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प्रस्तावना:
मेरी पिछली यात्रा बड़ी आनन्ददायक थी । उसकी याद अभी तक मेरे दिमाग में तरोताजा है । एक विशेष कारण है, जिसके फलस्वरूप यह रेल-यात्रा मेरे लिए इतनी हर्षवर्धक रही । पिछली गरमी की छुट्टियां में मुझे अपने एक मित्र से निमन्त्रण मिला कि मैं छुट्टियों के कुछ दिन उसके साथ इलाहाबाद में बिताऊं । यात्रा के विचार से मेरा हृदय प्रसन्नता से भर उठा ।
यात्रा की तैयारी:
मैने फौरन यात्रा की तैयारी शुरू कर दी । दो दिन बाद मुझे इलाहाबाद के लिए रवाना होना था । नियत दिन मैं प्रात-काल जल्दी उठा और अपना सामान बाँधा । लगभग 10 बजे मैंने एक रिक्शा किराए पर लिया और स्टेशन चल पड़ा ।
प्लेटफार्म का दृश्य:
मेरी गाड़ी इलाहाबाद के लिए 11 बजे चलनी थी । स्टेसन पर पहुंचकेर कर मैंने टिकट खरीदा और प्लेटफार्म पर पहुच गया । प्लेटफार्म यात्रियों से भरा हुआ था । यही बड़ी गहमा-गहमी थीं । सभी बड़ी उत्सुकता से गाडी आने की प्रतीक्षा मे थे । इतने मे ट्रेन आती दिखाई दी । सभी लोग अपना-अपना स्थान छोडकर खडे हो गये ।
डिब्बे के भीतर का दृश्य:
ट्रेन के आते ही सभी लोग डिब्बों की ओर भागे उघैर धक्कम-धक्का मचाने लगे । एक कुली की सहायता से मैं भी एक डिबे में चढ़ गया । डिबे में बड़ी भीड़ थी । एक वृद्ध सज्जन ने मेरी हालत पर तरस खाकर मुझे बैठने को स्थान दे दिया । भाग्य से मुझे खिड़की के पास बैठने का स्थान मिला । वहाँ बैठकर मैंने राहत की साँस ली ।
अब तक राह डिबा पूरी तरह भर चुका था । अनेक व्यक्ति खड़े हुये थे । थोडी ही देर में गार्ड ने हरी झंडी दिखाई । इंचिन ने सीटी दी और रेलगाड़ी धोरे-धीरे खिसकने लगी स्टेशन छोड़ते ही गाड़ी की रफ्तार तेज हो गई और हम इलाहाबाद की ओर बढ़ चले ।
चलती गाड़ी से दृश्य:
मैं यह यात्रा पहली बार अकेले कर रहा था । इस बार मुझे कोई रोकने-टोकने वाला नहीं था । इसलिए मैं यात्रा का भरपूर आनन्द उठाना चाहता था । मैंने ट्रेन के बाहर की ओर देखना शुरू किया । पहले तो मुझे ऐसा लगा कि सारी पृथ्वी भाग रही है ।
पेड़, बिजली के खम्भे और खेत सभी भागते दिखाई दे रहे थे । कुछ ही देर बाद गाड़ी हरे-भरे खेतों और बगीचों से गुजरने लगी । दूर कहीं कुछ पशु चरते दिखाई दे रहे थे । किसान अपने-अपने खेतों में हल जोतते दिखाई दे रहे थे । कभी-कभी दूर सडक पर चलते वाहन खिलौने से लग रहे थे ।
रेल को आते देख कुछ ग्रामीण बालक भाग कर पटरी के पास आ जाते और हाथ हिला-हिला कर यात्रियों का अभिनन्दन कर रहे थे और हँस-हँस कर तालियां पीट रहे थे । डिबे के अन्दर कुछ लोगो ने ताश खेलना शुरू कर दिया था, जबकि कुछ अन्य लोग महंगाई और तत्कालीन समस्याओं पर बहस में उलझे थे ।
एक दुर्घटना:
हमारी ट्रेन खुरजा स्टेशन पर रुकी । कुछ मिनट के बाद गाड़ी पुन: चल दी । अभी गाड़ी ने पूरी रफ्तार पकडी ही थी कि मेरे डिब्बे के पायदान पर यात्रा कर रहे किसी व्यक्ति का पैर फिसला और वह नीचे गिर पड़ा । उसके साथी एकाएक चिल्लाये कि जंजीर खींच कर गाड़ी रोको ।
