Shurdas ki vatsalya bhawna ka sodharan viveyan
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रदास का वात्सल्य वर्णन हिंदी साहित्य की अनुपम निधि हैं रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है बाल सौंदर्य एवं स्वभाव के चित्रण में जितनी सफलता सुर को मिली है उतनी अन्य किसी को नहीं वह अपनी बंद आंखों से वात्सल्या का कोना कोना झांक आए हैं।
सूर के वात्सल्य वर्णन में स्वाभाविकता, विविधता, रमणीयता, एवं मार्मिकता है जिसके कारण वे वर्णन अत्यंत हृदयग्राही एवं मर्मस्पर्शी बन पड़े हैं। यशोदा के बहाने सूरदास ने मातृ हृदय का ऐसा स्वाभाविक, सरल और ह्रदय ग्राही चित्र खींचा है कि आश्चर्य होता है। वात्सल्य के दोनों पक्षों संयोग एवं वियोग का चित्रण सूरकाव्य में उपलब्ध होता है। वात्सल्य के संयोग पक्ष में उन्होंने एक और तो बालक कृष्ण के रूप मधुरी का चित्रण किया है तो दूसरी ओर बालोचित चेष्टओं का मनोहारी वर्णन किया है।
सूरदास का वात्सल्य वर्णन को हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से अध्ययन करेंगे-
सूरदास का वात्सल्य वर्णन में दो पक्ष है।
i. संयोग पक्ष
ii. वियोग पक्ष
संयोग पक्ष में कृष्णा मथुरा यानी के विंदावन में ही निवास करते हैं सूरदास ने विंदावन में उनके बचपन की बाल लीलाओं का उनके क्रीड़ाओं का बहुत ही सुंदर एवं मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है वहीं वियोग पक्ष में कृष्ण के मथुरा छोड़कर चले जाने से गोकुल वासी किस तरह से कृष्ण के लिए बेचैन है उसका वर्णन वियोग पक्ष में किए हैं तो आइए अब हम सूरदास के वात्सल्य वर्णन के दोनों पक्ष को देखते हुए सूरदास के वात्सल्य वर्णन का अध्ययन करते हैं-