English, asked by Taabish8226, 1 year ago

Short summary of godan by premchand in hindi

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Answered by MVB
685
गोदान को 1 9 36 में प्रकाशित किया गया था, मुंशी प्रेमचंद के प्रमुख कार्यों में से एक गोदान, जिसका अर्थ है "एक गाय का उपहार", एक उपन्यास है जो आपको एक सुंदर प्रेम-नफरत संबंधी रिश्ते के माध्यम से ले जाता है। कहानी भारतीय समुदाय के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधित्व करने वाले कई पात्रों के चारों ओर घूमती है। मुख्य चरित्र हरि है कई अन्य गरीब किसानों की तरह, हरी भी एक आत्मनिर्भरता के कुछ ऊंची ऊंचाई पर अपने सामाजिक सामाजिक स्तर को ऊपर उठाने की आशा में एक गाय का मालिक बनाना चाहता है। अपने परिस्थितियों के बहुत विपरीत, उसने एक गाय को 80 रुपये के कर्ज पर खरीदा। हालांकि, जब वह अपने छोटे भाई, हीरा, को 10 रुपये से धोखा देने की कोशिश करता है तो उसके नियंत्रण से चीजें बढ़ती जाती हैं। इस हर्ज से धनी (हरि की पत्नी) और हीरा की पत्नी के बीच एक बड़ी लड़ाई होती है। हीरा ने गाय को जहर दिया और पुलिस ने पकड़े जाने से बचने के लिए भाग लिया। गाय की मृत्यु के मामले को व्यवस्थित करने के लिए, हरि एक मनीषी से कुछ ऋण लेता है और पुलिस को रिश्वत देती है। दूसरी ओर, गोबर (हरि के बेटे) का एक विधवा झुनिया के साथ संबंध है। जब झुनिया अपने बच्चे के साथ गर्भवती होती है, तो गांव ग्रामीणों के क्रोध से बचने के लिए गोबर शहर में चले जाते हैं। लेकिन तब झूया को हरि और उसके परिवार की देखभाल में लिया जाता है। झुनिया के मुद्दे के कारण, ग्राम पंचायत ने हरि को अपने बेटे के कर्मों के लिए जुर्माना राशि का भुगतान करने का आदेश दिया। इस प्रकार, हरि फिर से कर्जदारों से ऋण लेता है जैसा कि उनके सिर पर कर्ज बढ़ता है, हरि अपनी बेटी रूपा से 200 रुपये का सौदा करके केवल अपने पैतृक गांव को धनराशि द्वारा नीलाम होने से बचाता है। हरी का काम बंद करने के लिए अपनी क्षमता से परे काम करता है और अंत में अंत में मर जाता है। उनके बेटे गोबर शहर में एक निर्बाध जीवन जीते हैं लेकिन अपने पिता के कर्ज का भुगतान करने के लिए कभी भी कमा नहीं सकते। गोदान मुंशी प्रेमचंद के प्रमुख हिट उपन्यासों में से एक है। हरि और गोबर के अलावा, उपन्यास में कई उपखंड शामिल हैं I.e. गांवों के सबसे गरीब शहरों की सबसे कहानियों में शामिल हैं। उपन्यास, गहराई में, आजादी के पूर्व युग के दौरान आम जनता की दुर्दशा की चर्चा करती है, विशेष रूप से किसानों द्वारा, जो हमेशा लेन-देनियों द्वारा निर्धारित ऋण के दुष्चक्र से उभरने में कठिनाई होती है।
Answered by NitinSehrawat
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खुशहाल होंगे तो समाज में अच्छाई ज्यादा होगी और समाज में गुनाह नहीं के बराबर होगा। प्रेमचन्द ने शोषितवर्ग के लोगों को उठाने का हर संभव प्रयास किया। उन्होंने आवाज लगाई "ए लोगों जब तुम्हें संसार में रहना है तो जिन्दों की तरह रहो, मुर्दों की तरह जिखुशहाल होंगे तो समाज में अच्छाई ज्यादा होगी और समाज में गुनाह नहीं के बराबर होगा। प्रेमचन्द ने शोषितवर्ग के लोगों को उठाने का हर संभव प्रयास किया। उन्होंने आवाज लगाई "ए लोगों जब तुम्हें संसार में रहना है तो जिन्दों की तरह रहो, मुर्दों की तरह जिन्दा रहने से क्या फायदा।"

प्रेमचन्द ने अपनी कहानियों में शोषक-समाज के विभिन्न वर्गों की करतूतों व हथकण्डों का पर्दाफाश किया है।

प्रेमचन्द और शोषण का बहुत पुराना रिश्ता माना जा सकता है। क्योंकि बचपन से ही शोषण के शिकार रहे प्रेमचन्द इससे अच्छी तरह वाकिफ हो गए थे। समाज में सदा वर्गवाद व्याप्त रहा है। समाज में रहने वाले हर व्यक्ति को किसी न किसी वर्ग से जुड़ना ही होगा।

प्रेमचन्द ने वर्गवाद के खिलाफ लिखने के लिए ही सरकारी पद से त्यागपत्र दे दिया। वह इससे सम्बन्धित बातों को उन्मुख होकर लिखना चाहते थे। उनके मुताबिक वर्तमान युग न तो धर्म का है और न ही मोक्ष का। अर्थ ही इसका प्राण बनता जा रहा है। आवश्यकता के अनुसार अर्थोपार्जन सबके लिए अनिवार्य होता जा रहा है। इसके बिना जिन्दा रहना सर्वथा असंभव है।

