Hindi, asked by jeevikaanthwal21036, 9 months ago

Social media v vigyapan. iska logo pr kya prabhav .iski labh aur haniya .

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Answered by therealaryanroy
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आम तौर पर विज्ञापनों के पक्ष में काफी मजबूत तर्क दिए जाते हैं। जैसे इनके जरिये हमें सूचनाएं मिलती हैं। इनसे प्रतिस्पर्द्धा बढ़ती है। ये अलग-अलग ब्रांड को लेकर हमें जागरूक बनाते हैं। इससे उपभोक्ताओं को विभिन्न विकल्पों की जानकारी मिलती है। यह भी कहा जाता है कि विज्ञापन ब्रांड का निर्माण करते हैं, जिसके प्रति लोग आकर्षित होते हैं और इस तरह उपभोक्तावाद को बढ़ावा मिलता है, जो हमारी अर्थव्यवस्था के लिए बेहद जरूरी है।

वैसे आजकल विज्ञापनों के खिलाफ दिए जाने वाले तर्कों की भी कमी नहीं है, भले ही ये इतने प्रभावशाली न हों। मसलन, विज्ञापन गलत सूचनाएं देते हैं। ये उपभोक्ताओं के डर और असुरक्षा को लक्षित कर उत्पाद बेचने लायक संदेश प्रसारित करते हैं। इसके खिलाफ एक तर्क यह भी है कि विज्ञापन से दोषपूर्ण उपभोक्तावाद को बढ़ावा मिलता है, जो पर्यावरण और समाज के लिहाज से उपयुक्त नहीं है।

फिलहाल हकीकत इन दोनों तर्कों के बीच में कहीं मौजूद है। लेकिन यह भी सच है कि अब उपभोक्ताओं और समुदायों ने विज्ञापनदाताओं के इरादों पर संदेह करना शुरू कर दिया है। सच यह भी है कि दुनिया बहुत प्रतिस्पर्द्धात्मक हो चुकी है। कंपनियों के तिमाही नतीजे और शेयर बाजार में उनके लगातार मूल्यांकन जैसी स्थितियों के चलते किसी भी कीमत पर लाभ प्राप्त करने का दबाव बढ़ गया है। ऐसी स्थिति में उपभोक्ता और विज्ञापनदाता खतरनाक तरीके से अलग-अलग दिशाओं में बढ़ रहे हैं। लगातार ऐसा होने की स्थिति में इसका पूरा नुकसान विज्ञापनदाताओं को ही भुगतना पड़ेगा।

सोशल मीडिया इसका बड़ा कारण है। विज्ञापन आम तौर पर उपभोक्ता के दिमाग में गहरा असर डालता है और उसके अंदर किसी उत्पाद को खरीदने की इच्छा पैदा करता है। विज्ञापन कभी-कभार ही एक बड़े तबके तक पहुंच पाते हैं। ऐसा तभी होता है, जब वे सार्वजनिक सेवाओं से जुड़े हुए होते हैं।

मौजूदा हालात में इतना तो साफ हो चुका है कि विज्ञापन की दुनिया के पेशेवर अभी सोशल मीडिया से रूबरू हो चुके तबके को डील करने के मामले में प्रशिक्षित नहीं हैं। निश्चित रूप से ये पेशेवर उस रफ्तार को पकड़ पाने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं, जिस रफ्तार से सोशल मीडिया में लोग एक-दूसरे से जुड़ते हैं और अपनी जानकारियों की साझेदारी करते हैं। विज्ञापनदाताओं को एहसास होने से पहले ही सोशल मीडिया के जरिये कोई संदेश करोड़ों लोगों तक फैल जाता है और ये संदेश नकारात्मक भी हो सकते हैं।

सोशल मीडिया के जरिये एक तबके के तैयार होने के मामले को एप्पल ब्रांड के मामले से समझा जा सकता है। निश्चित रूप से यह शानदार उत्पाद है। मैं इसका प्रशंसक हूं। लेकिन इसने एक अनुगामी संस्कृति विकसित की, जिससे इस उत्पाद को बहुत फायदा मिला, और इस तरह यह दुनिया की सबसे कीमती कंपनी बन गई। जाहिर है कि एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स एक सांस्कृतिक प्रतीक बन गए, जिनकी तुलना केवल विली वोंका और उनकी चॉकलेट फैक्टरी से ही की जा सकती है।

हालांकि इस तरह की संस्कृति बदलाव को लेकर बहुत संवेदनशील होती है। मसलन, एप्पल ब्रांड को तैयार करने में श्रमिकों के शोषण जैसी खबरें आने पर कंपनी इस मामले को आनन-फानन में हल करने में जुट गई। सोशल मीडिया अगर पहले सक्रिय होता, तो एक नामचीन बहुराष्ट्रीय कंपनी एशिया में यह कहते हुए अपने उत्पाद बेचने में सफल नहीं हो पाती कि पाउडर मिल्क मां के दूध से बेहतर होता है। जाहिर है, उसने तब सोशल मीडिया की गैरमौजूदगी का फायदा उठाया। सोशल मीडिया के जरिये प्रसारित होने वाले विचारों की लहर सुनामी के रूप में तबदील हो सकती है। यह सुनामी उस विज्ञापन को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है, जिसे एक समुदाय की पूर्ण क्षमता और सोशल मीडिया में इसकी ताकत का एहसास नहीं है।

Answered by narasimhabhat2017
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I did this for points sorry

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