Shukratara ke saman summary in hindi
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लेखक कहता है कि आकाश के तारों में शुक्र का कोई जोड़ नहीं है कहने का तात्पर्य यह है कि शुक्र तारा सबसे अनोखा है। भाई महादेव जी आधुनिक भारत की स्वतंत्रता के उषा काल में अपनी वैसी ही चमक से हमारे आकाश को जगमगाकर, देश और दुनिया को मुग्ध करके, शुक्र तारे की तरह ही अचानक अस्त हो गए अर्थात उनका निधन हो गया। लेखक यह भी कहता है कि सेवा-धर्म का पालन करने के लिए इस धरती पर जन्मे स्वर्गीय महादेव देसाई गांधीजी के मंत्री थे। गांधीजी के लिए महादेव पुत्र से भी अधिक थे। लेखक कहता है कि सन् 1919 में जलियाँवाला बाग के हत्याकांड के दिनों में पंजाब जाते हुए गांधीजी को पलवल स्टेशन पर गिरफ़तार किया गया था। गांधीजी ने उसी समय महादेव भाई को अपना वारिस कहा था।
शंकर लाल बैंकर, उम्मर सोबानी और जमनादास द्वारकादास तीनों नेता गांधीजी को बहुत मानते थे और उनके सत्याग्रह-आंदोलन में मुंबई के बेजोड़ नेता भी थे। जो पूरे आंदोलन के दौरान गांधीजी के साथ ही रहे। इन्होंने गांधीजी से विनती की कि वे ‘यंग इंडिया’ के संपादक बन जाएँ। गांधीजी को तो इसकी सख्त ज़रूरत थी ही। उन्होंने विनती तुरंत स्वीकार कर ली।
लेखक कहता है कि गांधीजी का काम इतना बढ़ गया कि साप्ताहिक पत्र भी कम पड़ने लगा। लेखक कहता है कि गांधीजी और महादेव का सारा समय देश घूमने में बीतने लगा। गांधीजी और महादेव जहाँ भी होते, वहाँ से कामों और कार्यक्रमों की भारी भीड़ के बीच भी समय निकालकर लेख लिखते और भेजते थे।
लेखक कहता है कि भारत में महदेव के अक्षरों का कोई सानी नहीं था, कोई भी महादेव की तरह सुन्दर लिखावट में नहीं लिख सकता था। यहाँ तक कि वाइसराय के नाम जाने वाले गांधीजी के पत्र हमेशा महादेव की लिखावट में जाते थे। उन पत्रों को देख-देखकर दिल्ली और शिमला में बैठे वाइसराय लंबी साँस-उसाँस लेते रहते थे।
भले ही उन दिनों भारत पर ब्रिटिश सल्तनत की पूरी हुकूमत थी, लेकिन उस सल्तनत के ‘छोटे’ बादशाह को भी गांधीजी के सेक्रेटरी यानि महादेव के समान सुन्दर अक्षर लिखने वाला लेखक कहाँ मिलता था? बड़े-बड़े सिविलियन और गवर्नर कहा करते थे कि सारी ब्रिटिश सर्विसों में महादेव के समान अक्षर लिखने वाला कहीं खोजने पर भी मिलता नहीं था। लेखक कहता है कि महादेव का शुद्ध और सुंदर लेखन पढ़ने वाले को मंत्रमुग्ध कर देता था।
लेखक कहता है कि महादेव एक कोने में बैठे-बैठे अपनी लम्बी लिखावट में सारी चर्चा को लिखते रहते थे। मुलाकात के लिए आए हुए लोग अपनी मंज़िल पर जाकर सारी बातचीत को टाइप करके जब उसे गांधीजी के पास ‘ओके’ करवाने के लिए पहुँचते, तो भले ही उनमें कुछ भूलें या कमियाँ-खामियाँ मिल जाएँ, लेकिन महादेव की डायरी में या नोट-बही में कोई भी गलती नहीं होती थी यहाँ तक कि कॉमा मात्र की भी भूल नहीं मिलती थी।
लेखक कहता है कि गांधीजी हमेशा मुलाकात के लिए आए हुए लोगों से कहते थे कि उन्हें अपना लेख तैयार करने से पहले महादेव के लिखे ‘नोट’ के साथ थोड़ा मिलान कर लेना था, इतना सुनते ही लोग दाँतों अँगुली दबाकर रह जाते थे। लेखक कहता है कि जिस तरह बिहार और उत्तर प्रदेश के हजारों मील लंबे मैदान गंगा, यमुना और दूसरी नदियों के परम उपकारी, सोने की कीमत वाले कीचड़ के बने हैं।
यदि कोई इन मैदानों के किनारे सौ-सौ कोस भी चल लेगा तो भी रास्ते में सुपारी फोड़ने लायक एक पत्थर भी कहीं नहीं मिलेगा। इसी तरह महादेव के संपर्क में आने वाले किसी भी व्यक्ति को ठेस या ठोकर की बात तो दूर रही, खुरदरी मिट्टी या कंकरी भी कभी नहीं चुभती थी, यह उनके कोमल स्वभाव का ही परिणाम था। लेखक कहता है कि उनका यह स्वच्छ स्वभाव उनके संपर्क में आने वाले व्यक्ति को चन्द्रमा और शुक्र की चमक की तरह मानो दूध से नहला देती थी।
लेखक कहता है कि उनके स्वाभाव में डूबने वाले के मन से उनकी इस मोहिनी का नशा कई-कई दिन तक नहीं उतरता था। महादेव का पूरा जीवन और उनके सारे कामकाज गांधीजी के साथ इस तरह से मिल गए थे कि गांधीजी से अलग करके अकेले उनकी कोई कल्पना ही नहीं की जा सकती थी। लेखक कहता है कि सन् 1934-35 में गांधीजी वर्धा के महिला आश्रम में और मगनवाड़ी में रहने के बाद अचानक मगनवाड़ी से चलकर सेगाँव की सरहद पर लगे एक पेड़ के नीचे जा बैठे।
वे भर्तृहरि के भजन की यह पंक्ति हमेशा दोहराते रहे: ‘ए रे ज़ख्म जोगे नहि जशे’- यह घाव कभी योग से भरेगा नहीं। बहुत सालों के बाद भी जब गांधीजी को प्यारेलाल जी से कुछ कहना होता, तो उस समय भी अचानक उनके मुँह से ‘महादेव’ ही निकलता।