Hindi, asked by semial3418, 1 year ago

Short speech short speech on naitik Shiksha ka mahatva

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Answered by suruchi7
1
naitik shiksha is very important .if it does exist then there is no difference between animals and people. by naitik shiksha we learn manners and who to live in the society.
may it help u...!
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Answered by SugaryCherrie
2

Answer:

‘नैतिकता’ से अभिप्राय है-आचरण की शुद्धता तथा आदर्श मानवीय मूल्यों को अपनाना। सत्य, अहिंसा, प्रेम, सौहार्द, बड़ों का सम्मान, अनुशासन-पालन, दुर्बल एवं दीन-हीनों पर दया तथा परोपकार आदि गुणों को अपनाना ही नैतिकता का वरण करना है। सभी प्राणियों में ईश्वर का नूर देखना, न्याय-पथ पर चलना, शिष्टाचार का पालन करना- कुछ ऐसे मूल्य हैं जिनका वर्णन प्रत्येक धर्मग्रंथ में मिलता है। धर्म-प्रवर्तकों एवं महान पुरुषों के जीवन से भी हमें नैतिकता को अपनाने की प्रेरणा मिलती है। श्रीराम, श्रीकृष्ण, भगवान बुद्ध, ईसा मसीह, मुहम्मद साहब, गांधीजी, मदर टेरेसा, विवेकानंद, महावीर स्वामी सभी ने प्राणिमात्र से प्रेम करने की शिक्षा दी है। बेवजह किसी को कष्ट न देना, अहिंसा का पालन करना, रोगियों, असहायों एवं अपाहिजों की सहायता करना हमारा नैतिक कर्तव्य है। ‘जीवों पर दया करो’, ‘पर्यावरण की रक्षा करो’, ‘अहिंसा परम धर्म है’, ‘अपने पड़ोसी से प्रेम करो’, ‘वसुधैव कुटुंबकम्’, ‘जियो और जीने दो’, आदि विभिन्न धर्मों के ऐसे सूक्ति-वाक्य हैं जो हमें नैतिक मार्ग पर अग्रसर होने की निरंतर प्रेरणा देते हैं। बोर्डमैन के अनुसार-

कर्म को बोओ और आदत की फसल काटे,

आदत को बोओ और चरित्र की फसल काटो,

चरित्र को बोओ और भाग्य की फसल काटो।

नैतिकता को अपनाने से अभिप्राय उपर्युक्त मानवीय मूल्यों को सम्मानपूर्वक अपनाने से है। वर्तमान समय में भौतिकवाद का बोलबाला है। भौतिक उन्नति की ओर अग्रसर मानव ने नैतिक मूल्यों को ताक़ पर रख दिया है। परिणामस्वरूप समाज में आतंक, भ्रष्यचार, हिंसा एवं अपराध बढ़ रहे हैं। भौतिक सुखों के लिए अनैतिकता और अराजकता को बढ़ावा देकर रावण की लंका का ही निर्माण किया जा सकता है, परंतु स्वर्ग के समान सुख, शांति एवं समृधि तो नैतिकता के बल पर ही स्थापित की जा सकती है। अत: आज के परिवेश में नैतिक शिक्षा की अत्यंत आवश्यकता है। नैतिक शिक्षा को शिक्षण संस्थाओं में अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए। वर्तमान शिक्षा-प्रणाली में नैतिक शिक्षा को स्थान नहीं दिया गया है। प्राथमिक स्तर से ही नैतिक शिक्षा को अनिवार्य करके विद्यार्थियों के राष्ट्रीय चरित्र एवं नैतिक चरित्र के निर्माण में सहयोग देना चाहिए तथा इसके व्यावहारिक पक्ष पर भी। बल देना चाहिए क्योंकि कोई शिक्षा तब तक कारगर सिद्ध नहीं होती जब तक उसे व्यवहार में न लाया जाए। शिक्षक वर्ग को भी नैतिक गुणों को अपनाना चाहिए क्योंकि उनके आचरण एवं चरित्र का सीधा प्रभाव विद्यार्थियों पर पड़ता है।

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