sochalaya per nibandh in hindi
Answers
Answered by
0
I words you have given are not understand able
Answered by
0
Hey mate here is your answer》》
An example
करीब चार दशक पहले की बात है। बिहार गांधी शताब्दी समिति में एक कार्यकर्ता के नाते मैं भी जुड़ा था। उसी दौरान मैंने देखा कि सिर पर मैला ढोने वाले दलित समाज के लोगों के साथ संभ्रांत लोग कैसा व्यवहार करते हैं। तब सिर पर मैला ढोने वाले लोगों से उस दौर का संभ्रांत समाज इतना अत्याचार करता था कि मेरा मन भर गया। तभी मैंने सिर से मैला उठाने वाले लोगों की मुक्ति के लिए काम करने की ठान ली।
चूंकि मैं ब्राह्मण परिवार से था, लिहाजा अपने समाज में मेरा विरोध भी हुआ। लेकिन मैंने हार नहीं मानी। इसी दौरान मैं सिर से मैला ढोने वाले लोगों को इस अमानवीय कार्य से मुक्ति दिलाने के बारे में सोचने लगा। इसी सोच से विकसित हुआ दो गड्ढों वाला शौचालय। इसकी तकनीक चूंकि सस्ती है और आसान भी, इसलिए हमने नाम दिया सुलभ शौचालय। इस तकनीक के तहत जब एक गड्ढा भर जाता है तो दूसरा गड्ढे से शौचालय को जोड़ दिया जाता है। इस बीच पहले गड्ढे में जमा शौच खाद में बदल जाता है। हमने तो इस शौचालय के जरिए गैस बनाने और उसे बिजली तक बनाने के कामयाब प्रयोग किए हैं।
दुनिया की कोई भी संस्कृति बिना स्वच्छता और सफाई के आगे बढ़ ही नहीं सकती। भारत तो वैसे भी देवी-देवताओं में आस्था रखने वाला समाज और देश है। बिना साफ-सफाई के देवता भी नहीं आ सकते। इसलिए सफाई का यहां विशेष महत्व रहा है।
हालांकि,दुर्भाग्यवश कालांतर में हमारे समाज में कुछ कुरीतियां घर कर गईं और हम स्वच्छता-सफाई की दुनिया से दूर होते चले गए। लेकिन आधुनिक भारत को स्वच्छता और सफाई का पहला संदेश महात्मा गांधी ने दिया था। 1901 के कांग्रेस अधिवेशन में गांधीजी जब शामिल हुए तो उन्होंने देखा कि वहां शौचालयों को कांग्रेस कार्यकर्ता साफ नहीं करते हैं, बल्कि सिर पर मैला ढोने वाले लोग साफ करते हैं तो उन्होंने इसका विरोध किया।हालांकि, प्रतिनिधियों ने गांधी जी की इस विचारधारा का विरोध किया।
लेकिन गांधीजी जब दक्षिण अफ्रीका लौटे तो उनके मन में यह बात घर कर गई थी। वहां स्थापित फिनिक्स आश्रम में गांधीजी ने शौचालय की साफ-सफाई खुद करने पर जोर दिया। गांधीजी का मानना था कि स्वतंत्रता से ज्यादा जरूरी सफाई है।
गांधीजी का मानना था कि स्वच्छता और नागरिक मूल्य ही राष्ट्रवाद की नींव हैं, इसलिए उन्होंने ताजिंदगी साफ-सफाई और स्वच्छता पर ना सिर्फ जोर दिया, बल्कि कांग्रेस के कार्यक्रमों के साथ ही अपने आश्रमों में स्वच्छता और उसमें हर व्यक्ति की भागीदारी पर जोर दिया। यहां तक कि उन्होंने 1937 में बुनियादी शिक्षा के लिए वर्धा में जो सम्मेलन बुलाया, उसमें भी उन्होंने स्कूली पाठ्यक्रम में स्वच्छता पर जोर दिया। उनका मानना था कि बच्चे को शुरुआत से ही सफाई के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए।