मैंने फौरन बड़े जोर से जजीर खींच दी । गाड़ी एकदम झटके साथ रुक गई । कुछ लोग पीछे गए और उस यात्री को उठा लाए । उसे अधिक चोट नहीं आई थी । सौभाग्य रने उसकी जान बच गई । अलीगढ़ पर मुझे कुछ और स्थान मिल गया और मुझे नींद आ गई ।
टिकट कलेक्टर का आना:
सुबह होते-होते हमारी गाडी कानपुर जा पहुँची । यहाँ मेरी ऑख खुली । मेंने गरमागरम चाय पी और फिर गाड़ी से दृश्य देखने लगा । कानपुर से गाड़ी के चलते ही डिब्बे में एक टिकट कलेक्टर घुस आया । वह वह खाकी वरदी पहने हुए था और उसके एक हाथ में रसीद-बुक थी ।
वह यात्रियों से टिकट मांगने लगा । सभी यात्री उसकी टिकट की मांग सुन चौकन्ने हो गये अपनी-अपनी टिकट ढूंढने लगे । इसी बीच एक नवयुवक टिकट कलेक्टर को देख पाखाने में घुस गया । टिकट कलेक्टर ने उसे देख लिया था ।
उसने उस नवयुवक को खिसकने का कोई मौका नहीं दिया और बाहर आते ही उसे धर पकड़ा । नवयुवक के पास टिकट नहीं था । उसने दया की प्रार्थना की और गिड़गिड़ाने लगा, लेकिन टिकट कलेक्टर ने काई दया नहीं दिखाई । उसने निर्धारित किराया और जुर्माना की राशि मांगी । युवक के पास पैसे नहीं थे । अगले स्टेशन पर उसे पुलिस को सौंप दिया गया ।
उपसंहार:
इलाहाबाद का स्टेशन आने वाला था । मेंने अपना सारा सामान बाध लिया । जैसे ही गाड़ी इलाहाबाद स्टेशन पर रुकी, मेंने कुली को पुकारा और अपना सामान लेकर प्लेटफार्म पर उतर आया मैंने अपने मित्र को अपने आने की सूवना भेज दी थी ।
मेरा मित्र मुझे लेने प्लेटफार्म पर आया हुआ था । मैं सामान उतार कर खड़ा ही हुआ था कि मुझे वह दिख गया । हम दोनों बड़ी गर्वजोशी से गले मिले । प्लेटफार्म पर ही हमने चाय पी और स्टेशन के बाहर आकर रिक्शा करके मित्र के घर चल पड़े ।
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मेरी पिछली यात्रा बड़ी आनन्ददायक थी । उसकी याद अभी तक मेरे दिमाग में तरोताजा है । एक विशेष कारण है, जिसके फलस्वरूप यह रेल-यात्रा मेरे लिए इतनी हर्षवर्धक रही । पिछली गरमी की छुट्टियां में मुझे अपने एक मित्र से निमन्त्रण मिला कि मैं छुट्टियों के कुछ दिन उसके साथ इलाहाबाद में बिताऊं । यात्रा के विचार से मेरा हृदय प्रसन्नता से भर उठा ।
यात्रा की तैयारी:
मैने फौरन यात्रा की तैयारी शुरू कर दी । दो दिन बाद मुझे इलाहाबाद के लिए रवाना होना था । नियत दिन मैं प्रात-काल जल्दी उठा और अपना सामान बाँधा । लगभग 10 बजे मैंने एक रिक्शा किराए पर लिया और स्टेशन चल पड़ा ।
प्लेटफार्म का दृश्य:
मेरी गाड़ी इलाहाबाद के लिए 11 बजे चलनी थी । स्टेसन पर पहुंचकेर कर मैंने टिकट खरीदा और प्लेटफार्म पर पहुच गया । प्लेटफार्म यात्रियों से भरा हुआ था । यही बड़ी गहमा-गहमी थीं । सभी बड़ी उत्सुकता से गाडी आने की प्रतीक्षा मे थे । इतने मे ट्रेन आती दिखाई दी । सभी लोग अपना-अपना स्थान छोडकर खडे हो गये ।
डिब्बे के भीतर का दृश्य:
ट्रेन के आते ही सभी लोग डिब्बों की ओर भागे उघैर धक्कम-धक्का मचाने लगे । एक कुली की सहायता से मैं भी एक डिबे में चढ़ गया । डिबे में बड़ी भीड़ थी । एक वृद्ध सज्जन ने मेरी हालत पर तरस खाकर मुझे बैठने को स्थान दे दिया । भाग्य से मुझे खिड़की के पास बैठने का स्थान मिला । वहाँ बैठकर मैंने राहत की साँस ली ।
