short speech on karm hiii dharm hai
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भाग्य एक बहुत अच्छा देन है जिसे भगवान ने मनुष्य को दिया है। लेकिन सब के पास नहीं होता | कर्म सब के वश में है |
कर्म का मतलब है कि हम अपना फ़र्ज़ निभाते जायेँ । जो काम हमें करना होता है उन्हे खुद करलेना चाहिये । लेकिन बचपन से आगा हम कर्म करने में विश्वास रखते हैं और श्रम करने में अपना मन लगाते हैं तो अच्छा है । जल्द से जल्द बड़े आदमी तो नहीं हो जाते, लेकिन अपने श्रम का फल ठीक मिल जाता हैं । कुछ सालों में हम अपने क्षेत्र में प्रावीण्यता और नाम भी कमा लेते हैं । इस से अपना आत्मविश्वास बढ़ता है । अगर भाग्य हमारा साथ दें या न दें , हम हमेश आयेज बढ़ते ही जायेंगे । कोई भी रुकावट से हम डरेंगे नहीं और रुकेंगे नहीं। अगर भाग्य भी अपने साथ देता हैं तो बस आसमान छू जायेंगे।
कर्म ही धर्म है :
भगवान कृष्ण ने भगवद्गीता में यही कहा है कि तुम्हारा धर्म है कि काम करना और करते ही रहना । कर्मों के फल पर हमारा अधिकार नहीं है। हम कर्म करते जाएंगे तो उसका अच्छा फल, भाग्य में बादल जाएगा। अगर हम सिर्फ भाग्य पर आधार होकर जी ते हैं, तो भाग्य घाट जाएगा। तो अब आसान है यह निर्णय करना कि भाग्य या कर्मा कौन प्रधान है हमारे जीवन में।
इस दुनिया में कोई भी कर्म से विमुक्त नहीं हैं। सिर्फ देवलोक में जो देव, भगवान रहते हैं, वे सब कर्म से मुक्त हैं । भाग्य लौकिक कर्म, पुण्य कार्य और भक्ति कार्यों का फल है। कर्म (कर्तव्य पालन, मेहनत) से दुर्भाग्य को सौभाग्य में बादल सकते हैं । कर्म करने से भाग्य बढ़ता रहता है । इन कारणों से हम कह सकते हैं कि भाग्य से कर्म श्रेष्ठ है।