वह कहते हैं कि समाज में जिन्दा रहने में जितनी कठिनाइयों का सामना लोग करेंगे उतना ही वहाँ गुनाह होगा। अगर समाज में लोग खुशहाल होंगे तो समाज में अच्छाई ज्यादा होगी और समाज में गुनाह 

जिस समय प्रेमचन्द का जन्म हुआ वह युग सामाजिक-धार्मिक रुढ़िवाद से भरा हुआ था। इस रुढ़िवाद से स्वयं प्रेमचन्द भी प्रभावित हुए। जब अपने कथा-साहित्य का सफर शुरु किया अनेकों प्रकार के रुढ़िवाद से ग्रस्त समाज को यथाशक्ति कला के शस्त्र द्वारा मुक्त कराने का संकल्प लिया। अपनी कहानी के बालक के माध्यम से यह घोषणा करते हुए कहा कि "मैं निरर्थक रूढ़ियों और व्यर्थ के बन्धनों का दास नहीं हूँ।"पड़ेगा क्योंकि उन्होंने जितनी बातें कहीं हैं वे सभी समुचित उठान में कहीं गई हैं। प्रेमचंद ने एक स्थान पर लिखा है - 'उपन्यास में आपकी कलम में जितनी शक्ति हो अपना जोर दिखाइए, राजनीति पर तर्क कीजिए, किसी महफिल के वर्णन में १०-२० पृष्ठ लिख डालिए (भाषा सरस होनी चाहिए), कोई दूषण नहीं।' प्रेमचंद ने गोदान में अपनी कलम का पूरा जोर दिखाया है। सभी बातें कहने के लिये उपयुक्त प्रसंगकल्पना, समुचित तर्कजाल और सही मनोवैज्ञानिक विश्लेषण प्रवाहशील, चुस्त और दुरुस्त भाषा और वणर्नशैली में उपस्थित कर देना प्रेमचंद का अपना विशेष कौशल है और इस दृष्टि से उनकी तुलना में शायद ही किसी उपन्यास लेखक को रखा जा सकता है।गोदान में बहुत सी बातें कही गई हैं। जान पड़ता है प्रेमचंद ने अपने संपूर्ण जीवन के व्यंग और विनोद, कसक और वेदना, विद्रोह और वैराग्य, अनुभव और आदर्श् सभी को इसी एक उपन्यास में भर देना चाहा है। कुछ आलाचकों को इसी कारण उसमें अस्तव्यस्तता मिलती है। उसका कथानक शिथिल, अनियंत्रित और स्थान-स्थान पर अति नाटकीय जान पड़ता है। ऊपर से देखने पर है भी ऐसा ही, परंतु सूक्ष्म रूप से देखने पर गोदान में लेखक का अद्भुत उपन्यास-कौशल दिखाई गोदान प्रेमचंद का हिंदी उपन्यास है जिसमें उनकी कला अपने चरम उत्कर्ष पर पहुँची है। गोदान में भारतीय किसान का संपूर्ण जीवन - उसकी आकांक्षा और निराशा, उसकी धर्मभीरुता और भारतपरायणता के साथ स्वार्थपरता ओर बैठकबाजी, उसकी बेबसी और निरीहता- का जीता जागता चित्र उपस्थित किया गया है। उसकी गर्दन जिस पैर के नीचे दबी है उसे सहलाता, क्लेश और वेदना को झुठलाता, 'मरजाद' की झूठी भावना पर गर्व करता, ऋणग्रस्तता के अभिशाप में पिसता, तिल तिल शूलों भरे पथ पर आगे बढ़ता, भारतीय समाज का मेरुदंड यह किसान कितना शिथिल और जर्जर हो चुका है, यह गोदान में प्रत्यक्ष देखने को मिलता है। नगरों के कोलाहलमय चकाचौंध ने गाँवों की विभूति को कैसे ढँक लिया है, जमींदार, मिल मालिक, पत्रसंपादक, अध्यापक, पेशेवर वकील और डाक्टर, राजनीतिक नेता और राजकर्मचारी जोंक बने कैसे गाँव के इस निरीह किसान का शोषण कर रहे हैं और कैसे गाँव के ही महाजन और पुरोहित उनकी सहायता कर न्दा रहने से क्या फायदा।"

प्रेमचन्द ने अपनी कहानियों में शोषक-समाज के विभिन्न वर्गों की करतूतों व हथकण्डों का पर्दाफाश किया है।

खुशहाल होंगे तो समाज में अच्छाई ज्यादा होगी और समाज में गुनाह नहीं के बराबर होगा। प्रेमचन्द ने शोषितवर्ग के लोगों को उठाने का हर संभव प्रयास किया। उन्होंने आवाज लगाई "ए लोगों जब तुम्हें संसार में रहना है तो जिन्दों की तरह रहो, मुर्दों की तरह जिन्दा रहने से क्या फायदा।"

प्रेमचन्द ने अपनी कहानियों में शोषक-समाज के विभिन्न वर्गों की करतूतों व हथकण्डों का पर्दाफाश किया है।

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