Hindi, asked by shreeya8, 1 year ago

' shram Mein Hi Sukh hair 'Ke Vishay par chotasa anuched likhiye

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Answered by guru0101
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मानव-जीवन का सबसे बड़ा आधार श्रम ही है । हमारी सबसे प्रधान आवश्यकताओं- भोजन, वस्त्र, निवास स्थान की पूर्ति किसी न किसी के श्रम द्वारा ही होती है । अन्न के मिल जाने पर उसको खाने के लायक रोटी के रूप में परिवर्तित करने में भी श्रम करना पड़ता है और बिना श्रम के वह ठीक तौर से हजम होकर शरीर में रस-रक्त के रूप में बदल भी नहीं सकती । यह सब देखते हुए भी मनुष्य श्रम से बचने की चेष्टा करते रहते हैं । इसके लिए वे अपना कार्य- भार दूसरों पर लादने की कोशिश ही नहीं करते, वरन् तरह-तरह के आविष्कार करके, यंत्र बनाकर भी अपने हाथ-पैरों का कार्य उनसे पूरा कराने का प्रयत्न करते हैं । परिणाम यह होता है कि चाहे मनुष्य की दिमागी शक्तियां बढ़ रही ही, पर शारीरिक शक्तियां क्षीण होती जाती हैं और उसका जीवन कृत्रिम तथा परावलम्बी होता चला जाता है । चाहे नकली बातों को महत्व देने वाले और विचारशून्य इन बातों में भी गौरव और शान समझते हों पर जीवन-संघर्ष में इसके कारण विपत्तियां ही सहन करनी पड़ती हैं । इस सम्बन्ध में एक लेखक ने बहुत ठीक कहा है-''पता नहीं कहां से यह गलत ख्याल लोगों में आ गया है कि परिश्रम से बचने में कोई सुख नहीं है । परिश्रम करने से कुछ थकावट आती है पर श्रम न करने से तो शक्ति का स्रोत ही सूख जाता है । मेरी समझ से तो बेकार रहने से अधिक ' श्रमसाध्य ' और कोई काम नहीं है । कुछ काम न करना मानो जीते जी मर जाना है । ''

guru0101: thanx
guru0101: shreeya
guru0101: thanx sheeya
Answered by sakshu246
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मनुष्य के पास श्रम के अतिरिक्त कोई वास्तविक सम्पत्ति नहीं है । यदि यह कहा जाये कि, श्रम ही जीवन है तो यह गलत न होगा । जीवन में श्रम अनिवार्य है । गीता में श्रीकृष्णा ने कर्म करने पर बल दिया है । मानव देह मिली है तो कर्म करना ही पड़ेगा ।

जो पुरुषार्थ करता है वह पुरुष है । यह सारा संसार बड़े-बड़े नगर, गगनचुंबी भवन, हवाई जहाज, रेलगाड़ियाँ, स्कूटर तथा अन्य कई प्रकार के वाहन, विशाल कारखाने, टी.वी. तथा सिनेमा आदि सभी मानव के पुरुषार्थ की कहानी कहते हैं ।

कर्म करना जीवन है तो कर्म का न करना मृत्यु । श्रम न करने से ही जीवन नर्क बनता है और कर्म करने से स्वर्ग । ईमानदारी से श्रम करने से मानव फरिश्ता कहलाता है और श्रम न करने से शैतान । जैसा कि, कहा भी गया है खाली दिमाग शैतान का घर होता है । श्रम दो प्रकार का होता है – शारीरिक तथा मानसिक । किसी वस्तु, अर्थ ( धन ) अथवा उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किये गये प्रयत्न का नाम श्रम है ।

श्रम अपने आप में ही एक लक्ष्य है । श्रम करके चित्त प्रसन्न होता है । देह तंदरूस्त रहती है । व्यक्ति उन्नति करे अथवा न करे परिवार अथवा समाज में सम्मान मिलता है । किन्तु यह होता नहीं है कि व्यक्ति श्रम करे और वह उन्नति न करे । श्रम करने वाला व्यक्ति सदैव उन्नति करता है ।

बड़े-से-बड़े तेज और समर्थ व्यक्ति तनिक आलस्य से जीवन की दौड़ में पिछड़ जाते हैं किन्तु श्रम करने वाले व्यक्ति तनिक दुर्बल भी दौड़ में आगे निकल जाते हैं । इस सम्बन्ध में कछुए और खरगोश की कहानी को स्मरण किया जा सकता है । खरगोश तेज गति से चलता है । वह अपने तेज चलने पर बहुत गर्व करता है ।

सबको मालूम है कि कछुआ बहुत धीमी गति से चलता है । दोनों का दौड़ होती है । कछुआ लगातार चलता रहता है तथा परिणामस्वरूप गंतव्य पर पहले पहुँच जाता है । किन्तु खरगोश आलस्य करता है और पिछड़ जाता हें । श्रम करने वाला व्यक्ति कभी भी हारता नहीं है । मेहनत के बूते पर अति साधारण छात्र चकित करने वाले परिणाम दे जाते हैं ।

दूसरी ओर होनहार और मेधावी छात्र अपने आलस्य के कारण कुछ नहीं कर पाता । सेमुअल जॉनसन ने कहा है- ” जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता पूरे जन्म के श्रम द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है । इससे कम मूल्य पर इसको खरीदा ही नहीं जा सकता है । ”

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