Sond aur narmda ki pranay katha
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एक लोक कथा के अनुसार शोण और नमर्दा के बीच प्रेम था,पर उनकी प्रणय कथा में जुहिला नामक सखी ने सब गड़बड़ कर दिया । हुआ यह कि नमर्दा ने एक बार जुहिला को दुति बनाकर अपना प्रणय संदेश शोणभद्र के पास भेजा। जुहिला ने शोण को देखा तो उनके व्यक्तित्व पर इस कदर मुग्ध हो गई कि सखी की मर्यादा भूल उनसे स्वयं का रूप धारण और शोण का वरण कर लिया यह बात नर्मदा को पता चला तो वह मारे क्रोध के उल्टे पांव पश्चिम की ओर वेगवती हो कर चलने लगी चट्टानों को तोड़ती,पहाड़ो को किनारे करती,उछलती,उत्ताव तरंगो से रव करती ,वह बहती जाती है। पीछे मुड़कर फिर नही देखती। उधर शोण को इस बात का रहस्य पता चलता है, तो वह भी विरह सन्तप्त होकर अमरकंटक के उच्च शिखर से छलांग लगा लेता है। पूर्व की ओर विरह-विधुर मन लिए बह निकलता है। बहता ही चला जाता है कुछ दूर जाकर जुहिला उसे मना लेती है। उससे मिल जाती है उसमें समा जाती है लेकिन नर्मदा और शोण दो प्रेमी दो विपरीत दिशाओ में बह निकलते है। तब से इस धरती की करुणा विगलित होकर नर्मदा और शोण के स्वरूप में अजस्र बह रही है नर्मदा ,अनवरत और अविराम प्रवहमान है इसलिए इनकी तटीय संस्कृति जीवित है।