गांधीजी के विचार से प्रभावित होकर ही बिहार के मंत्री शत्रुघ्न शरण सिंह के सुझाव पर मैंने 1970 में सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की। आज शौचालय निर्माण की सस्ती तकनीक के लिए इसकी दुनियाभर में पहचान है। हमने अब तक डेढ़ करोड़ घरों में दो गड्ढों वाले सस्ते शौचालयों का निर्माण किया है। इसके साथ ही हमारी संस्था ने देशभर में करीब 8500 सार्वजनिक शौचालयों का ना सिर्फ निर्माण किया है, बल्कि वह उन्हें संचालित भी कर रही है। ‘सुलभ’ के जरिए सार्वजनिक स्थानों पर स्वच्छता का नया संदेश हमने देने का प्रयास किया है।
गांधीजी के बाद अगर इस देश में स्वच्छता के महत्व को किसी ने गहराई से समझा है तो वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। उन्होंने लालकिले की प्राचीर से 2019 तक देश को खुले में शौच से मुक्त बनाने का ऐलान किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कितने दूरदर्शी हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनका ध्यान स्कूलों में शौचालय की कमी की वजह से पढ़ाई छोड़ने वाली लड़कियों की ओर गया। उन्होंने हर स्कूल में लड़कियों के लिए अलग शौचालय बनाने के अभियान को स्वीकृति दी है। इस दिशा में सुलभ भी काम कर रहा है। सुलभ इंटरनेशनल ने भारती फाउंडेशन के सहयोग से पंजाब के लुधियाना जिले के तकरीबन हर गांव में शौचालय बनाए हैं। इससे वहां स्कूल जाने वाली लड़कियों और महिलाओं के जीवन में ना सिर्फ सुरक्षा बोध बढ़ा है, बल्कि उनकी जिंदगी में गुणात्मक बदलाव भी आया है।
‘सुलभ’ ने ना सिर्फ शौचालय तकनीक के जरिए सिर पर मैला ढोने वाले लोगों की जिंदगी में बदलाव लाने की कोशिश की है, बल्कि सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस आर्गेनाईजेशन की संस्था ‘नईदिशा’ के जरिए अब तक अछूत समझी जाती रही अनेकानेक महिलाओं की जिंदगी में नया सवेरा लाने की कोशिश भी की है।
Hope this answer will help you..《《
An example
करीब चार दशक पहले की बात है। बिहार गांधी शताब्दी समिति में एक कार्यकर्ता के नाते मैं भी जुड़ा था। उसी दौरान मैंने देखा कि सिर पर मैला ढोने वाले दलित समाज के लोगों के साथ संभ्रांत लोग कैसा व्यवहार करते हैं। तब सिर पर मैला ढोने वाले लोगों से उस दौर का संभ्रांत समाज इतना अत्याचार करता था कि मेरा मन भर गया। तभी मैंने सिर से मैला उठाने वाले लोगों की मुक्ति के लिए काम करने की ठान ली।
चूंकि मैं ब्राह्मण परिवार से था, लिहाजा अपने समाज में मेरा विरोध भी हुआ। लेकिन मैंने हार नहीं मानी। इसी दौरान मैं सिर से मैला ढोने वाले लोगों को इस अमानवीय कार्य से मुक्ति दिलाने के बारे में सोचने लगा। इसी सोच से विकसित हुआ दो गड्ढों वाला शौचालय। इसकी तकनीक चूंकि सस्ती है और आसान भी, इसलिए हमने नाम दिया सुलभ शौचालय। इस तकनीक के तहत जब एक गड्ढा भर जाता है तो दूसरा गड्ढे से शौचालय को जोड़ दिया जाता है। इस बीच पहले गड्ढे में जमा शौच खाद में बदल जाता है। हमने तो इस शौचालय के जरिए गैस बनाने और उसे बिजली तक बनाने के कामयाब प्रयोग किए हैं।
दुनिया की कोई भी संस्कृति बिना स्वच्छता और सफाई के आगे बढ़ ही नहीं सकती। भारत तो वैसे भी देवी-देवताओं में आस्था रखने वाला समाज और देश है। बिना साफ-सफाई के देवता भी नहीं आ सकते। इसलिए सफाई का यहां विशेष महत्व रहा है।
