Silesiya me bunkaro Ke vidroha ki gatanao ka varanan kare
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यह ब्लॉग पत्रकार विल्हेम वोल्फ की एक रिपोर्टिंग का संशोधित अनुवाद है.
यह एक ऐतिहासिक लेकिन समकालीन सन्दर्भों से जोड़ कर देखी जा सकने वली घटना है. 170 साल पुरानी यह घटना हमें हमारे यथार्थ की ओर खींचने में आज भी सक्षम है. यही इस घटना की यूएसपी है. दरअसल, यह घटना बाद में बनी. घटना के रूप में पहचाने जाने से पहले यह एक विद्रोह कहलायी. एक ऐसा विद्रोह, जिसके होने का समय लगभग वही रहा जब राजतंत्र जैसी सड़ चुकी व्यवस्था को खत्म करने से उपजे हालातों में व्यवस्था चलाने के लिये राष्ट्र नाम के कीड़े की उत्पत्ति हुई. संयोग देखिये, जिन देशों में यह कीड़ा पहले पनपा उनमें से एक को आपातकाल की अवधि बढ़ानी पड़ रही है और दूसरे 'राष्ट्र' की अर्थव्यवस्था पिछले साल पर 'राष्ट्रों' की कृपा की राह देख रही थी.
खैर, इस विद्रोह के केंद्र में बुनकर थे. 1845 में सिलेसिया में बुनकरों ने अपनी परेशानियों से तंग आकर ठेकेदारों के विरूद्ध विद्रोह कर दिया था. यह विद्रोह उन ठेकेदारों तक ही सीमित रहा जो इन बुनकरों को कच्चा माल देते और बदले में निर्मिल माल लेते थे. कच्चे माल को 'निर्मित माल' बनाने के बदले जो पैसे बुनकरों को दिये जाते वो काफी कम होते थे.
18,000 की आबादी वाले उस गाँव में सूती कपड़ा बनाने का व्यवसाय व्यापक, लेकिन श्रमिकों की हालत खस्ता थी. काम की तुलना में श्रमिकों की भीड़ ज्यादा थी. इसका अनुचित लाभ ठेकेदार उठाते थे. इन अनुचित लाभों में से एक निर्मित माल के मूल्यों को कम करते रहना था।
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☆ Mark Brainlist Answer ☆
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