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रस का शाब्दिक अर्थ - निचोड़ है।
रस वह है जो काव्य में आनन्द आता है वह ही काव्य का रस है। काव्य में आने वाला आनन्द अर्थात् रस लौकिक न होकर अलौकिक होता है। रस काव्य की आत्मा है।
रस को दो भागों में बांटा गया है :-
अंग
प्रकार
अंग :- रस के अंगों में वे माध्यम आते हैं, जिन्होने रस का निर्माण किया हो या जिनमें रस का संग्रहण किया जा रहा हो।
प्रकार :- रस के प्रकार में वे सभी भाव आते हैं, जो इस को सुनने के बाद उत्पन्न होते हैं।
रस के ग्यारह भेद प्रकार होते है : -
रस के प्रकार :-
1. शृंगार रस - रति
2. हास्य रस - हास
3. करूण रस - शोक
4. रौद्र रस - क्रोध
5. वीर रस - उत्साह
6. भयानक रस - भय
7. बीभत्स रस - जुगुस्ता या घृणा
8. अदभुत रस - विशम्या या आश्चर्य
9. शान्त रस - निर्वेद
10. वत्सल रस - वात्सल्य
11. भक्ति रस - अनुराग/देव रति
रस के अंग
रस को चार प्रकार के अंगों में बांटा गया है :-
1. विभाव
2. अनुभाव
3. संचारी भाव
4. स्थायीभाव