Sidh kijiye ki kabir mai balgobin bhagat ji ki attot aastha thi?
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बालगोबिन भगत कबीर को अपना `साहब´ स्वीकार करते थे | उसका पूरा जीवन कबीर के दर्शन पर आधारित था | वह कबीर की ही भांति सरल, बेपरवाह और अपने मैं मस्त और व्यस्त रहने वाले थे | अपने बेटे की मृत्यु पर भी उनके द्वारा कबीर को ही दोहराया जाना उन्हीं में आस्था रखना, कबीर के प्रति भगत की अगाध श्रद्धा को सूचित करता है |
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