Art, asked by ajaypaikra66617, 6 months ago

sit yudh ki prkriti likhiy koy char​

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Answered by PAKIZAALI
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Explanation:

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के काल में संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत रूस के बीच उत्पन्न तनाव की स्थिति को शीत युद्ध के नाम से जाना जाता है। कुछ इतिहासकारों द्वारा इसे 'शस्त्र सज्जित शान्ति' का नाम भी दिया गया है।

नाटो तथा वार्सा संधि के देश

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और रूस ने कंधे से कन्धा मिलाकर धूरी राष्ट्रों- जर्मनी, इटली और जापान के विरूद्ध संघर्ष किया था। किन्तु युद्ध समाप्त होते ही, एक ओर ब्रिटेन तथा संयुक्त राज्य अमेरिका तथा दूसरी ओर सोवियत संघ में तीव्र मतभेद उत्पन्न होने लगा। बहुत जल्द ही इन मतभेदों ने तनाव की भयंकर स्थिति उत्पन्न कर दी।

रूस के नेतृत्व में साम्यवादी और अमेरिका के नेतृत्व में पूँजीवादी देश दो खेमों में बँट गये। इन दोनों पक्षों में आपसी टकराहट आमने सामने कभी नहीं हुई, पर ये दोनों गुट इस प्रकार का वातावरण बनाते रहे कि युद्ध का खतरा सदा सामने दिखाई पड़ता रहता था। बर्लिन संकट, कोरिया युद्ध, सोवियत रूस द्वारा आणविक परीक्षण, सैनिक संगठन, हिन्द चीन की समस्या, यू-2 विमान काण्ड, क्यूबा मिसाइल संकट कुछ ऐसी परिस्थितियाँ थीं जिन्होंने शीतयुद्ध की अग्नि को प्रज्वलित किया। सन् 1991 में सोवियत रूस के विघटन से उसकी शक्ति कम हो गयी और शीतयुद्ध की समाप्ति हो गयी। शीतयुद्ध की उत्पत्ति के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

पूंजीवादी और साम्यवादी विचारधारा का प्रसार

सोवियत संघ द्वारा याल्टा समझौते का पालन न किया जाना

सोवियत संघ और अमेरिका के वैचारिक मतभेद

सोवियत संघ का एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभरना

ईरान में सोवियत हस्तक्षेप

टर्की में सोवियत हस्तक्षेप

यूनान में साम्यवादी प्रसार

द्वितीय मोर्चे सम्बन्धी विवाद

तुष्टिकरण की नीति

सोवियत संघ द्वारा बाल्कान समझौते की उपेक्षा

अमेरिका का परमाणु कार्यक्रम

परस्पर विरोधी प्रचार

लैंड-लीज समझौते का समापन

फासीवादी ताकतों को अमेरिकी सहयोग

बर्लिन विवाद

सोवियत संघ द्वारा वीटो पावर का बार-बार प्रयोग किया जाना

संकीर्ण राष्ट्रवाद पर आधारित संकीर्ण राष्ट्रीय

Answered by Anonymous
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Answer:

शीतयुद्ध का अर्थ

इस युद्ध में कोई वास्तविक युद्ध नहीं लड़ा गया। यह केवल परोक्ष युद्ध तक ही सीमित रहा। इस युद्ध में दोनों महाशक्तियों ने अपने वैचारिक मतभेद ही प्रमुख रखे। यह एक प्रकार का कूटनीतिक युद्ध था जो महाशक्तियों के संकीर्ण स्वार्थ सिद्धियों के प्रयासों पर ही आधारित रहा।

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