Sikkim me ped podho ka viggiyanic upyog kaise hota h Project fail answer hindi me
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वृक्ष कबहुं न फल चखे नदी न सींचे नीर, परमारथ के कारणे साधु न धरा शरीर। रामचरित मानस की ये पंक्तियां पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से आज भी सौ फीसदी प्रासंगिक है। पर ऐसा तब, जबकि हमारी व आपकी पेड़ों के प्रति उदासीनता सहिष्णुता में तब्दील हो जाए। जिस पेड़ को कभी हमने बेकार व बेजार समझ कर राम भरोसे छोड़ दिया, वही आज लुप्तप्राय से हो गए हैं। उन्हीं लुप्त होते पेड़ों में शामिल है जाल, जिसे आमतौर पर गांवों की बणी की शोभा समझा जाता था। परंतु अब यह केवल गिने-चुने ही रह गए हैं। इस पेड़ को बचाने के लिए आगे आया है हिसार का सेंटर आफ प्लांट बायो टेक्नोलाजी। लुप्त हो रहे पेड़ों की रेडबुक में शामिल इस पेड़ को लेकर सेंटर के वैज्ञानिक डॉ. सुभाष काजला ने छह माह पूर्व ही शोध कार्य शुरू किया था। डॉ. काजला ने जाल के पेड़ के औषद्यीय गुणों को समझा और इसे बचाने के प्रयास शुरू कर दिए। छह माह की अथक मेहनत के बाद टिशू कल्चर तकनीक के जरिए जाल की पौध तैयार कर ली गई है जिससे अब सैकड़ों पौधे प्राप्त किए जा सकते हैं।
पौध तैयार करने के बाद सेंटर ने इन्हें रोपित करने के लिए वन विभाग से बातचीत शुरू कर दी है। फिलहाल मौखिक रूप से वन विभाग ने इन पौधों को रोपित करने के लिए अपनी सहमति प्रदान कर दी है तथा यह प्रोजेक्ट पूरी तरह से धरातल पर आने के लिए तैयार है।