Hindi, asked by Anonymous, 3 months ago

Soor Dash First paragraph in hindi..... or any attachment U have....... that contains its answer........ I have deleted my Hindi notes accidentally


Thank You........​

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Answered by anmol1383
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Answer:

I created a quiz assignment in Google Forms that required the students to type a short answer for each question. I made sure to collect students' emails, limit to 1 response, and added a question where they type their first and last name. I've had two students so far who have turned in their quiz assignment (it shows ___/100 in the Turned In category). However, when I go into the Google Form for the quiz assignment and click on the Responses, I don't see any recorded response for that student. This has happened multiple times within the past week. 

Explanation:

mark as branlist answer

Answered by AnviAdhit
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Answer:

जीवन-परिचय-सूरदास जी का जन्म सन् 1478 ई० (वैशाख शुक्ल पंचमी, सं० 1535 वि०) में आगरा-मथुरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक ग्राम में हुआ था। कुछ विद्वान् दिल्ली के निकट ‘सीही ग्राम को भी इनका जन्म-स्थान मानते हैं। सूरदास जी जन्मान्ध थे इस विषय में भी विद्वानों में मतभेद हैं। इन्होंने कृष्ण की बाल-लीलाओं का, मानव-स्वभाव का एवं प्रकृति का ऐसा सजीव वर्णन किया है, जो आँखों से प्रत्यक्ष देखे बिना सम्भव नहीं है। इन्होंने स्वयं अपने आपको जन्मान्ध कहा है। ऐसा इन्होंने आत्मग्लानिवश, लाक्षणिक रूप में अथवा ज्ञान-चक्षुओं के अभाव के लिए भी कहा हो सकता है।सूरदास की रुचि बचयन से ही भगवद्भक्ति के गायन में थी। इनसे भक्ति का एक पद सुनकर पुष्टिमार्ग के संस्थापक महाप्रभु वल्लभाचार्य ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया और श्रीनाथजी के मन्दिर में कीर्तन का भार सौंप दिया। श्री वल्लभाचार्य के पुत्र बिट्ठलनाथ ने ‘अष्टछाप’ नाम से आठ कृष्णभक्त कवियों का जो संगठन किया था, सूरदास जी इसके सर्वश्रेष्ठ कवि थे। वे गऊघाट पर रहकर जीवनपर्यन्त कृष्ण की लीलाओं का गायन करते रहे।

सूरदास जी का गोलोकवास (मृत्यु) सन् 1583 ई० (सं० 1640 वि०) में गोसाईं बिट्ठलनाथ के सामने गोवर्द्धन की तलहटी के पारसोली नामक ग्राम में हुआ। ‘खंजन नैन रूप रस माते’ पद का गान करते हुए इन्होंने अपने भौतिक शरीर का त्याग किया।

कृतियाँ (रचनाएँ)–महाकवि सूरदास की अग्रलिखित तीन रचनाएँ ही उपलब्ध हैं-

(1) सूरसागर-श्रीमद्भागवत् के आधार पर रचित ‘सूरसागर’ के सवा लाख पदों में से अब लगभग दस हजार पद ही उपलब्ध बताये जाते हैं, जिनमें कृष्ण की बाल-लीलाओं, गोपी-प्रेम, गोपी-विरह, उद्धव-गोपी संवाद का बड़ा मनोवैज्ञानिक और सरस वर्णन है। सम्पूर्ण ‘सूरसागर’ एक गीतिकाव्य है। इसके पद तन्मयता के साथ गाये जाते हैं तथा यही ग्रन्थ सूरदास की कीर्ति का स्तम्भ है।

(2) सूर-सारावली-इसमें 1,107 पद हैं। यह ‘सूरसागर’ का सारभाग है।

(3) साहित्य-लहरी-इसमें 118 दृष्टकूट पदों का संग्रह है। इस ग्रन्थ में किसी एक विषय की विवेचना नहीं हुई है, वरन् मुख्य रूप से नायिकाओं एवं अलंकारों की विवेचना की गयी है। इसमें कहीं-कहीं पर श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं का वर्णन हुआ है तो एकाध स्थलों पर महाभारत की कथा के अंशों की झलक भी मिलती है।

साहित्य में स्थान-भक्त कवि सूरदास का स्थान हिन्दी-साहित्याकाश में सूर्य के समान ही है। इसीलिए कहा गया है–

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