Siddhartha Gautama, the founder of Buddhism, was born a prince and lived a privileged but sheltered life. At the age of 29 he left his palace, wife and child after witnessing human suffering for the first time. Why did he abandon his life of luxury?
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वैशाख पूर्णिमा का दिन बौद्ध धर्मावलम्बियों के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि आज के ही दिन लगभग 563 ई. पूर्व में बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन के यहां लुम्बिनी वन में हुआ था। महात्मा बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार कहा जाता है। इनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था और इनके जन्म पर जब एक तपस्वी ने यह भविष्यवाणी कि यह बालक छोटी आयु में ही संन्यासी हो जाएगा तो उसके चिंतित पिता शुद्धोधन ने सिद्धार्थ की महल से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी। 16 वर्ष की उम्र में सिद्धार्थ का विवाह राजकुमारी यशोधरा से कर दिया गया जिनसे इनका एक पुत्र राहुल पैदा हुआ।
बचपन से ही सिद्धार्थ गंभीर स्वभाव के होने के कारण अपना अधिकतर समय अकेले में चिंतन करके व्यतीत करते थे। एक दिन जब वह भ्रमण पर निकले तो उन्होंने एक वृद्ध को देखा जिसकी कमर झुकी हुई थी और वह लगातार खांसता हुआ लाठी के सहारे चला जा रहा था। थोड़ी आगे एक मरीज को कष्ट से कराहते देख उनका मन बेचैन हो उठा। उसके बाद उन्होंने एक मृतक की अर्थी देखी, जिसके पीछे उसके परिजन विलाप करते जा रहे थे।
ये सभी दृश्य देख उनका मन क्षोभ और वितृष्णा से भर उठा, तभी उन्होंने एक संन्यासी को देखा जो संसार के सभी बंधनों से मुक्त भ्रमण कर रहा था। इन सभी दृश्यों ने सिद्धार्थ को झकझोर कर रख दिया और उन्होंने संन्यासी बनने का निश्चय कर लिया। तब 19 वर्ष की आयु में एक रात सिद्धार्थ गृह त्याग कर इस क्षणिक संसार से विदा लेकर सत्य की खोज में निकल पड़े।
ज्ञान की प्राप्ति :गृहत्याग के बाद उन्होंने सात दिन ‘अनुपीय’ नामक ग्राम में बिताए। फिर गुरु की खोज में वह मगध की राजधानी पहुंचे जहां कुछ दिनों तक वह ‘आलार कालाम’ नामक तपस्वी के पास रहे। इसके बाद वह एक आचार्य के साथ भी रहे लेकिन उन्हें कहीं संतोष नहीं मिला। अंत में ज्ञान की प्राप्ति के लिए उन्होंने स्वयं ही तपस्या शुरू कर दी। कठोर तप के कारण उनकी काया जर्जर हो गई थी लेकिन उन्हें अभी तक ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई थी। घूमते-घूमते वह एक दिन गया में उरुवेला के निकट निरंजना (फल्गु) नदी के तट पर पहुंचे और वहां एक पीपल के वृक्ष के नीचे स्थिर भाव में बैठ कर समाधिस्थ हो गए।
इसे बौद्ध साहित्य में ‘संबोधि काल’ कहा गया है। छ: वर्षों तक समाधिस्थ रहने के बाद जब उनकी आंखें खुलीं और उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई, वह वैशाख पूर्णिमा का दिन था और वह महात्मा गौतम बुद्ध कहलाए। उस स्थान को ‘बोध गया’ व पीपल का पेड़ बोधि वृक्ष कहा जाता है।
बचपन से ही सिद्धार्थ गंभीर स्वभाव के होने के कारण अपना अधिकतर समय अकेले में चिंतन करके व्यतीत करते थे। एक दिन जब वह भ्रमण पर निकले तो उन्होंने एक वृद्ध को देखा जिसकी कमर झुकी हुई थी और वह लगातार खांसता हुआ लाठी के सहारे चला जा रहा था। थोड़ी आगे एक मरीज को कष्ट से कराहते देख उनका मन बेचैन हो उठा। उसके बाद उन्होंने एक मृतक की अर्थी देखी, जिसके पीछे उसके परिजन विलाप करते जा रहे थे।
ये सभी दृश्य देख उनका मन क्षोभ और वितृष्णा से भर उठा, तभी उन्होंने एक संन्यासी को देखा जो संसार के सभी बंधनों से मुक्त भ्रमण कर रहा था। इन सभी दृश्यों ने सिद्धार्थ को झकझोर कर रख दिया और उन्होंने संन्यासी बनने का निश्चय कर लिया। तब 19 वर्ष की आयु में एक रात सिद्धार्थ गृह त्याग कर इस क्षणिक संसार से विदा लेकर सत्य की खोज में निकल पड़े।
ज्ञान की प्राप्ति :गृहत्याग के बाद उन्होंने सात दिन ‘अनुपीय’ नामक ग्राम में बिताए। फिर गुरु की खोज में वह मगध की राजधानी पहुंचे जहां कुछ दिनों तक वह ‘आलार कालाम’ नामक तपस्वी के पास रहे। इसके बाद वह एक आचार्य के साथ भी रहे लेकिन उन्हें कहीं संतोष नहीं मिला। अंत में ज्ञान की प्राप्ति के लिए उन्होंने स्वयं ही तपस्या शुरू कर दी। कठोर तप के कारण उनकी काया जर्जर हो गई थी लेकिन उन्हें अभी तक ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई थी। घूमते-घूमते वह एक दिन गया में उरुवेला के निकट निरंजना (फल्गु) नदी के तट पर पहुंचे और वहां एक पीपल के वृक्ष के नीचे स्थिर भाव में बैठ कर समाधिस्थ हो गए।
इसे बौद्ध साहित्य में ‘संबोधि काल’ कहा गया है। छ: वर्षों तक समाधिस्थ रहने के बाद जब उनकी आंखें खुलीं और उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई, वह वैशाख पूर्णिमा का दिन था और वह महात्मा गौतम बुद्ध कहलाए। उस स्थान को ‘बोध गया’ व पीपल का पेड़ बोधि वृक्ष कहा जाता है।
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⊙ Yeah , he was a prince and got the privilege to maintain a luxury life. But , at the age of 29 he left the palace after witnessing human suffering.
⊙ He actually wants to know the ultimate way to gain peace and a happy life
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⊙ Yeah , he was a prince and got the privilege to maintain a luxury life. But , at the age of 29 he left the palace after witnessing human suffering.
⊙ He actually wants to know the ultimate way to gain peace and a happy life
Anonymous:
agar app mere dost hoo toh baat toh kitne dino see huaa nhii
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