short story on paropkar sabse bada dharm hai
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मानवीय व्यक्तित्व का निर्माण मनुष्य की अपनी सूझ-बूझ, एकाग्रता, परिश्रम और पराक्रम का प्रतिफल है। ऐसा प्रतिफल, जो जगत के अन्य उपार्जनों की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण और कहीं अधिक प्रयत्न-साध्य है। इस प्रतिफल की प्राप्ति में संकल्प शक्ति, साहसिकता और दूरदर्शिता का परिचय देना पड़ता है।जनसाधारण द्वारा अपनाई गई रीति-नीति से ठीक उल्टी दिशा में चलना उस मछली के पराक्रम जैसा है जो जल के प्रचंड प्रवाह को चीरकर प्रवाह के विपरीत तैरती चलती है। आम तौर पर ज्यादातर लोगों को किसी भी कीमत पर संपन्नता और वाहवाही चाहिए। इसके विपरीत अपने व्यक्तित्व का निर्माण करने वाले लोगों को जहां सादा जीवन और उच्च विचार की नीति पर अमल कर संतोषी व अपरिग्रही बनना पड़ता है वहीं कभी-कभी उन्हें अपने साथियों के उपहास, असहयोग और विरोध का भी सामना करना पड़ता है।जिस किसी ने भी इस आत्म-निर्माण या व्यक्तित्व विकास के मोर्चे को फतेह कर लिया वह सस्ती तारीफ से वंचित हो सकता है, पर लोक-श्रद्धा उसके चरणों पर अपनी पुष्पांजलियां अनगिनत काल तक चढ़ाती रहती है। ऐसे लोग अपने गुणों के कारण महानता को उपलब्ध होते हैं।आत्म-विजेता को विश्व विजेता की उपमा अकारण ही नहीं दी गई है। दूसरों को उबारने और उन्हें दिशा देने की क्षमता मात्र ऐसे ही लोगों में होती है। आत्म-निर्माण या दूसरे शब्दों में कहें तो व्यक्तित्व का परिष्कार कर लेने वाले व्यक्ति एक दूसरा कदम और उठाते हैं। वह है दूसरों का कल्याण करना। ऐसे लोग पुण्य कमाने के लिए ऐसा नहीं करते, बल्कि आत्म-संतोष के लिए ही वे परोपकार करते हैं। प्रत्येक महामानव लोक मंगल के कार्यो में अपने जीत-जी संलग्न रहता है। शाश्वत सुख-संतोष रूपी सौभाग्य मात्र ऐसे ही लोगों को प्राप्त होता है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि जिस शख्स ने दूसरों के दुखों को दूर करने का प्रयास किया है या जिसके मन में परोपकार करने का जज्बा रहा है, वह समय की शिला पर अपनी अमिट छाप छोड़ गया है। परोपकार सबसे बड़ा धर्म है। जीवन के सभी गुणों में इस गुण का सर्वाधिक महत्व इसीलिए है, क्योंकि यह हमें मानव होने का अहसास कराता है।