अब तक राह डिबा पूरी तरह भर चुका था । अनेक व्यक्ति खड़े हुये थे । थोडी ही देर में गार्ड ने हरी झंडी दिखाई । इंचिन ने सीटी दी और रेलगाड़ी धोरे-धीरे खिसकने लगी स्टेशन छोड़ते ही गाड़ी की रफ्तार तेज हो गई और हम इलाहाबाद की ओर बढ़ चले ।
चलती गाड़ी से दृश्य:
मैं यह यात्रा पहली बार अकेले कर रहा था । इस बार मुझे कोई रोकने-टोकने वाला नहीं था । इसलिए मैं यात्रा का भरपूर आनन्द उठाना चाहता था । मैंने ट्रेन के बाहर की ओर देखना शुरू किया । पहले तो मुझे ऐसा लगा कि सारी पृथ्वी भाग रही है ।
पेड़, बिजली के खम्भे और खेत सभी भागते दिखाई दे रहे थे । कुछ ही देर बाद गाड़ी हरे-भरे खेतों और बगीचों से गुजरने लगी । दूर कहीं कुछ पशु चरते दिखाई दे रहे थे । किसान अपने-अपने खेतों में हल जोतते दिखाई दे रहे थे । कभी-कभी दूर सडक पर चलते वाहन खिलौने से लग रहे थे ।
रेल को आते देख कुछ ग्रामीण बालक भाग कर पटरी के पास आ जाते और हाथ हिला-हिला कर यात्रियों का अभिनन्दन कर रहे थे और हँस-हँस कर तालियां पीट रहे थे । डिबे के अन्दर कुछ लोगो ने ताश खेलना शुरू कर दिया था, जबकि कुछ अन्य लोग महंगाई और तत्कालीन समस्याओं पर बहस में उलझे थे ।
एक दुर्घटना:
हमारी ट्रेन खुरजा स्टेशन पर रुकी । कुछ मिनट के बाद गाड़ी पुन: चल दी । अभी गाड़ी ने पूरी रफ्तार पकडी ही थी कि मेरे डिब्बे के पायदान पर यात्रा कर रहे किसी व्यक्ति का पैर फिसला और वह नीचे गिर पड़ा । उसके साथी एकाएक चिल्लाये कि जंजीर खींच कर गाड़ी रोको ।
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टिकट कलेक्टर का आना:
सुबह होते-होते हमारी गाडी कानपुर जा पहुँची । यहाँ मेरी ऑख खुली । मेंने गरमागरम चाय पी और फिर गाड़ी से दृश्य देखने लगा । कानपुर से गाड़ी के चलते ही डिब्बे में एक टिकट कलेक्टर घुस आया । वह वह खाकी वरदी पहने हुए था और उसके एक हाथ में रसीद-बुक थी ।
वह यात्रियों से टिकट मांगने लगा । सभी यात्री उसकी टिकट की मांग सुन चौकन्ने हो गये अपनी-अपनी टिकट ढूंढने लगे । इसी बीच एक नवयुवक टिकट कलेक्टर को देख पाखाने में घुस गया । टिकट कलेक्टर ने उसे देख लिया था ।
उसने उस नवयुवक को खिसकने का कोई मौका नहीं दिया और बाहर आते ही उसे धर पकड़ा । नवयुवक के पास टिकट नहीं था । उसने दया की प्रार्थना की और गिड़गिड़ाने लगा, लेकिन टिकट कलेक्टर ने काई दया नहीं दिखाई । उसने निर्धारित किराया और जुर्माना की राशि मांगी । युवक के पास पैसे नहीं थे । अगले स्टेशन पर उसे पुलिस को सौंप दिया गया ।
उपसंहार:
इलाहाबाद का स्टेशन आने वाला था । मेंने अपना सारा सामान बाध लिया । जैसे ही गाड़ी इलाहाबाद स्टेशन पर रुकी, मेंने कुली को पुकारा और अपना सामान लेकर प्लेटफार्म पर उतर आया मैंने अपने मित्र को अपने आने की सूवना भेज दी थी ।
मेरा मित्र मुझे लेने प्लेटफार्म पर आया हुआ था । मैं सामान उतार कर खड़ा ही हुआ था कि मुझे वह दिख गया । हम दोनों बड़ी गर्वजोशी से गले मिले । प्लेटफार्म पर ही हमने चाय पी और स्टेशन के बाहर आकर रिक्शा करके मित्र के घर चल पड़े ।
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