short paragraph on shortage of water in hindi
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यह पृथ्वी की ऊपरी सतह के नीचे का पानी है जो रिस-रिस कर गहराई तक पहुँचता है। यह पानी भी नदियों की ही भाँति चल होता है और नीचे-नीचे बहता है। यदि इसका बहाव बाधित होकर रुक जाता है या धीमा हो जाता है तो यह खारा हो जाता है और पीने लायक नहीं रह जाता है। इस भौम जल की उपस्थिति तथा बहाव अनेक कारकों पर निर्भर करती हैं जैसे:
1. जल भूगर्भीय कारक
2. जल गतिकीय कारक
3. जलवायु संबंधी कारक
इन कारकों के कारण भौम जल का आकलन कठिन हो जाता है यह भौम जल पृथ्वी की सतह पर लाए जाने के बाद उपयोग होता है और फिर इसका एक अंश वापस पृथ्वी के नीचे पहुँचता है और इस प्रक्रिया में एकरूपता देखने को नहीं मिलती है। एकरूपता नहीं होने के कारण हैं निम्न में एकरूपता का न होना:
1. सालाना बारिश
2. सिंचाई के बाद बचे पानी के वापस नीचे जाने
3. नहरों के पानी के वापस नीचे जाने
4. जलसंभरों जैसे झीलों, तालाबों के पानी के नीचे जाने
जहाँ पर नदियों के बहाव का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है जैसे कि नदी के मुहाने पर बहाव कितना है। बारिश के महीने में अतिरिक्त पानी या गर्मियों में कम पानी का भी अनुमान लगाया जा सकता है।
विभिन्न तरीकों से भौम जल के बारे में जो अनुमान लगाए गए हैं वे इस प्रकार हैं:
कुल भौम जल- 670 बी.सी.एम. इसमें से बारिश के दिनों के अलावा अन्य दिनों में 450 बी.सी.एम. जल ही उपलब्ध हो पाता है। यह अनुमान लगाया गया है कि इसमें से 350 बी.सी.एम. भौम जल ही विभिन्न के लिये निकाला जा सकता है।
दूसरी ओर भौम जल की भारी मांग है। यह निम्न गतिविधियों में खर्च होता है।
1. सिंचाई में- लगभग 85 प्रतिशत हिस्सा सिंचाई में चला जाता है।
2. घरेलू प्रयोग- लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा घरेलू उपयोग में जाता है। बढ़ती आबादी के कारण इस खर्च में वृद्धि हो रही है।
3. औद्योगिक उपयोग- शेष हिस्सा औद्योगिक उपयोगों में काम आता है। पर बढ़ते औद्योगीकरण के कारण इस मांग में लगातार वृद्धि हो रही है।
इस प्रकार भौम जल भंडारों पर दबाव बेतहाशा बढ़ रहा है। प्राकृतिक तरीकों से जो जल ऊपर से नीचे जाता है उसमें कमी आ रही है और इस प्रक्रिया को ठीक करना होगा। हमारे भौम जल भंडार भरे रहें, इसके लिये स्पष्ट नीति बनानी होगी।
फिलहाल बढ़ते दबाव के कारण विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जल की गुणवत्ता में स्पष्ट कमी दिखाई दे रही है। अनेक जगहों का पानी अब न सिंचाई योग्य बचा है और न ही औद्योगिक उपयोग योग्य। पीने योग्य पानी की तो भारी कमी देखने में आ रही है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले दशकों में देश के विभिन्न भागों में पानी का अकाल पड़ने लगेगा।