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रस की परिभाषा :-
भक्ति रस की परिभाषा :- इसका स्थायी भाव देव रति है इस रस में ईश्वर कि अनुरक्ति और अनुराग का वर्णन होता है| अर्थात इस रस में ईश्वर के प्रति प्रेम का वर्णन किया जाता है उदाहरण :-
अँसुवन जल सिंची-सिंची प्रेम-बेलि बोई
मीरा की लगन लागी, होनी हो सो होई
अदभुत रस की परिभाषा :- अदभुत रस का स्थायी भाव आश्चर्य होता है। जब ब्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होता है उसे ही अदभुत रस कहा जाता है। इसके अन्दर औंसू आना, रोमांच, गद्गद होना, काँपना, आँखे फाड़कर देखना आदि के भाव व्यक्त होता है उदाहरण :-
देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल विश्व की माया,
क्षणभर को वह बनी अचेतन, हिल न सकी कोमल काया।
वीभत्स रस की परिभाषा :- वीभत्स रस का स्थायी भाव जुगुप्सा होता है। इसमें घृणित वस्तुओं, घृणित चीजो या घृणित व्यक्ति को देखकर अथवा उनके संबंध में विचार करके अथवा उनके सम्बन्ध में सुनकर मन में उत्पन्न होने वाली घृणा या ग्लानि ही वीभत्स रस कि पुष्टि करती है | उदहारण :-
सिर पर बैठो काग आँखि दोउ-खात निकारत।
खींचत जीभहिं स्यार अतिहि आनन्द उर धारत। ।
शांत रस की परिभाषा :- शांत रस का स्थायी भाव निर्वेद होता है शांत रस में तत्व ज्ञान कि प्राप्ति या संसार से वैराग्य मिलने पर, परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान प्राप्त होने पर मन को जो शान्ति मिलती है वहाँ पर शान्त रस की उत्पत्ति होती है जहाँ पर न दुःख होता है, न ही द्वेष होता है मनुष्य का मन सांसारिक कार्यों से मुक्त हो जाता है और मनुष्य वैराग्य प्राप्त कर लेता है शान्त रस कहा जाता है। उदाहरण :-
मन रे तन कागद का पुतला
लागै बूँद विनसि जाय छिन में गरब करै क्यों इतना।
वात्सल्य रस की परिभाषा :- वात्सल्य रस का स्थायी भाव वात्सल्यता (अनुराग) होता है। इस रस में बड़ों का बच्चों के प्रति प्रेम,माता का पुत्र के प्रति प्रेम, बड़े भाई का छोटे भाई के प्रति प्रेम,गुरुओं का शिष्य के प्रति प्रेम आदि का भाव स्नेह कहलाता है यही स्नेह का भाव परिपुष्ट होकर वात्सल्य रस कहलाता है| उदाहरण :-
जसोदा हरि पालनैं झुलावै।
हलरावै, दुलरावै मल्हावै, जोइ सोइ, कछु गावै।
भयानक रस की परिभाषा :- भयानक रास का स्थायी भाव भय होता है। जब किसी भयानक अथवा अनिष्टकारी व्यक्ति या वस्तु को देखने अथवा उससे सम्बंधित वर्णन करने या किसी अनिष्टकारी घटना का स्मरण करने से मन में जो व्याकुलता जागृत होती है उसे भय कहा जाता है तथा उस भय के उत्पन्न होने के कारण जिस रस कि उत्पत्ति होती है उस रास को भयानक रस कहा जाता है। इसके अंतर्गत पसीना छूटना,कम्पन, चिन्ता, मुँह सूखना, आदि के भाव उत्पन्न होते हैं। उदाहरण :-
आज बचपन का कोमल गात
जरा का पीला पात !
चार दिन सुखद चाँदनी रात
और फिर अन्धकार , अज्ञात !
शृंगार रस की परिभाषा :- शृंगार रस का स्थायी भाव प्रेम है। यह रस प्रेम भावनाओं द्वारा उत्पन्न होता है। यह रस दो प्रकार का होता है।
संयोग रस
वियोग रस
संयोग एवं वियोग रस प्रेम के दो भागों, मिलने एवं बिछड़ने को प्रदर्शित करते हैं।
उदाहरण
तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।
झके कूल सों जल परसन हित मनहुँ सुहाये।।
हास्य रस की परिभाषा :- जहाँ पर किसी विचित्र स्थितियों या परिस्थितियों के कारण हास्य की उत्पत्ति होती है उसे हास्य रस कहा जाता है । इसका स्थायी भाव हास होता हैं । इसके अन्तर्गत वाणी वेशभूषा, आदि की विकृति को देखकर मन में जो विनोद का भाव उत्पन्न होता है उससे हास की उत्पत्ति होती है, इसे ही हास्य रस कहा जाता है ।उदाहरण :-
चीटे न चाटते मूसे न सूँघते, बांस में माछी न आवत नेरे,
आनि धरे जब से घर मे तबसे रहै हैजा परोसिन घेरे,
वीर रस की परिभाषा :- वीर रस का स्थायी भाव उत्साह होता है और इस रस के अंतर्गत जब युद्ध या कठिन कार्य को करने के लिए मन में जो उत्साह की भावना जागृत होती है उसे ही वीर रस कहा जाता है। इस रस में शत्रु पर विजय प्राप्त करने, कीर्ति प्राप्त करने आदि की भवन प्रकट होती है। उदाहरण :-
साजि चतुरंग सैन अंग में उमंग धारि
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं।
रौद्र रस की परिभाषा :- इसका स्थायी भाव क्रोध होता है जब किसी एक पक्ष या व्यक्ति द्वारा दुसरे पक्ष या दुसरे व्यक्ति का अपमान करने अथवा अपने गुरुजन आदि कि निन्दा से जो क्रोध उत्पन्न होता है उसे रौद्र रस कहते हैं इसमें क्रोध के कारण मुख लाल हो जाना, दाँत पिसना, शास्त्र चलाना, भौहे चढ़ाना आदि के भाव उत्पन्न होते हैं। उदाहरण :-
श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्षोभ से जलने लगे।
सब शील अपना भूल कर करतल युगल मलने लगे।