुख जाते है | चारो और हा –हाकार मच जाता है | वर्षा का अभाव घास –पत्तो तक को सुखाकर धरती को नंगी और बंजर जैसी बना दिया करता है | धरती धूल बनकर उड़ने लगती है | यहाँ-वहाँ मरे पशुओ व मनुष्यों की लाशो को मासाहारी पशु नोचने लगते है | अशक्त हुए लोग अपने किसी सगे – सम्बन्धी का अन्तिम संस्कार कर पाने में समर्थ नही रह पाते है | परिणामत : उनकी लाशे घरो में पड़ी सड़ने लगती है | इसके कारण हमारा पर्यावरण भी दूषित होने लगता है | ऐसी स्थिति में यदि सरकारी सहायता भी न मिले तो सोचो क्या हाल हो |
kuki10001:
It is so long but thanks
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दुर्भिक्ष या अकाल सब तरह के अभाव की स्थिति को कहा जाता है। आम मनुष्यों के लिए खाने-पीने की पीने की वस्तुओं का अभाव, पशुओं के चारे-पानी का अभाव ही सामान्य रूप से अकाल या दुर्भिक्ष कहा जाता है। दुर्भिक्ष का कारण यदि अभाव है, तो उस अभाव कारण क्या हो सकता है, सोचने-विचारने की बात है। ऐसा भी कहा-सुना जाता कई बार बनावटी कारणों से भी अकाल या दुर्भिक्ष का वातावरण पैदा कर दिया जाता है। जैसा कि ब्रिटिश सरकार ने अपने शासन काल में एक बार बंगाल में पैदा कर दिया था। कहा जाता है और उसे आधार बना कर लिखी गई साहित्यिक रचनाओं के अध्ययन से पता चलता है, तब बंगाल में हजारों लोग भूख से तड़प-तड़प कर मर गए है। एक मुठ्ठी अन्न के लिए माताओं ने अपने जिगर के टुकड़े बेटों को बेच दिया था. युवतियों ने सरे आम तन को बेच दिया था। चारे-पानी के अभाव में जाने कितने पश् बेमौत मारे गए थे। बहुत ही बुरी एवं दयनीय दशा हुई थी मनुष्यता की।
इस अकाल या दुर्भिक्ष का मूल कारण भारतीयों को सबक सिखाने के लिए भारतीय अनाज-उत्पादकों और व्यापारियों को अपने साथ मिलाकर ब्रिटिश सरकार द्वारा उत्पन्न किया गया खाद्य पदार्थों का कत्रिम अभाव था। आजकल भी हृदयहीन और मानवता द्रोही नाफाखोर व्यापारी माल का स्टॉक कर अर्थात गोदाम में छिपा कर अभाव की स्थितियाँ पन्न कर दिया करते हैं उस छिपाए माल से या तो काले बाजार में बेच कर अपना कमाने की दानवी पिपासा शान्त किया करते हैं या फिर तब तक छिपाए-दबाए क जब तक खुले बाजार में ही विवश हो कर लोग अधिक दाम देने को बाध्य नहीं हो जाते। इस तरह के कत्रिम अभाव का चाहे उतना घातक प्रभाव न पड़ता हो: पर आम आदमी का काफिया तो तंग हुआ ही करता है। उसे तो अभाव अभियोग में जीवित मुर्दे का सा जीवन बिताना ही पड़ता है। जैसा कि अभी पिछले दिनों चीनी का बनावटी अभाव पैदा, दिखाकर आज उसके दाम इतने कर दिए गए हैं कि आम आदमी की चाय मुहं फीके ही रह जाने के लिए विवश हो गए है।
दुर्भिक्ष या अकाल प्राकृतिक कारणों से भी पडता रहता है। प्राकृतिक कारणों में मुख्य कारण होता है या तो वर्षा का इतना अधिक समय-असमय होते रहना कि बोया अनाज अधिक पानी के कारण वहीं सड़ जाए, खेतों में कटा पड़ा अनाज असमय की अधिक वर्षा के कारण वहीं पड़ा सड़-गल जाए या रंग के बदरंग हो कर खाने लायक न रह जाए। यही स्थिति चारे पानी के साथ भी हो। इसी तरह सूखा पड़ने यानि वर्षा के बहुत कम होने या कई वर्षों तक न होने से भी दुर्भिक्ष पडा करता है।
भारत में कृषि कार्य तो अभी तक कुछ इलाकों में विशेषकर पूर्णतया वर्षा पर आश्रित है। इसी प्रकार मनुष्य और पशुओं दोनों के लिए ठीक समय पर वर्षा होती रहने से ही पीने के पानी की व्यवस्था हो पाती है। नहीं तो मनुष्य की प्यास बुझाने के स्रोत कुएँ आदि सूख जाते हैं, पर की प्यास बुझाने वाले जोहड-तालाब सूख कर दरारे जाते हैं। वर्षा न होने से या खेती बोई ही नहीं जा पाती, यदि बोई भी जाती है, तो समय पर पानी से सिंचाई न है। पाने के कारण धरती के भीतर की गर्मी से सड-गल कर बेकार हो जाती है। वर्षा को अभाव घास-पत्तों तक को सुखा कर धरती को नंगी और बंजर जैसी बता दिया करता है। इस प्रकार अन्न, जल, चारे आदि का प्रकृतिक कारणों से अभाव होकर दुर्मिक्ष का कारण बन जाया करता है।
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