हालांकि,दुर्भाग्यवश कालांतर में हमारे समाज में कुछ कुरीतियां घर कर गईं और हम स्वच्छता-सफाई की दुनिया से दूर होते चले गए। लेकिन आधुनिक भारत को स्वच्छता और सफाई का पहला संदेश महात्मा गांधी ने दिया था। 1901 के कांग्रेस अधिवेशन में गांधीजी जब शामिल हुए तो उन्होंने देखा कि वहां शौचालयों को कांग्रेस कार्यकर्ता साफ नहीं करते हैं, बल्कि सिर पर मैला ढोने वाले लोग साफ करते हैं तो उन्होंने इसका विरोध किया।हालांकि, प्रतिनिधियों ने गांधी जी की इस विचारधारा का विरोध किया।
लेकिन गांधीजी जब दक्षिण अफ्रीका लौटे तो उनके मन में यह बात घर कर गई थी। वहां स्थापित फिनिक्स आश्रम में गांधीजी ने शौचालय की साफ-सफाई खुद करने पर जोर दिया। गांधीजी का मानना था कि स्वतंत्रता से ज्यादा जरूरी सफाई है।
गांधीजी का मानना था कि स्वच्छता और नागरिक मूल्य ही राष्ट्रवाद की नींव हैं, इसलिए उन्होंने ताजिंदगी साफ-सफाई और स्वच्छता पर ना सिर्फ जोर दिया, बल्कि कांग्रेस के कार्यक्रमों के साथ ही अपने आश्रमों में स्वच्छता और उसमें हर व्यक्ति की भागीदारी पर जोर दिया। यहां तक कि उन्होंने 1937 में बुनियादी शिक्षा के लिए वर्धा में जो सम्मेलन बुलाया, उसमें भी उन्होंने स्कूली पाठ्यक्रम में स्वच्छता पर जोर दिया। उनका मानना था कि बच्चे को शुरुआत से ही सफाई के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए।
गांधीजी के विचार से प्रभावित होकर ही बिहार के मंत्री शत्रुघ्न शरण सिंह के सुझाव पर मैंने 1970 में सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की। आज शौचालय निर्माण की सस्ती तकनीक के लिए इसकी दुनियाभर में पहचान है। हमने अब तक डेढ़ करोड़ घरों में दो गड्ढों वाले सस्ते शौचालयों का निर्माण किया है। इसके साथ ही हमारी संस्था ने देशभर में करीब 8500 सार्वजनिक शौचालयों का ना सिर्फ निर्माण किया है, बल्कि वह उन्हें संचालित भी कर रही है। ‘सुलभ’ के जरिए सार्वजनिक स्थानों पर स्वच्छता का नया संदेश हमने देने का प्रयास किया है।
गांधीजी के बाद अगर इस देश में स्वच्छता के महत्व को किसी ने गहराई से समझा है तो वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। उन्होंने लालकिले की प्राचीर से 2019 तक देश को खुले में शौच से मुक्त बनाने का ऐलान किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कितने दूरदर्शी हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनका ध्यान स्कूलों में शौचालय की कमी की वजह से पढ़ाई छोड़ने वाली लड़कियों की ओर गया। उन्होंने हर स्कूल में लड़कियों के लिए अलग शौचालय बनाने के अभियान को स्वीकृति दी है। इस दिशा में सुलभ भी काम कर रहा है। सुलभ इंटरनेशनल ने भारती फाउंडेशन के सहयोग से पंजाब के लुधियाना जिले के तकरीबन हर गांव में शौचालय बनाए हैं। इससे वहां स्कूल जाने वाली लड़कियों और महिलाओं के जीवन में ना सिर्फ सुरक्षा बोध बढ़ा है, बल्कि उनकी जिंदगी में गुणात्मक बदलाव भी आया है।
‘सुलभ’ ने ना सिर्फ शौचालय तकनीक के जरिए सिर पर मैला ढोने वाले लोगों की जिंदगी में बदलाव लाने की कोशिश की है, बल्कि सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस आर्गेनाईजेशन की संस्था ‘नईदिशा’ के जरिए अब तक अछूत समझी जाती रही अनेकानेक महिलाओं की जिंदगी में नया सवेरा लाने की कोशिश भी की है।
Hope this answer will help you..《《
Similar questions
Science,
7 months ago